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बदलते बंगाल का मिज़ाज नहीं समझ पाए मदन मित्रा; “राम मुसलमान थे” बयान पर बवाल, विपक्ष का हमला तेज और TMC डिफेंसिव मोड में

बदलते बंगाल का मिज़ाज नहीं समझ पाए मदन मित्रा; “राम मुसलमान थे” बयान पर बवाल, विपक्ष का हमला तेज और TMC डिफेंसिव मोड में

बदलते बंगाल का मिज़ाज नहीं समझ पाए मदन मित्रा; “राम मुसलमान थे” बयान पर बवाल, विपक्ष का हमला तेज और TMC डिफेंसिव मोड में। ममता के करीबी और TMC विधायक मदन मित्रा द्वारा राम का उपहास उड़ाने के पीछे वही मंशा थी कि बंगाल में राम का नाम नहीं चल सके लेकिन मदन बाबू बदलते माहौल को नहीं देख पा रहे हैं. उनके इस बयान से कोई सहमत होता नहीं दिख रहा, तो क्या यह बयान ममता के लिए उलटा पड़ जाएगा।

पश्चिम बंगाल में पिछली विधानसभा चुनाव के समय जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राम के नाम पर वोट की अपील की तब तृणमूल कांग्रेस (TMC) प्रमुख ममता बनर्जी ने एक रैली में चंडी पाठ कर बीजेपी के दांव को चित कर दिया था. पर वह 2021 था और बंगाली समाज के बीच राम का नाम तब उतना लोकप्रिय नहीं हुआ था. लेकिन आज राम के नाम पर बंगाली भद्र लोक भी प्रभावित हो जाता है।

मार्च 2000 से लेकर 2002 के अंत तक मैं कोलकाता में ही रहा हूं. वहां मैं एक प्रतिष्ठित अखबार का संपादक था. तब मैंने बहुत करीब से बंगाली समाज को देखा था. उस समय तक रामनवमी की वहां न तो सार्वजनिक अवकाश होता था न कोई समारोह. कुछ उत्तर भारतीय अवश्य रामनवमी के दिन अपने-अपने घरों में पूजा-पाठ कर लेते थे. पर अब माहौल बदल गया है. कई भजन मंडलियां राम धुन गाती हैं. रामनवमी में जुलूस भी निकलते हैं।

बंगाली समाज में राम कथा अब तेजी से लोकप्रिय हो रही

कोलकाता में रामचरित मानस के विशेषज्ञ कथा वाचक पंडित पुरुषोत्तम तिवारी बताते हैं कि बंगाली समाज में राम कथा अब तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं. वे कहते हैं कि निश्चित तौर पर इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बीजेपी के लोग हैं. पर अब जो माहौल है उसे खारिज तो नहीं किया जा सकता. यही कारण है कि TMC विधायक मदन मित्रा राम पर टिप्पणी कर फंस गए हैं. उनकी इस टिप्पणी का विरोध बंगाली भद्र लोक भी कर रहा है.

मदन मित्रा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी हैं. शारदा चिट फंड घोटाले में इनका नाम भी अभियुक्तों में आया था. सीबीआई ने इस घोटाले में इनको गिरफ्तार भी किया था. तब इन्होंने अपनी गिरफ्तारी के पीछे बीजेपी की साजिश बताया था. राजनीति से फिल्मों से तक के अपने सफर में मदन बाबू जानते थे कि राम को मुसलमान बताने से कितना विवाद खड़ा होगा.

ममता के दुलरुआ हैं मदन बाबू!

फिर भी TMC विधायक मदन मित्रा ने राम को मुसलमान बताया और कहा, यदि वे हिंदू होते तो उनका कोई सरनेम भी होता. फिर पब्लिक मंच पर वे एक साधू की वेश-भूषा में प्रकट हुए और कहा, कि भगवान राम तो राम जेठमलानी थे. भगवान राम को इस तरह अपमानित कर वे बीजेपी के राम दांव को चित करना चाहते थे किंतु वे स्वयं फंस गए.

धर्म की तलवार दुधारू होती है. जरा-सी भी चूक हुई तो खुद की भी अंगुली कट सकती है. मदन मित्रा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. अब देखना है कि ममता बनर्जी अपने इस दुलरुआ विधायक की इस हरकत से कैसे निपट पाती हैं. 2026 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हैं. बीजेपी का अगला टारगेट पश्चिम बंगाल है. उसे लगता है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा में जीत का मतलब है 42 सांसदों वाले प्रांत का बीजेपी के पास आ जाना. बिहार चुनाव की सफलता के बाद से उसके हौसले बढ़े हुए हैं.

बंगाल में हर समाज के आराध्य राम

ऐसे वक्त में खुद TMC विधायक ने बीजेपी को खुला खेल खेलने का अवसर दे दिया है. मदन मित्रा ने राम के नाम पर विवाद खड़ा कर TMC को डिफ़ेंसिव कर दिया है. कोलकाता के भवानीपुर में जनमें मदन बाबू यह भूल कैसे कर बैठे, यह आश्चर्यजनक है. भवानीपुर कोलकाता का वह इलाका है, जहां गुजराती और मारवाड़ी तथा अन्य प्रांतों के एलीट समुदाय की आबादी बहुत अधिक है. इसलिए यहां राम की पूजा पहले से होती रही है.

मगर मदन मित्रा बदलते बंगाल का मिजाज नहीं समझ सके हैं. वैसे कोलकाता या कलकत्ता तो 100 वर्ष से अधिक तक ब्रिटिश भारत की राजधानी रहा. देश के हर कोने और हर धर्म के लोग तो यहां रहते ही आए हैं, विश्व के देशों के लोग भी यहां हैं. औपनिवेशिक काल से ही कलकत्ता में यूरोप के अलग-अलग देशों के व्यापारी यहां आए और बस गए. कुछ तो अंग्रेजों के साथ चले गए कुछ आज भी बसे हुए हैं.

