बिहार का एक ऐसा गांव जहां बिजली के एक पोल के लिए हुआ था खूनी संघर्ष, बिछ गई थी 27 लाशें

भागलपुर: आज से 34 साल पहले बिजली को लेकर बिहार के भागलपुर के दो गांव के बीच 27 लाशें बिछ गई थी. जिसका जख्म यहां के लोगों में आज भी जिंदा है. वह समय था 1991 और 21 अप्रैल की तारीख थी. जब बिहार में लालू यादव की सरकार थी और भागलपुर का कोइली और खुटाहा गांव लालटेन युग से निकलकर बिजली से चका- चौंध होने जा रहा था.
दो गांव के बीच बिछी 27 लाशें: भागलपुर के कोइली और खुटाहा गांव बिजली को लेकर “पहले हम और पहले हम” की लड़ाई में आपस में भिड़ गए. एक के बाद एक करीब 27 लाशें इस गांव में बिछ गई. इस संघर्ष का दौर 1991 से शुरू होकर 2019 तक चलता रहा. इस दौरान पूरे गांव में खौफनाक मंजर था. पूरे जिले में इसी खूनी खेल की कहानी अखबार से पढ़कर लोग भी भयभीत हो गए थे.
27 लोगों को मिली थी उम्रकैद: इस पूरी घटना में 27 लोगों की हत्या हुई और 27 को उम्रकैद की सजा मिली. दर्जनों लोग जमानत पर बाहर हैं और अभी भी कोर्ट में केस पर सुनवाई चल रही है. भागलपुर शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर कोइली और खुटाहा गांव है. वर्तमान में जिले के गोराडीह प्रखंड में खुटाहा गांव है, जबकि जगदीशपुर प्रखंड में कोइली गांव पड़ता है. ये दोनों आसपास के गांव हैं.
कैसे हुई खूनी गैंगवार की शुरुआत: बात 1991 की है, जब कोइली गांव में बिजली का पोल लगाना था, जिसके लिए पोल गिराए गए थे. खुटहा गांव के कुछ लोगों ने रातों रात पोल अपने गांव के रास्तों में गड़वा लिया. यहीं से दोनों गांव के बीच गैंगवार की शुरुआत हुई. कोइली के कुछ लोगों ने खुटाहा के कुछ ग्रामीणों पर केस दर्ज करा दिया. थाने में केस दर्ज होने के बाद ही विवाद बढ़ गया. एक दिन दोनों गांव के अलग-अलग समूह ने एक-दूसरे को ललकारा और दोनों गांव के लोग आपस में ही भिड़ गए.
दो गांव के बीच हुई अंधाधुंध फायरिंग: दोनों गांव ने तय किया कि जिसमें दम होगा वह जीतेगा और पोल अपने इलाके में लगवाएगा. दोनों समूह गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर चिचोरी पोखर के पास इकट्ठा हुए. जिसके बाद सुबह से ही दोनों गांव में गोलीबारी शुरू हो गई. दोनों ओर से राइफल, मास्केट समेत अन्य हथियारों से जमकर फायरिंग हुई. गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज उठा. रात तक दोनों गांवों में गोलीबारी होती रही. पुलिस सूचना मिलने पर गांव आने के लिए निकली लेकिन पुलिस की भी हिम्मत नहीं हुई कि गांव में प्रवेश कर इस गोलीबारी की घटना को रोक सके
निरंजन यादव और धनंजय यादव गुट में विवाद: गोलीबारी के दौरान पुलिस गांव के बाहर ही खड़ी रही. वहीं उस दिन कोइली के रंजीत यादव की गोली लगने से मौत हो गई थी. इसके बाद इस दुश्मनी में और कई लोगों की मौत हुई. कोइली और खुटाहा गांव में 21 अप्रैल, 1991 में बिजली का पोल पहले अपने गांव में लगवाने को लेकर निरंजन यादव उर्फ नीरो और धनंजय यादव गुट में विवाद की शुरुआत हुई थी.
