
20 साल बाद चुपचाप लेकिन दमदार: भारतीय निवेशकों ने बदल दी बाजार की दिशा, बीते दो दशकों से शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FPIs) का वर्चस्व रहा है, लेकिन अब घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने यह बाज़ी अपने नाम कर ली है. भारतीय या घरेलू निवेशकों ने शेयर बाजार का गेम चुपचाप बदलकर विदेशी निवेशकों का घमंड चकनाचूर कर दिया है।
बाजार को गिराने या उठाने के पीछे विदेशियों यानी FIIs का हाथ होता है
अक्सर माना जाता है कि बाजार को गिराने या उठाने के पीछे विदेशियों यानी FIIs का हाथ होता है. लेकिन फ़िलहाल बीते कुछ दिनों में भारतीय शेयर बाजार में ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है. बीते दो दशकों से शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FPIs) का वर्चस्व रहा है, लेकिन अब घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने यह बाज़ी अपने नाम कर ली है. भारतीय या घरेलू निवेशकों ने शेयर बाजार का गेम चुपचाप बदलकर विदेशी निवेशकों का घमंड चकनाचूर कर दिया है.
यह पहली बार हुआ है जब NSE में लिस्टेड कंपनियों में भारतीय निवेशकों की हिस्सेदारी विदेशी निवेशकों से ज्यादा हो गई है. यह बदलाव न केवल एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है, बल्कि भारतीय निवेशकों के आत्मविश्वास और बढ़ती आर्थिक समझ का भी प्रमाण है.
22 साल में पहली बार बदला गेम
मार्च 2024 की तिमाही में घरेलू संस्थागत निवेशकों (जिनमें म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियां, बैंक्स आदि शामिल हैं) की शेयर बाजार में हिस्सेदारी 16.05% पहुंच गई. वहीं, विदेशी संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी घटकर 15.78% रह गई. यानी 22 साल में पहली बार DIIs की पकड़ FPIs से ज्यादा मजबूत हो गई है. इस बदलाव को एक साइलेंट रिवॉल्यूशन कहा जा सकता है, क्योंकि यह धीरे-धीरे और संगठित तरीके से हुआ है, बिना किसी हंगामे के.
खुदरा निवेशकों ने भी दिखाया दम
घरेलू खुदरा निवेशकों (Retail Investors) की भागीदारी भी तेजी से बढ़ी है. NSE के अनुसार, मार्च तिमाही में इंडिविजुअल इन्वेस्टर्स की शेयर बाजार में हिस्सेदारी 7.75% रही, जो एक स्थिर बढ़त का संकेत है. खास बात यह है कि छोटी उम्र के निवेशक तेजी से SIP (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) और म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर रहे हैं. इससे घरेलू बाजार में पूंजी का प्रवाह लगातार बना हुआ है.20 साल बाद चुपचाप लेकिन दमदार: भारतीय निवेशकों ने बदल दी बाजार की दिशा