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महाकाल की भस्म आरती में शामिल हुईं अभिनेत्री नुसरत भरूचा, मचा विवाद, संतों ने किया समर्थन, मौलाना के बयान पर सियासी-धार्मिक घमासान

उज्जैन। फिल्म अभिनेत्री नुसरत भरूचा मंगलवार तड़के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर पहुंचीं, जहां उन्होंने विधिविधान से भगवान महाकाल की भस्म आरती के दर्शन किए। इस दौरान नुसरत ने गर्भगृह में भगवान को जल अर्पित किया और पूरे श्रद्धा भाव से ‘जय महाकाल’ का जयकारा लगाया। मंदिर परिसर में उनकी सादगी और भक्ति भाव की तस्वीरें और वीडियो सामने आने के बाद यह मामला चर्चा में आ गया।

हालांकि नुसरत की यह शिव भक्ति कुछ कट्टरपंथी संगठनों को रास नहीं आई। आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी ने अभिनेत्री के मंदिर जाने और पूजा-अर्चना करने को इस्लाम के विरुद्ध बताते हुए आपत्ति जताई है। मौलाना के इस बयान के बाद धार्मिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।

साधु-संतों ने किया खुला समर्थन

मौलाना के विरोध के बीच उज्जैन के साधु-संत नुसरत भरूचा के समर्थन में खुलकर सामने आए हैं। निर्मोही अखाड़ा के महामंडलेश्वर महंत ज्ञानदासजी महाराज ने कहा कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति मूल रूप से सनातनी ही है। उन्होंने तर्क दिया कि यदि इतिहास को लगभग 1500 साल पीछे जाकर देखा जाए, तो उस समय केवल सनातन वैदिक हिंदू धर्म ही अस्तित्व में था।
महंत ज्ञानदासजी महाराज ने कहा, “आज कोई व्यक्ति किसी भी धर्म को मानता हो, लेकिन उसकी सांस्कृतिक और सभ्यतागत जड़ें सनातन से ही जुड़ी हैं। संभव है इसी भाव के कारण नुसरत भरूचा के मन में शिव भक्ति जागी हो। भक्ति किसी धर्म की बपौती नहीं है।”

‘भक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं’

अन्य संतों ने भी नुसरत के मंदिर दर्शन को व्यक्तिगत आस्था का विषय बताया। संतों का कहना है कि भगवान के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं और किसी को भी अपनी श्रद्धा व्यक्त करने से रोका नहीं जा सकता। उन्होंने मौलाना के बयान को संकीर्ण सोच करार देते हुए कहा कि ऐसे बयानों से समाज में अनावश्यक तनाव पैदा होता है।

सोशल मीडिया पर भी बंटी राय

इस पूरे घटनाक्रम के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस तेज हो गई है। जहां एक वर्ग नुसरत भरूचा की धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन कर रहा है, वहीं कुछ लोग इसे धर्म से जोड़कर विवादित बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
फिलहाल नुसरत भरूचा की ओर से इस विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन उज्जैन के साधु-संतों का स्पष्ट संदेश है कि भक्ति और आस्था को धर्म की सीमाओं में बांधना उचित नहीं है।

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