भागलपुर में शुरू हुआ हत्याओं का दौर: वहीं 2 जुलाई 1992 में निरंजन यादव पर बम से ट्रेन में जानलेवा हमला हुआ. 18 जनवरी 1993 में नरसिंह यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 30 जून 1994 में ब्रह्मदेव, कुंजबिहारी और कपिलदेव यादव की हत्या हुई. 8 दिसंबर 1995 को सूर्यनारायण यादव की गोली मारकर हत्या की गई. 17 फरवरी 1996 को दुर्योधन यादव की गोली मारकर हत्या हुई. 7 नवंबर 1997 में दौनी यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई. 14 अक्टूबर 2000 को अनेस यादव की हत्या हुई.
दो सालों तक थमा था हत्या का दौर: 4 जुलाई 2000 को कारबाइन से संधीर यादव पर कातिलाना हमला किया गया. वहीं 2016 तक हत्याएं हुई फिर 2 साल तक मामला थोड़ा शांत हुआ ही था कि 2019 में गणेश यादव की हत्या हुई. सोहिता और गणेशी यादव बीच बारात पार्टी और दोनों के घर के बीच रास्ते के विवाद को लेकर गोली चली थी. जिसमें गणेशी की मौत हो गई. सूर्य नारायण यादव की हत्या मामले में गणेशी यादव को 2009 में उम्रकैद की सजा हुई थी. कुछ साल जेल में रहने के बाद वो उच्च न्यायालय से जमानत मिलने पर बाहर थे.
गांव में होता था इस तिकड़ी का खौफ: गणेशी की हत्या में सोहिता यादव का नाम आया. पर्दे के पीछे कोई खेल होने की भी बात सामने आई. गणेशी, रविन्द्र, सत्येंद्र की तिकड़ी का इलाके में खौफ हुआ करता था. आलम यह था कि गणेशी को ताकने तक की हिम्मत किसी में नहीं थी. 2014 पंचायत चुनाव पूर्व और बाद में चाचा-भतीजे की आपसी कलह से वो खौफ पानी बनकर बहने लगा था. जिसका एहसास गणेशी को भी हो चला था. तिकड़ी टूटने के बाद गणेशी ने अपने बेटे की राइफल को साथी बना लिया था.
गणेशी को क्यूं बनाया निशाना: यह बात धीरे-धीरे फैल रही थी कि सोहिता गणेशी का रिश्तेदार है. कुछ दिन पहले रास्ता विवाद में सोहिता और उसकी पत्नी को गणेशी ने पीट दिया था लेकिन बरात पार्टी और डीजे के दौरान ही गणेशी को क्यूं निशाना बनाया गया? जबकि सोहिता और सुबुक दोनों भाई काफी खूंखार थे. तत्काल अकेले चलने वाले गणेशी को निशाना बना सकते थे लेकिन बरात पार्टी का ही इंतजार क्यूं किया? सोहिता को पर्दे के पीछे किसी न किसी का साथ जरूर मिला. यह साथ किसका मिला फिलहाल दबी जुबान से भी कोई नाम लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.
गांव में शुरू हुआ नए घात-प्रतिघात का दौर: गणेशी यादव हत्या के बाद फौजी बेटा जिसका भागलपुर आगमन हुआ. उसके आने के बाद दाह संस्कार किया गया. तब पर्दे के पीछे होने वाले खेल का पटाक्षेप होने की बात दबी जुबान से लोग करने लगे. यानी लड़ाई एक ही गुट से बिखर चुके कुछ नए-पुराने शातिर के बीच की हो गई थी. इस नए घात-प्रतिघात के दौर में दोनों गांवों के लोगों की रातें खौफ में बीतने की लगी.
कैसे रुका खूनी संघर्ष: खुफिया एजेंसी ने वहां अशांति की संभावना को लेकर एक रिपोर्ट भी मुख्यालय भेजी थी. वहीं गणेशी यादव का फौजी बेटा देवेंद्र यादव गांव में शांति का माहौल बनाना चाहता था. इसलिए खूनी संघर्ष को विराम लगाया गया और फिर गांव में शांति का माहौल स्थापित करने का काम शुरू किया गया. दोनों गांव के बीच की दूरी मिटाने के लिए लगातार लोगों से मिलना जुलना शुरू किया गया और गांव को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया.
