तप ही मोक्ष की पहली सीढ़ी, जैन समाज के दशलक्षण महापर्व के 7वे दिन भावनामति माता जी के प्रेरक उद्गार
तप ही मोक्ष की पहली सीढ़ी, जैन समाज के दशलक्षण महापर्व के 7वे दिन भावनामति माता जी के प्रेरक उद्गार
कटनी। दिग.जैन बोर्डिंग हाउस परिसर में प.पू.आर्यिका रत्न श्री 105 भावनामति माता जी ने दशलक्षण महापर्व के 7 वे दिवस उत्तम तप धर्म पर चर्चा करते हुये बतलाया कि जिस प्रकार स्वर्ण को अग्नि मे तपाये जाने पर अपने शुद्ध स्वरूप को प्रगट करता है।
इसी प्रकार आत्मा भी तप रूपी अग्नि में तपाकर अपने शुद्ध स्वरूप को प्रगट करती है और तप करने से कर्मो की निर्जरा होती है इसलिए कहा गया है कि इसलिये तप को मोक्ष की पहली सीढ़ी कहा गया है। आर्यिका श्री ने आगे बतलाया कि तप 12 प्रकार का होता है।
यह जीव अनादिकाल से निवोद में रहा उसके विकलत्रह पशु नरक आदि गतियों को प्राप्त हुआ। उन्हांन ने आगे बताया कि जगत के लोग दुख सहने को तप समझते है। जबकि पूजन,दान,स्वाध्याय आदि भी दान की श्रेणी में आता है। आर्यिका श्री ने आगे कहा कि तप केवल मनुष्य ही कर सकता है।
अतः सम्यक दर्शन पूर्वक तप करना चाहिए तप करने से आत्मा के कर्मो की निर्जरा होती है और आत्मज पवित्र बनती है। प्रातः बंगला जैन मंदिर के श्रावक-श्राविकाओं द्वारा आर्यिका संघ के समक्ष विशेष पूजन में शामिल होकर पुण्य लाभ लिया गया एवं श्री 1008 चन्द्रप्रभ दिग.जैन बंगला मंदिर में दोपहर में धूपदशमी कार्यक्रम एवं शास्त्र सजाओं, अछार सजाओं प्रतियोगिता आयोजित की गई रात्रि में जैन बोर्डिंग हाउस में भारती जैन मिलन द्वारा हाथकरघा से बनें वस्त्रों का फैशन शो आयोजित किया गया।