राजनीतिक डेस्क। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फुलपर और गोरखपुर की हार क्या भाजपा की ही सुनियोजित हिस्से की बानगी थी। दरअसल अब भाजपा के अंदर भी दबे स्वर से यह बात उठने लगी है कि योगी के बढ़ते कद को कतिपय भाजपाई भी पचा नहीं पा रहे थे जिन्हें अर्श से फर्श पर लाना जरूरी था और भाजपा के ही एक बड़े धड़े को नागवार गुजरने लगा था । अंततः योगी को फर्श तक पहुंचाने की स्क्रिप्ट फिट हो गई। इसकी शुरुआत टिकट विरतण से ही हो चुकी थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर लोकसभा सीट से अपनी पसंद के उम्मीदवार को चुनने के विशेष अधिकार से वंचित किया गया था। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा रहा है कि दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों सपा व बसपा के बीच अंतिम क्षण में हुए गठबंधन ने भाजपा को चौंका दिया था तथा स्थिति असहज हो गई थी।
जानकारी के अनुसार योगी पार्टी हाईकमान से अपने पसंद के व्यक्ति को टिकट दिलाना चाहते थे। इसके स्थान पर हाईकमान ने उनसे 3 नाम मांगे थे। योगी ने नाम भेजे परन्तु जोर दिया था कि उनकी पहली प्राथमिकता को माना जाए परन्तु उनके लिए अचम्भा था कि भाजपा के राज्य प्रभारी सुनील बांसल ने उपेंद्र दत्त शुक्ला के नाम की सिफारिश की। यही समान स्थिति फूलपुर में हुई थी जहां सुनील बांसल ने मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सिफारिश की थी।
भाजपा के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि पार्टी की हार दो राजनीतिक उद्देश्यों के कारण हुई। पहला यह कि योगी जो ऊंचा उड़ रहे थे, अब नीचे आ गए हैं। वरिष्ठ कार्यकर्ता ने कहा कि एक व्यक्ति जो अपने गृह हलके को संभाल नहीं सकता है उसे संसदीय बोर्ड में कैसे लाया जा सकता है। भाजपा के संसदीय बोर्ड के पास एम. वेंकैया नायडू के उपसभापति बनने के पश्चात एक पद खाली है।