FashionLatestहोली विशेष

होली की ये परंपरा कर देगी हैरान, भगवान के साथ ऐसे होता है इकरारनामा

बस्तर। इंसान के कदम भले ही चांद और मंगल पर पहुंच गए हों, लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर में आज भी कुछ ऐसी परम्पराएं हैं जो उसी रूप में दिखाई देती हैं. इन परम्पराओं में किसी तरह की आधुनिकता का कोई रंग नहीं चढ़ा है.बस्तर में एक ऐसा इलाका हैं, जहां लोग अपना काम धंधा छोडकर दिन भर देवी देवताओं को खोजकर उन्हें स्थापित करने काम कर रहे हैं. पिछले दो सौ साल से ये परम्परा चली आ रही है.
yashbharat
बस्तर के जगदलपुर से महज 16 किलोमीटर दूर बकावंड ब्लाक में एक गांव है उलनार. यहां पर इन दिनों कुछ अजीब सी हलचल चल रही है. गांव के लोग पुजारी के साथ में जंगल में इधर उधर भागते दिखाई दे रहे हैं. नंगे पांव जंगल में कई किलोमीटर तक दौड़ भाग करने का ये सिलसिला पिछले कुछ दिनों से जारी है.

जंगल में दौड़भाग का सिलसिला होली तक चलता रहता है.

गांव वालों के मुताबिक घर में पूजे जानें वाले कुल देवी देवता की जगह गांव में कुछ दूसरे देवी देवताओं ने प्रवेश कर लिया है. ऐसे में अपने कुल देवी देवताओं को ढूढने के लिए गांव के पुजारी के साथ गांव के लोग भी काम कर रहे हैं.​

गांव के पुजारी के साथ गांव के लोग देवी देवताओं को ढूंढने का काम कर रहे हैं. देवी देवताओं को ढूंढने के बाद उन्हें लकड़ी का खूंटा को जमीन में लगाकर उन्हें उस जगह पर स्थापित किए जानें का सिलसिला इन दिनों चल रहा है. दूसरी जगह से आए इन देवी देवताओं को गांव में अनुबंध (इकरारनामा) के आधार पर स्थापित किया जाता है और ये कसम दिलाई जाती हैं कि वे गांव के लोगों की रखवाली करेगें और किसी तरह की आपदाओं को बीमारी से गांव की रक्षा करेगें.

इस तरह खोजते हैं भगवान को
सुबह से शाम तक गांव में कुछ इसी तरह का नजारा होता है. जब गांव के मुख्य पुजारी सहित उनके साथ चलने वाले पुजारी गांव के अंदर बाहर से आए देवी देवताओं की तलाश करते हैं. एक बड़े से बांस में लाल रंग का झंडा बाधें जो व्यक्ति आगे आगे पुजारियों के चल रहा होता है, वह देवी देवताओं का पता लगाने में मदद करता है. दरअसल लाल कपड़े से बंधा बांस पुजारियों के लिए राडार के रूप में काम करते है. इसके जरिए पता लगाया जाता हैं कि किस जगह पर देवी देवता बैठे हुए हैं.

भागने की कोशिश करते हैं देवता
बस्तर के उलनार गांव के निवासी महंगूराम बताते हैं कि मान्यता है कि देवी देवताओं की खोज के दौरान वे भागने की कोशिश भी करते हैं. तब गांव के लोग चारो तरफ से घेरकर उन्हें अपने कब्जें में लेते हैं. कई कई किलोमीटर तक गांव में देवी देवताओं की ये खोज दिन भर चलती रहती है. गांव के घर के बाहर बनी दीवार हो या फिर पेड़ या फिर खेत खलिहान देवी देवताओं को खोजने में किसी भी तरह की बांधा को आड़े नहीं आने दिया जाता है.

मान्यता के पीछे ये है कारण
ग्रामीणों की मानें तो गांव के बाहर के देवी देवताओं को बारह साल तक के लिए गांव में अनुबंध के आधार पर रखने की ये परम्परा करीब दौ साल पुरानी है. राजकाल के जमाने में गांव में चौरिया देवी की स्थापना की गई थी. तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई. कहानी ये भी है कि उस जमाने में बस्तर महाराजा का हाथी उलनार के जंगल में खो गया था. उस समय राजा ने चौरिया देवी से हाथी मिल जाने की प्राथना की थी. हाथी के मिल जानें के बाद राजा ने देवी की पूजा अर्चना करते हुए इस परंपरा की शुरुआत की थी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button