रामभक्त की अनकही कहानी: 34 साल बाद भी घर नहीं लौटा कार सेवा के लिए अयोध्या गया कैमोर का जगदीश
Exclusiv 34 साल बाद भी घर नहीं लौटा कार सेवा के लिए अयोध्या गया कैमोर का जगदीश

34 साल बाद भी घर नहीं लौटा कार सेवा के लिए अयोध्या गया कैमोर का जगदीश, जिसके लापता होने के 33 साल बाद न्यायालय के आदेश से डेथ सर्टिफिकेट जारी हुआ। खबर पढ़कर आप जरूर चौंक जाएंगे। कटनी जिले से राममंदिर निर्माण महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने वाले रामभक्त की अनकही कहानी में कैमोर के रामभक्त जगदीश की पड़ताल यशभारत डॉट कॉम ने की है। पढ़ें पूरी खबर…..
कटनी/कैमोर (राजा दुबे) रामभक्तों के सैकड़ों वर्षों के संघर्ष और देश के सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्याधाम की पावन रामजन्म भूमि में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य एवं दिव्य मंदिर निर्माण का सपना साकार होने जा रहा। लाखों संतों, रामभक्तों और श्रद्धालुओं की उपस्थिति में दो दिन बाद नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही। देश एवं दुनिया के करोड़ों रामभक्त रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का यह विहंगम दृश्य अपनी आंखों से देख सकेंगे। यह दिन देखने के लिए असंख्य अनगिनत रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहुतियां दी हैं। इनमें से कुछ शहीद रामभक्तों के परिवारों को रामजन्म भूमि न्यास द्वारा प्राण प्रतिष्ठा समारोह का न्योता भेजा गया है पर कई ऐसे रामभक्त भी थे जिनका बलिदान गुमनामी के अंधेरे में खो गया है। कैमोर की खलवारा बाज़ार बस्ती में रहने वाला जगदीश गुप्ता एक ऐसा ही गुमनाम रामभक्त था जो अब से 34 साल पहले कार सेवा के लिए अयोध्या तो गया था पर आज तक वापस नहीं लौटा। उसका इंतजार करते करते माता – पिता और पत्नी इस संसार से विदा हो गए । इकलौते बेटे और दो छोटे भाईयों को भी नहीं लगता कि जगदीश अब कभी लौटेगा। जगदीश के अयोध्या से लापता होने के 33 साल बाद न्यायालय के आदेश पर उसका डेथ सर्टिफिकेट जारी किया गया है।

आडवाणी की रथयात्रा के साथ कटनी से अयोध्या के लिए हुआ था रवाना
बात उस समय की है जब 1990 में रामजन्म भूमि आंदोलन की लहर पूरे देश में व्याप्त थी। आडवाणी जी की रथयात्रा शुरू हो चुकी थी। जगह जगह जोशीले नारों के साथ रथयात्रा का स्वागत हो रहा था। 1990 के अक्टूबर मध्य में आडवाणी की रथयात्रा कटनी पहुंची थी। कटनी नगर सहित आस – पास के दर्जनों युवा रामभक्त रथयात्रा के पीछे पीछे अयोध्या के लिए रवाना हो गए थे। इन युवा रामभक्तों के एक जत्थे में कैमोर का खलवारा बाज़ार निवासी जगदीश गुप्ता भी था जो कार सेवा के लिए अयोध्या जाने की बात कह कर घर से निकला था। रथयात्रा को बिहार में तत्कालीन लालू यादव सरकार द्वारा रोक लिया गया। आडवाणी भी नज़रबंद कर लिए गए। बावजूद इसके भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के आव्हान पर लाखों की संख्या में देश के कोने कोने से लाखों कार सेवक अयोध्या पहुंच चुके थे।
यूपी पुलिस और सुरक्षा बलों ने निहत्थे कारसेवकों पर की फायरिंग
