विधानसभा चुनाव 2018

बगावती सुरों ने बिगाडा भाजपा का गणित, डैमेज कंट्रोल में जुटी पार्टी

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी को 2008 एवं 2013 के चुनाव में टिकट चयन के बाद भी अंतर्कलह एवं विरोध का सामना करना पड़ा था, तब भाजपा डैमेज कंट्रोल करने में सफल रही। इस बार विरोध के स्वर कुछ ज्यादा ही तेज हैं। पार्टी ने जिस तरह से टिकटों का चयन किया है, उसको लेकर ज्यादा नाराजगी है। यही वजह है कि कार्यकर्ता अब पार्टी की ओर से थोपे गए प्रत्याशियों के साथ काम करने को तैयार नहीं है। प्रत्याशी चयन से नाराज कार्यकर्ता विरोध दर्ज कराने के लिए प्रदेश कार्यालय पहुंच रहे हैं, जहां भाजपा ने असंतुष्ठों की बात सुनने के लिए भोपाल सांसद आलोक संजर एवं वरिष्ठ नेता बिजेन्द्र सिंह सिसौदिया को जिम्मेदारी सौंपी गई है।

पार्टी में बढ़ रहे अंतर्कलह को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता का कहना है कि मप्र में भाजपा का संगठन बहुत मजबूत है। कार्यकर्ता पूरी निष्ठा के साथ पार्टी के लिए काम करता है, जब वह टिकट की दावेदारी करता है और जब टिकट नहीं मिलता तो स्वभाविक तौर पर मन उदास होता है। इस पदाधिकारी के अनुसार भाजपा के कार्यकर्ता कुछ दिन बार काम पर लौट आएंगे। इसलिए भाजपा इसको लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। जिन सीटों पर स्थिति ज्यादा खराब होती दिख रही है, वहां पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने जा रहे हैं। प्रदेश में 15 साल से सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी को इस बार विधानसभा चुनाव में जबरदस्त अंतर्कलह से जूझना पड़ रहा है।

प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के बाद से ही हर क्षेत्र से उम्मीदवारों के खिलाफ विरोध के स्वर उपज रहे हैं। यह स्थिति तब है जब भाजपा ने अंतर्कलह को रोकने के लिए बाकायदा ‘मैनेजरों’ की तैनाती कर रखी थी। लेकिन पहली सूची जारी होने के बाद से भाजपा में मायूसी है और ‘मैनेजर’ गायब हैं। अभी तक प्रदेश भर से दो दर्जन से ज्यादा टिकट बदलने की मांग प्रदेश भाजपा के सामने आ चुकी हैं, साथ ही चेतावनी भी दी गई है कि यदि टिकट नहीं बदला तो हार के लिए तैयार रहें। आधा दर्जन से ज्यादा जिलों में हजारों की संख्या में कार्यकर्ता और नेता भाजपा छोड़ चुके हैं।

नाराजगी का कारण

भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी का कारण यह है कि पार्टी के विधायक, मंत्रियों ने पिछले साल तक उन्हें हासिए पर रखा। चुनाव जीतने के बाद उनके काम नहीं किए। यही वजह है कि कार्यकर्ता टिकट चयन को लेकर विरोध कर रहे हैं। ज्यादातर विरोध उन प्रत्याशियों का हो रहा है, जिन्हें भाजपा ने फिर से चुनाव मैदान में उतारा है।

शीर्ष नेताओं में समन्वय की कमी

भाजपा में जहां भगदड़ की स्थिति बन गई है, वहीं मप्र भाजपा के शीर्ष नेताओं में समन्वय की कमी साफ दिखाई दे रही है। क्योंकि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह, संगठन महामंत्री सुहास भगत के पास कार्यकर्ताओं के पास समय नहीं है। टिकट चयन से पहले जरूर सुहास भगत पार्टी कार्यालय में कुर्सी डालकर बैठे और दावेदारों से मिले। टिकट चयन के बाद भगत असंतुष्ठों को समय नहीं दे रहे हैं। वहीं ऐसे कार्यकर्ताओं की मुख्यमंत्री तक पहुंच नहीं है। विपरीत हालात में चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष  नरेन्द्र सिंह तोमर ने कमान संभाल रखी हैं। वे भोपाल में डेरा डालकर चुनाव रणनीति, संगठन की बैठकों के साथ-साथ अंसतुष्ठों से भी मिल रहे हैं। वे अपने निवास एवं पार्टी कार्यालय में ऐसे नेताओं से अलग से चर्चा कर रहे हैं।

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