इसी बहाने

हिन्दू या फिर अंग्रेजी नव वर्ष बस जीवन में खुशियां ही लाये

इसी बहाने (आशीष शुक्ला) वर्ष का क्या है वो तो समय के साथ बस गुजरता ही जाता है। पर अब तो लगता है कि वर्ष को भी धर्म रक्षकों की जंजीरों में बंध कर चलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यूं तो सभी मानते हैं कि दुनिया का केलेंडर ३१ दिसंबर को ही बदल जाता है। याद है जब हैप्पी न्यू ईयर की गूंज हमने भी बचपन से सुनीं है। थर्टी फर्स्ट की धूम को देखते-देखते जीवन का मध्य पड़ाव आ गया पर अब तो कुछ ऐसा लगने लगा जैसे मानों थर्टी फर्स्ट का यह उत्साह मना कर हमने कोई बहुत बड़ी गल्ती कर डाली। पिछले कुछ सालों से ही यह पता लगा कि दरअसल हम भारतवासियों को तो न्यू ईयर का सेलिब्रेशन ही नहीं मनाना चाहिए था। हम भले ही हिन्दू तिथि या फिर हिन्दू महीनों को याद न रख पाए पर कम से कम हमें अपने हिन्दू नव वर्ष को तो याद रखना ही चाहिये।

अब गलती हमारी है या हमारे समाज फिलहाल तो इसी पर मंथन जारी है। दरअसल यह बात दिमाग में तब कौंधी जब मैने भी किसी प्रिय मित्र को ३१ दिसंबर की शुभकामनाएं बिना सोचे विचारे दे डालीं। फिर क्या था मेरे मोबाइल पर चंद ही मिनटों में एक ज्ञान वर्धक पोस्ट आ धमकी। जिससे मेरे ज्ञान चच्छु खुलने में देर नहीं लगी। पोस्ट करने वाले का मेरे मेसेज पर अपार गुस्सा था।

उसने अपने संदेश के जरिये यह बताने की या यूं कहें थोपने की पूरी कोशिश कर डाली थी जिससे मुझे मेरी शुभकामनाओं पर ही अपराध बोध हावी सा हो गया। मेरा मन काफी विचलित हो गया, कि आखिर यह गुनाह मैने कर ही क्यों दिया? मुझे तो सारे संसार की जानकारी है फिर आखिर में यह क्यों नहीं याद रख पाया कि यह मेरा नया वर्ष है ही नहीं। वैसे यह तो सुना था कि हिन्दू नव वर्ष विक्रम संवत चैत्र प्रतिपदा के साथ हमारे प्राचीन पंचांग की तिथियां बदला करतीं हैं, पर यह नहीं पता था कि फिलहाल देश मे अंग्रेजी नए वर्ष की शुभकामनाएं देने पर मुझे कई ज्ञानवान लोगों के कोप भाजन का शिकार होना पड़ सकता है।

मैसेज पर मेरे द्वारा अंग्रेजी नए वर्ष की बधाई देने पर मुझ पर जो ज्ञान की वर्षा हुई उससे तो मैं धन्य हो गया। हालांकि इसे लेकर सवाल मन में उठ ही रहा था कि मेरे मैसेज पर मुझे सीख देने वाले महाशय ने कुछ रोज पूर्व ही मुझे एक अंग्रेजी तारीख पर अपने जन्म दिन की पार्टी में आमंत्रित किया था। वैसे इन ज्ञानवान सज्जन के सिर्फ स्वयं के जन्म दिन ही नहीं बल्कि उनके विवाह की वर्षगांठ औऱ बच्चे के जन्म दिन को भी उन्होंने उसी अंग्रेजी तारीख को मनाया था जिसकी आज मेरे द्वारा शुभकामनाएं देते ही वह मुझ पर हिन्दू और अंग्रेजी नए वर्ष में अंतर का पाठ पढ़ा रहे थे। ये सही है कि हम अपनी सनातन संस्कृति को न भूलें।

ये भी सही है कि हम जहां तक संभव हो अपनी प्राचीन मान्यताओं पर जितना हो सके अमल करें, पर ये कहां तक जायज है कि हमारी इस सनातन संस्कृति को किसी और संस्कृति के सिर जबरदस्ती थोपने की कोशिश करें? एक तरफ दुनिया के साथ चलने की कोशिश में जुटे और दूसरी तरफ इसमें तर्क वितर्क से दूर कुतर्क को सहारा बना कर एक दिनी हिंदुत्व का लबादा ओढ़ लें। हमारा सनातन नया वर्ष हो या फिर दुनिया का नया साल इसे लेकर भावनाओं की बाढ़ सोशल मीडिया पर पिछले एक दो साल में इस कदर बढ़ गई कि अब यह मसला लोगों की भावनाओं से कहीं ज्यादा स्वयं के सनातन प्रेमी होने का ढोंग तक करने लगा। समाज या संस्कृति को बांटना हमारा उद्देश्य बिल्कुल नहीं होना चाहिए क्योंकि यही एकमात्र ऐसा सुंदर देश है जहां अलग-अलग संस्कृतियों के समावेश के साथ सामंजस्यता नजर आती है। यहां की गंगा-जमुनी तहजीब के मध्य एक दूसरे के पर्वों में खुशियां बांटी जाती हैं। जहां विभिन्न संप्रदायों की अलग-अलग संस्कृतियों में लोग शामिल होते हैं।

देश में इन तकियानुशी विचारों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए जिसमें कभी अंग्रेजी नए साल और हिन्दू नव वर्ष में असमानता नजर आए, जहां अपने जन्मदिन, विवाह की की वर्षगांठ या फिर कई मौकों पर अंग्रेजी तारीख याद की जाए और अंग्रेजी तारीख के बीतते वर्ष औऱ नए साल के उत्साह पर यह सीख दी जाए कि यह गलत है हमें तो हिन्दू नव वर्ष मनाना चाहिये। खैर यह तो अपनी-अपनी विचारधारा है। कोई इसे अंग्रेजी नया साल मानें या हिन्दू नव वर्ष हम तो सिर्फ ईश्वर से यही कामना करते हैं कि अंग्रेजी नववर्ष या हिन्दू नववर्ष बस लाये तो आपके जीवन मे खुशियों का साम्राज्य लाये। आप सभी को इसी बहाने नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं…।

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