आज भी है लोगों में खौफ: 1991 से शुरू हुए खूनी संघर्ष को लेकर लोगों से चर्चा की तो हर कोई इससे दूर भागता नजर आया. कोइली और खुटाहा गांव में एक भी शख्स इस बात को बताने के लिए तैयार नहीं था. सभी एक ही बात कह रहे थे कि पुराने जख्मों को मत कुरेदो. जिसकी पीड़ित परिवार से मिलाकात की गई, जिनके घर के पास एक गुट गोलीबारी कर रहा था. इस शख्स के पिता ने भी इस खूनी खेल में जान गंवाई और वर्तमान में वो खुटाहा पंचायत के मुखिया हैं.
दो गांव के बीच मूंछ की लड़ाई: खुटाहा पंचायत के मुखिया देवेंद्र यादव ने बताया कि यह कहानी है साल 1991 की जब यहां पर सिर्फ एक पोल के लिए दो गांव के बीच मूंछ की लड़ाई हो गई. दोनों गांव के लोग “पहले हम और पहले हम “को लेकर लड़ गए. उन्होंने बताया कि तब वो महज 9 से 10 साल के थे, जब यह कहानी शुरू हुई थी. उस समय पहली बार गांव में बिजली आ रही थी. लालू यादव की सरकार थी और बिजली का पोल कोइली गांव के पोखर के पास गिरा था, लेकिन कुछ लोगों ने उस पोल को रात में चुरा लिया. इसके बाद यह विवाद बढ़ गया.
मुखिया ने बताई आपबीती: कोइली गांव के लोगों ने खुटहा गांव के लोगों के ऊपर एफआईआर दर्ज करा दिया था. इसके बाद दोनों के बीच विवाद बढ़ गया. दोनों गांव के लोगों का कहना था कि जो जीतेगा उसी के यहां पोल गाड़ा जाएगा. दोनों गांव के लोग गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर चिचोरी पोखर के पास इकट्ठा हो गए और लड़ाई शुरू हो गई. एक पक्ष चीचोरी पोखर पर तो दूसरा मुखिया के घर के पास था. मुखिया देवेंद्र यादव बताते हैं कि 21 अप्रैल को सुबह से दोनों गांव में गोलीबारी शुरू हो गई. दोनों ओर से राइफल, मास्केट समेत अन्य हथियार से जमकर फायरिंग हो रही थी. गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज रहा था.
विवाद से पिछड़ा गांव का विकास: मुखिया देवेंद्र यादव बताते हैं कि रात को भी दोनों गांव में गोलीबारी होती रही. ऐसा लग रहा था कि मानो कोई महाभारत चल रहा हो. फिल्मी स्टाइल में दोनों गांव में गोलीबारी हो रही थी. इसकी सूचना पुलिस को मिली लेकिन पुलिस यहां तक आने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. फिर गोली लगने से एक शख्स रंजीत यादव की मौत हो गई, इसके बाद यह दुश्मनी और बढ़ गई. मुखिया का कहना है कि उस समय जो भी हुआ वो महज नासमझी या कम पढ़े लिखे होने की वजह से हुआ लेकिन इससे ये गांव काफी पीछे चला गया.
“यह कहानी है साल 1991 की जब यहां पर सिर्फ एक पोल के लिए दो गांव के बीच मूंछ की लड़ाई हो गई. दोनों गांव के लोग पहले हम और पहले हम को लेकर लड़ गए थे. कम पढ़े-लिखे होने के कारण गांव के लोग पुलिस से भी मुठभेड़ कर लेते थे और पुलिस के साथ कई बार गोलीबारी भी हुई है. अगर ऐसा कुछ होता है तो बात से मामला सुलझा लेना चाहिए. इन सभी विवादों की वजह से गांव का विकास रुक जाता है.”-देवेंद्र यादव, मुखिया, खुटाहा पंचायत