केसीआर और पटनायक ने क्यों बनाईं स्वामी के शपथ समारोह से दूरी?

बेंगलुरु। कर्नाटक चुनाव के परिणाम आने के बाद काफी दिनों से बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता पर काबिज़ होने को लेकर चल रहे घमासान के बीच आज एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. शपथ ग्रहण समारोह में ममता बनर्जी से लेकर समाजवादी पार्टी मुखिया व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित तमाम कद्दावर नेताओं के आने की संभावना है लेकिन इन सबके बीच उड़ीसा के मुख्यमंत्री व बीजू जनता दल (बीजेडी) प्रमुख नवीन पटनायक इसमें मौजूद नहीं होंगे.
लेकिन दोनों नेताओं के वहां मौजूद न होने के कारण अलग-अलग हैं. केसीआर वहां इसलिए नहीं जा रहे हैं क्योंकि वो गांधी परिवार के साथ मंच शेयर नहीं करना चाहते. जबकि, नवीन पटनायक इसलिए नहीं जाएंगे क्योंकि वो मोदी के विरोधी पक्ष के साथ खड़े होने से बच रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो कम से कम वो बैंगलुरू अपना प्रतिनिधि ज़रूर भेजते जैसा कि वो हमेशा से करते रहे हैं.
गौरतलब है कि पिछले महीने जैसे ही खबर आई कि मई में केसीआर फेडरल फ्रंट में शामिल होने के लिए नवीन पटनायक से मुलाकात करेंगे वैसे ही नवीन पटनायक ने इसका खंडन करते हुए कहा कि वो पुरी की यात्रा के लिए ओडिशा आएंगे न कि फेडरल फ्रंट पर बात करने के लिए.
खास बात ये है कि स्थानीय राजनीतिक कारणों से भले ही नवीन पटनायक बीजेपी के खिलाफ कुछ-कुछ बोलते रहे हों लेकिन जब से 2014 में मोदी सरकार बनी है तब से बिल्कुल सीधे तौर पर बीजेपी और मोदी विरोधी खेमें में खड़े होने से वो बचते रहे हैं. यहां तक कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर उन्होंने बीजेपी का समर्थन भी किया था.
इसके बदले जस्टिस एमबी शाह के आदेश के बावजूद 60,000 करोड़ के मेगा माइनिंग केस में मोदी सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश नहीं दिए. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चिट फंड मामले में चल रही सीबीआई जांच भी ढुलमुल ही रही.
नवीन पटनायक को डर है कि अगर वो खुलकर बीजेपी का विरोध करेंगे तो मोदी सरकार उनके पीछे सीबीआई को लगा सकती है. भले ही ओडिशा में बीजेपी और बीजेडी इस वक्त आमने सामने हों लेकिन नवीन पटनायक के दिल्ली में बैठे तमाम कद्दावर नेताओं से अच्छे संबंध हैं. केंद्र सरकार विरोध के बावजूद ओडिशा को तमाम तरह की सहायत पर सहायता दिए जा रही है. केंद्र सरकार ने कौशल विकास के मामले में भी ओडिशा को पहले स्थान पर रखा था.
दरअसल, नवीन पटनायक वही कर रहे हैं जो उन्होंने यूपीए के 10 साल के शासन के दौरान किया था. उस समय कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध थे भले ही राज्य में बीजेडी और कांग्रेस एक-दूसरे का विरोध कर रही थीं. लेकिन इस समय राज्य में कांग्रेस और बीजेडी के बीच नजदीकियां बढ़ती हुई दिख रही हैं.
केंद्रीय मंत्री जुराम ओरम ने नवीन पटनायक पर आरोप लगाया कि वो प्रदेश कांग्रेस कमिटी के मुखिया निरंजन पटनायक के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. बता दें कि निरंजन के छोटे भाई को बीजेडी से राज्य सभा सदस्य चुना गया है जो कि बीजेडी और कांग्रेस के बीच कड़ी का काम कर रहे हैं. हालांकि निरंजन पटनायक ने इसका विरोध किया और कहा नवीन पटनायक का बेंगलुरु में शपथ ग्रहण समारोह में न जाना दिखाता है कि बीजेपी और बीजेडी मिलकर काम कर रहे हैं.
नवीन पटनायक की लोकप्रियता दिखाती है कि लगातार 18 सालों तक सत्ता पर काबिज़ रहने के बावजूद उन्हें अभी भी हराना मुश्किल है और वो अकेले के दम पर विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीत सकते हैं. इसलिए बीजेपी विरोधी दल में शामिल होना उनके लिए कोई मतलब नहीं रखता. दूसरी बात नवीन पटनायक ने कभी भी केंद्र की राजनीति में रुचि भी नहीं दिखाई और उन्होंने अपने आपको हमेशा 4 करोड़ उड़िया लोगों की सेवा तक ही सीमित रखा.
भले ही बीजेपी और कांग्रेस एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में लगे हों कि बीजेडी छिपे तरीके से उनके साथ मिली हुई है लेकिन वास्तव में बीजेडी ने दोनों ही पार्टियों से बराबर दूरी बना रखी है ताकि चुनाव बाद किसी के भी साथ बैठा जा सके.