वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले: धार्मिक स्वायत्तता और सरकारी हस्तक्षेप का विवाद, जानिए आगे क्या होगा
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले: धार्मिक स्वायत्तता और सरकारी हस्तक्षेप का विवाद, जानिए आगे क्या होगा

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले: धार्मिक स्वायत्तता और सरकारी हस्तक्षेप का विवाद, जानिए आगे क्या होगा। अल्लाह के नाम दान की गई संपत्ति – वक्फ को लेकर भारत सरकार की तरफ से लाए गए नए कानून की संवैधानिकता का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. एआईएमआईएम के मुखिया असद्दुदीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी विधायक अमानतुल्लाह खान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी समेत कम से कम दस लोगों या संगठनों नें कानून के खिलाफ देश की सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की है।
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले: धार्मिक स्वायत्तता और सरकारी हस्तक्षेप का विवाद, जानिए आगे क्या होगा
याचिका दायर करने वालों की दलीलों में सबसे अहम इस कानून को सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का उल्लंघन और मुसलमानों के मौलिक और धार्मिक अधिकारों को छीनने की साजिश कहा गया है. याचिकाकर्ता बारबार उस एक कथन को दोहरा रहे हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि- once a Waqf, always a Waqf – एक बार वक्फ हो गया तो फिर बात खत्म. वक्फ की बालादस्ती को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 3 फैसले अहम हैं.
पहला – रतीलाल पानाचंद गांधी बनाम बॉम्बे स्टेट (1954). दूसरा – सय्यद अली बनाम आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड (1998), तीसरा – के. नागराज बनाम आंध्र प्रदेश. सय्यद अली फैसले ही में अदालत ने वक्फ की बालादस्ती की बात की थी. हम स्टोरी में इन्हीं तीनों फैसलों को विस्तार से बताएंगे
कानून के खिलाफ दलीलें
भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के जमाने का है. देश भर में करीब 8 लाख 70 हजार संपत्ति वक्फ के नियंत्रण में हैं. जिसकी अनुमानित कीमत करीब सवा लाख करोड़ रुपये है. इन्हीं को कुछ बदलावों के साथ नियंत्रित करने को लेकर लाए गए कानून को पारित करने वक्त लोकसभा में पक्ष में 288 जबकि विरोध में 232 वोट पड़े थे. वहीं, राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 132 और इसके खिलाफ 95 वोट पड़े थे. समूचे विपक्ष ने एक सुर में कानून का विरोध किया था. अब अदालत में कानून को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-ए का उल्लंघन बताया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के 3 अहम फैसले
पहला – रतीलाल पानाचंद गांधी बनाम द स्टेट ऑफ बॉम्बे (1954)
सुप्रीम कोर्ट का साल 1954 का ये फैसला देश में धार्मिक स्वायत्ता की अहमियत को रेखांकित करने वाला था. इस फैसले में अदालत ने 1950 के बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट कानून के कुछ प्रावधानों को अंवैधानिक करार दिया था. अदालत ने तब कहा था कि धार्मिक संपत्ति का नियंत्रण किसी धर्मनिरपेक्ष संस्था को देना, उस धर्म विशेष के लोगों के धार्मिक और संपत्ति से जुड़े अधिकारों का अतिक्रमण है. इस फैसले को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में दलील दी जा रही है कि वक्फ की संपत्ति पर सरकार का नियंत्रण बढ़ाना और उसमें बड़े पैमाने पर छानबीन की व्यवस्था 1954 के इस फैसले की अवहेलना है.
दूसरा – सय्यद अली बनाम आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड हैदराबाद (1998)
1998 के इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ को इस्लाम धर्म के मातहत की जाने वाला एक दान का तरीका माना था. अदालत ने पाया था कि ये व्यवस्था कुरान से आती है. इसी फैसले में अदालत ने वक्फ की बालादस्ती को कुबूल किया था. अदालत ने कहा था कि वक्फ मुस्लिम कानूनों में पवित्र और धार्मिक दान का तरीका है. अदादल ने वक्फ को परमानेंट यानी स्थाई माना था. अदालत ने तब कहा था कि एक बार अगर वक्फ संपत्ति घोषित हो गई तो फिर वो वक्फ ही रहेगी.
तीसरा – के. नागराज बनाम आंध्र प्रदेश (1985)
ये मामला आंध्र प्रदेश सरकार के कर्मचारियों के रिटायरमेंट के उम्र से संबंधित था. ये सीधे तौर पर वक्फ से जुड़ा तो नहीं था मगर इसे आधार जरुर बनाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि ऐसे कोई भी संशोधन जो मूल कानून के मकसद को अप्रभावी करते हों, उन्हें असवैंधानिक माना जाएगा. अब अदालत में इसे आधार बनाया जा रहा है कि नए कानून का कम से कम 35 संशोधन 1995 के वक्फ कानून के प्रावधानों के असल मकसद का उल्लंघन कर रहा है।