कृतिवास ने बांग्ला में लिखी रामायण

यही मिजाज पूरे बंगाल का है. ठीक है बंगाल बंगालियों का है किंतु यहां अब दूसरे क्षेत्रों से आए लोग भी रीति-रिवाज़ भी यहीं की माटी में घुल-मिल गए. वैष्णव आंदोलन पहले से भी यहां सक्रिय रहा है. 15वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु के कारण. इस आंदोलन ने बंगाल में मातृका पूजन के अलावा वैष्णव देवताओं की पूजा का अनुष्ठान शुरू कराया. कृष्ण पूजा की महिमा बंगाल में कोई 500 साल पुरानी है।

नादिया जिला तो वैष्णव आंदोलन का गढ़

नादिया जिला तो वैष्णव आंदोलन का गढ़ रहा है. करीब 600 साल पहले कृतिवास ने बांग्ला रामायण लिखी थी. इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि बंगाल भगवान राम की पूजा से बाहर रहा है. मगर रेनेसां के समय यहां कोलकाता और वहां पूजी जाने वाली काली का इतना असर पड़ा कि पूरा बंगाल काली पूजा के माध्यम से जाना जाने लगा. इसके बाद स्वामी राम कृष्ण परमहंस का प्रभाव यहाँ बहुत पड़ा.

CPM के नेतृत्त्व वाले लेफ़्ट मोर्चे का शासन रहा

मगर 2014 से बीजेपी जैसे-जैसे आगे बढ़ी बंगाल उसके निशाने पर रहा है. 1977 से 2010 तक यहां CPM के नेतृत्त्व वाले लेफ़्ट मोर्चे का शासन रहा है। इसके बाद से कांग्रेस कभी भी यहां से CPM को हटा नहीं पाई।  खुद ममता बनर्जी भी यहां के वाम शासन से कांग्रेस में रहते हुए लड़ नहीं पाईं. किंतु 1998 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और तृणमूल कांग्रेस बनाई तब से CPM को चुनौती मिलनी शुरू हुई।

अंततः 2011 में ममता बनर्जी ने TMC के माध्यम से पश्चिम बंगाल का क़िला कम्युनिस्टों से छीना. इस किले को ध्वस्त करने के लिए ममता ने मुस्लिम कार्ड खूब खेला. जो धार्मिक ध्रुवीकरण यहां कभी नहीं उभरा क्योंकि कम्युनिस्टों ने अपने शासन से धर्म को लोक में तो रहने दिया, उसे राजनीति में नहीं घुसने दिया. इसीलिए बंगाली भद्र लोक का चिंतन धर्म निरपेक्ष रहा.

गुजरात दंगों पर बंगाल की प्रतिक्रिया ठंडी थी

मगर ममता ने मुस्लिम कार्ड के जरिये बंगाली भद्र लोक की धर्म निरपेक्षता को चुनौती दी. हालांकि 2002 के गुजरात कांड के बाद से बंगाल का सेकुलर चरित्र गड़बड़ाने लगा था. मैं तब कोलकाता में ही था. उस समय मैंने देखा था कि साल्ट लेक, लेक टाउन, ट्रॉली गंज, डॉली गंज जैसे पॉश बंगाली इलाकों में गुजरात को लेकर सांप्रदायिक भावना उभरी थी. यहां के लोग भी मान रहे थे कि गुजरात के मुसलमानों ने भरूच में ट्रेन रोक कर फूंकी थी. यह विचित्र माहौल था.

पहली बार हुआ कि गुजरात के दंगा पीड़ितों ने बंगाली भद्र मानुष ने सहायता करने से मना कर दिया था. तब CPM के बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार थी और विपक्ष में ममता बनर्जी की TMC थी. उस समय बीजेपी भी माहौल देख रही थी. अंततः 2011 में ममता बनर्जी सत्ता में आईं.

शून्य से 77 तक पहुच गई बीजेपी

2011 में बीजेपी को विधानसभा में एक भी सीट नहीं मिली किंतु उसका वोट प्रतिशत 2006 की तुलना में दुगना हो गया उसे 4 प्रतिशत वोट मिले. 2016 में उसका पहली बार विधानसभा में खाता खुला. तीन सीटें बीजेपी को मिली और वोट प्रतिशत रहा 10. लेकिन 2021 में बीजेपी ने कमाल कर दिया, लेफ्ट और कांग्रेस गायब हो गए और बीजेपी को रिकॉर्ड 77 सीटें मिलीं तथा 38 प्रतिशत वोट भी।

रेंद्र मोदी ने बीजेपी की ओर से आक्रामक प्रचार किया

तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी की ओर से आक्रामक प्रचार किया और राम मंदिर के निर्माण को सुप्रीम कोर्ट से मिली हरी झंडी को पार्टी की सफलता बताया था. लेकिन उस वक्त ममता बनर्जी ने बंगाली पंडिताइन की तरह मंच से चंडी पाठ किया और कांग्रेस तथा लेफ्ट को 0 पर आउट कर दिया. TMC को 215 सीटें मिलीं. दो सीटों पर तब चुनाव हुआ था.

ममता के करीबी और TMC विधायक मदन मित्रा द्वारा राम का उपहास उड़ाने के पीछे वही मंशा थी कि बंगाल में राम का नाम नहीं चल सके लेकिन मदन बाबू बदलते माहौल को नहीं देख पा रहे हैं. उनके इस बयान से कोई सहमत होता नहीं दिख रहा क्योंकि हर एक को लगता है कि मदन बाबू ने बेमौसम का राग छेड़ा है।

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