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बिना जलाए करें नरवाई का निपटान, अपनाएं बायो-डीकंपोजर

बिना जलाए करें नरवाई का निपटान, अपनाएं बायो-डीकंपोजर

कटनी। बिना जलाए करें नरवाई का निपटान, अपनाएं बायो-डीकंपोजर। खेत में खड़े डंठल,फसल अवशेष नरवाई  को बिना जलाये ही बायो-डिकम्पोजर की मदद से अत्यंत कम लागत में नरवाई प्रबंधन किया जा सकता है। डीकंपोजर एक लाभकारी सूक्ष्म जीवों का समूह है, जो कि फसल अवशेष, पशुओं का बिछावन, गोबर तथा अन्य कचरों को जैविक खाद के रूप में तेजी से बदलकर कृषि हेतु उपयोगी बना देता है।

बाजार में यह इफको बायो डीकंपोजर प्रोडक्ट के नाम के अलावा जबलपुर के जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के जैव उर्वरक केंद्र द्वारा तैयार  जवाहर जैव उर्वरक का उपयोग कर अत्यंत कम लागत में नरवाई का निपटान किया जा सकता है।बिजौरी मझगवा स्थित मानव जीवन विकास समिति ने हाल ही में नरवाई प्रबंधन की किसानों की कार्यशाला आयोजित कर जिले के करीब सौ किसानों को इफको बायो डीकंपोजर का निःशुल्क वितरण किया।

बायो-डिकम्पोजर सभी प्रकार के कृषि के कचरे तथा फसल अवशेष प्रबंधन की एक सस्ती एवं कारगर तकनीक है। 20 मिली लीटर की पैकिंग में उपलब्ध बायोडीकंपोजर इफको का यह प्रोडक्ट मात्र 25 रुपए में उपलब्ध हो जाता है।

लाभ

फसल अवशेषों का कम्पोस्ट बनाने में उपयोगी है।यह पशुओं का बिछावन, गोबर तथा अन्य कचरों का जैविक खाद बनाने में कारगर है। साथ ही डी कंपोजर बीज उपचार करके बीज से होने वाली विभिन्न बीमारियों की रोकथाम में उपयोगी है।पर्णीय छिड़काव के द्वारा विभिन्न कीट तथा बीमारियों की रोकथाम में उपयोगी।टपक सिंचाई पद्धति (ड्रिप सिंचाई) के द्वारा प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वराशक्ति में वृद्धि।इफको बायो-डिकम्पोजर का उपयोग कर उत्पादन लागत कम करके शुद्ध आय को बढ़ाया जा सकता है।इफको बायो-डिकम्पोजर(जैव अपघटक)

उपयोग विधि

इफको बायो-डिकम्पोजर का उपयोग के लिये सर्वप्रथम बायो-डिकम्पोजर का घोल तैयार किया जाता है।एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 लीटर पानी लें तथा इसमें 2 किलोग्राम गुड़ को घोलें।बायो-डिकम्पोजर की एक शीशी (बोतल) को (शीशी में उपस्थित सामग्री को बिना हाथ से छुये) ड्रम में घोलें।एक लकड़ी के डंडे की सहायता से ड्रम के पानी में बायो-डिकम्पोजर को अच्छी तरह से मिला दें तथा ड्रम को एक कागज अथवा कपड़े से ढक दें।घोल को प्रतिदिन दो बार लकड़ी के डंडे से अच्छी तरह से हिलायें। 5 से 7 दिन में ड्रम के घोल की ऊपरी सतह पर झागदार परत बन जायेगी तथा घोल का रंग मटमैला हो जायेगा।अब यह घोल उपयोग के लिये तैयार है।

इसी घोल से बार-बार बायो-डिकम्पोजर का घोल बनाएं

एक दूसरे प्लास्टिक ड्रम में तैयार किये घोल से 20 लीटर घोल तथा 2 किलोग्राम गुड़ को 200 लीटर पानी में मिला दें तथा ऊपर दी गई प्रक्रिया को 7 दिन तक दोहरायें। 7 दिन में पुनः बायो-डिकम्पोजर का घोल तैयार हो जायेगा।इस  बायो-डिकम्पोजर का घोल का उपयोग फसल अवशेषों को कम्पोस्ट बनाने, जैविक खाद बनाने, बीज उपचार करने, पर्णीय छिड़काव करने तथा ड्रिप के द्वारा किया जा सकता है।

जवाहर डी कंपोजर

यह डी कंपोजर भी जैव बैक्टीरिया से बना हुआ तरल पदार्थ है। इसके बैक्टीरिया सूखी घास को समाप्त कर इसे खाद बना देते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्म जीवों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है। इसका छिड़काव ड्रोन या स्प्रे पंप आदि की मदद से किया जा सकता है।

सुपर सीडर

हार्वेस्टर से गेहूं कटाई पर डंठल खेत में रह जाते हैं। इससे डंठल बारीक कटकर  मिट्टी में मिल जाते हैं। सुपर सीडर में दो कम्पार्टमेंट में बीज और उर्वरक भरे होते हैं। इसमें बिना जुताई पराली मिट्टी में मिल जाती है। इससे उत्पादन 8-10 फीसदी अधिक होता है।

हैप्पी सीडर

जब बोवनी की जाती है, तब यंत्र नरवाई के बीच भूमि चीरते हुए आगे बढ़ता है। उसी जगह बीज लगाते हैं। सिंचाई के बाद इन्हीं के बीच पौधे उगने लगते हैं। धीरे-धीरे नरवाई नष्ट होते रहती है। इससे किसान का अतिरिक्त खर्च और समय बचता है।

बिना जलाए करें नरवाई का निपटान, अपनाएं बायो-डीकंपोजर

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