
छोटे कद का बड़ा इरादा: गणेश बरैया ने साबित किया कि हौसला किसी सीमा में नहीं बंधता। गुजरात के भावनगर के गांव गोरखी के रहने वाले 25 साल के डॉ. गणेश बरैया की कहानी हौसले और जुनून की मिसाल है. तीन फीट की लंबाई और करीब 20 किलो वजन वाले गणेश को ड्वार्फिज़्म की वजह से 72 फीसद हैंडीकैप है, लेकिन यह चुनौती उन्हें डॉक्टर बनने से नहीं रोक पाई. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मिली जीत के बाद, उन्होंने 27 नवंबर से भावनगर में ही मेडिकल अफसर के तौर पर अपनी पहली नौकरी शुरू करली है।
गणेश के माता-पिता किसान हैं और वह नौ भाई-बहनों में से एक हैं. उनका परिवार एक कच्चे मकान में रहता है. गणेश कहते हैं, “मेरा सबसे बड़ा सपना अब अपने परिवार के लिए एक पक्का घर बनाना है. पैसे की कमी के चलते कई बार निर्माण रुक गया था, लेकिन अब अपनी सैलरी से मैं इसे पूरा कर पाऊंगा।
डॉक्टर बनने के लिए लड़ी कानूनी लड़ाई
गणेश का डॉक्टर बनने का सफर आसान नहीं रहा. 2018 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) ने उन्हें MBBS कोर्स में दाखिले से इस आधार पर इनकार कर दिया कि उनकी शारीरिक स्थिति उन्हें डॉक्टर का काम करने से रोकेगी. गुजरात हाईकोर्ट ने भी MCI के फैसले को सही ठहराया, लेकिन गणेश ने हार नहीं मानी. उनके स्कूल प्रिंसिपल डॉ. दलपतभाई कटारिया ने उनके लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाडा खटखाया. बता दें आर्थिक तंगी के चलते उनके परिवार की कानूनी लड़ाई का खर्च प्रिंसिपल कटारिया ही उठा रहे थे।
गणेश ने B.Sc. में एडमिशन लेते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. केस दायर करने के चार महीने बाद, सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि लंबाई के आधार पर उन्हें दाखिला नहीं रोका जा सकता. इससे उनके लिए मेडिकल की पढ़ाई का रास्ता साफ हुआ।
दोस्तों और प्रोफेसर्स ने दिया साथ
2019 में भावनगर मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिलने के बाद भी चुनौतियां कम नहीं हुईं. लेकिन उनके क्लासमेट्स और प्रोफेसर्स ने हर कदम पर उनकी मदद की. एनाटॉमी क्लास में आगे की सीट रिजर्व करवाई, सर्जरी ट्रेनिंग के दौरान ऑपरेशन टेबल दिखाने में मदद की. गणेश कहते हैं, “मेरे दोस्तों और शिक्षकों ने ये सुनिश्चित किया कि मेरी लंबाई मेरी सीखने की राह में रोड़ा न बने।
मरीजों को छोटा डॉक्टर देख होती है पहले हैरानी
उन्होंने बताया कि नौकरी शुरू करने के बाद अब मरीजों का पहला रिएक्शन हैरानी का होता है. गणेश बताते हैं, “शुरू में मेरी कद-काठी देखकर वे चौंक जाते हैं, लेकिन जब वे मेरे संघर्ष की कहानी सुनते हैं, तो पूरा भरोसा करने लगते हैं. मरीज मेरे साथ सौहार्द और सकारात्मकता से पेश आते हैं।
गणेश के भविष्य के सपने
गणेश अब पीडियाट्रिक्स, डर्मेटोलॉजी या रेडियोलॉजी में एक्सपर्ट बनना चाहते हैं. उनकी चाहते हैं कि गांव के गरीब लोगों का इलाज करें, जहां जरूरत सबसे ज्यादा है. दुनिया के सबसे छोटे कद के डॉक्टर के खिताब के लिए भी उन पर विचार हो रहा है।
गणेश की यह जीत न सिर्फ उनकी अपनी है, बल्कि हर उस शख्स के लिए एक मिसाल है जो शारीरिक चुनौतियों के बावजूद बड़े सपने देखता है. सोशल मीडिया पर उनकी वीडियो और तस्वीरें वायरल हैं और लोग उनके हौसले को दाद दे रहे हैं।