अक्टूबर 1990 में तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी जो किसी भी स्थिति में कारसेवकों को विवादित ढांचे तक नहीं पहुंचने देना चाहती थी। सुरक्षा के कड़े प्रबन्ध थे। मार्गो और चौराहों पर हथियारबंद जवान तैनात थे। कार सेवक मुख्य मार्ग छोड़कर खेतों – खलिहानों और पगडंडियों के रास्ते से अयोध्या में प्रवेश कर रहे थे। 30 अक्टूबर को सुरक्षा जवानों द्वारा कार सेवकों पर पहले अश्रु गैस के गोले और पानी की बौछारें छोड़ी गई जब कारसेवकों पर इसका कोई असर नहीं दिखा तब सुरक्षा जवानों ने कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाना शुरू कर दी। कुछ कारसेवक गोली लगने से म्रत्यु को प्राप्त हो गए तो कुछ इधर उधर भाग गये। कई ने सुरक्षा बलों से बचने नदी के गहरे पानी में छलांग लगा दी थी। जो तेज बहाव में बह गए। 30 अक्टूबर के बाद 2 नवंबर को फिर कारसेवक हजारों की संख्या में विवादित स्थल तक पहुंच गये थे। इस दिन फिर सुरक्षा बलों ने फ़ायरिंग की जिसमे 30 अक्टूबर से भी ज्यादा कारसेवक मारे गए। जनता में मुलायम सरकार के खिलाफ काफी असंतोष फैल गया। 30 अक्टूबर और 2 नवम्बर की फायरिंग की घटना के बाद कारसेवा रोक दी गई थी।
एक – एक कर लौटने लगे कारसेवक पर जगदीश नहीं लौटा
1990 में फायरिंग में कारसेवकों की मौत के पूरे देश में कोहराम मचा हुआ था। केंद्र की वीपी सिंह सरकार गिर चुकी थी। वीपी सिंह की सरकार भाजपा के समर्थन से ही बनी थी। भजपा के समर्थन वापस ले लेने से सरकार गिर गई। मामला थोड़ा शांत हुआ यो अयोध्या गए कार सेवक अपने अपने घर लौटने लगे। जगदीश गुप्ता के घर वालों को भी जगदीश के घर लौटने का इंतजार था पर वह नहीं लौटा। इंतज़ार करते करते पिता कनछेदी गुप्ता ने आंखे मूंद ली। मां भी चल बसी। 23 साल पति का इंतज़ार करते करते 2015 में जगदीश की पत्नी ने भी प्राण त्याग दिए।
जगदीश के दोनों छोटे भाई ब्रजवासी और सूरज परिवार सहित कैमोर छोड़कर गुजरात चले गए। वे अब परिवार सहित गुजरात में ही रहते हैं। जगदीश का इकलौता पुत्र सुरेश खलवारा बाजार में ही अपने परिवार के साथ रहता है। गुजर बसर के लिए किराने की एक छोटी सी दुकान है।
32 साल बाद बेटे ने डेथ सर्टिफिकेट के लिये लगाई अर्जी
जगदीश गुप्ता एक गरीब परिवार से था। उसके पिता कनछेदी गुप्ता एवरेस्ट फैक्ट्री में ठेका श्रमिक थे। परिवार में जगदीश गुप्ता उसके दो छोटे भाई ब्रजवासी और सूरज भी थे। जगदीश गुप्ता के चार बच्चे थे जिनमें 3 बेटियां और एक बेटा शामिल था। 1990 में जगदीश जब घर से अयोध्या के लिए निकला तब बड़ी बेटी 8 साल की थी। उसके बाद बेटा सुरेश और दो बेटियां थी। पिता के नहीं लौटने के बाद बेटे सुरेश ने ही दोनों चाचा की मदद से अपनी तीनों बहिनों की शादियां की। मकान और कुछ जायजाद के बंटवारे के लिए जगदीश के डेथ सर्टिफिकेट की जरूरत थी। अंततः जगदीश के लापता होने के 32 साल बाद बेटे ने पिता के डेथ सर्टिफिकेट के लिए व्यवहार न्यायालय विजयराघवगढ़ में अर्जी लगाई। न्यायालय के आदेश पर पिछले साल 2023 में ही जगदीश गुप्ता का डेथ सर्टिफिकेट जारी हुआ है।
जब भी राममंदिर का जिक्र होता है याद आता है जगदीश
खलवारा बाज़ार निवासी पूर्व मंडल अध्यक्ष एवं वरिष्ठ भाजपा नेता अशोक पाठक बताते है कि 1990 के दो साल बाद 1992 में कारसेवकों द्वारा अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया गया था। तब से लेकर अब तक जब भी राम मंदिर की चर्चा होती है उन्हें अपने पुराने साथी जगदीश गुप्ता की याद आ जाती है। श्री पाठक ने बताया कि 1990 में जगदीश उनके यहां पूजा वीडियो में काम करता था। अयोध्या जाने से पहले उसने उनसे एक जोड़ी कपड़ों का इंतज़ाम किया था। जगदीश की कद काठी उनके जैसी ही थी। उन्होंने अपना एक सफारी सूट उसे दिया था। उसे पहनकर और एक जोड़ी कपड़े लेकर ही जगदीश कैमोर से रवाना हुआ था। खलवारा बाजार निवासी एक अन्य वरिष्ठ नेता गुलशन ग्रोवर ने बताया कि जगदीश उनके साथ पढ़ा था। वे अच्छे दोस्त थे। पहले जगदीश के साथ खलवारा के कुछ अन्य युवक भी अयोध्या जाने वाले थे। बाद में घरवालों से अनुमति नहीं मिलने के कारण बाकी युवक नहीं जा पाये पर धुन का पक्का जगदीश अकेले ही अयोध्या चला गया।