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कन्या महाविद्यालय में गुरु-शिष्य परंपरा विषय पर गीत एवं कविता वाचन प्रतियोगिता का आयोजन

 कन्या महाविद्यालय में गुरु-शिष्य परंपरा विषय पर गीत एवं कविता वाचन प्रतियोगिता

कटनी- शासकीय कन्या महाविद्यालय कटनी के भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश शासन के निर्देशानुसार “गुरु-शिष्य परंपरा” विषय पर गीत एवं कविता वाचन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यह आयोजन महाविद्यालय के सभागार में आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति और शिक्षा के मूल में निहित गुरु-शिष्य संबंधों के महत्व को उजागर करना था। यह परंपरा भारतीय ज्ञान परंपरा का आधार रही है, जो न केवल ज्ञान का आदान-प्रदान करती है, बल्कि नैतिकता, अनुशासन और मूल्यों को भी जीवन में समाहित करती है।
कार्यक्रम का शुभारंभ प्राचार्य डॉ. चित्रा प्रभात के मार्गदर्शन में मां सरस्वती की आराधना और माल्यार्पण के साथ हुआ। डॉ. चित्रा प्रभात ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का हृदय है, जहां गुरु शिष्य को ज्ञान, नैतिकता और जीवन मूल्यों से समृद्ध करते हैं। वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. विमला मिंज ने अपने उद्बोधन में गुरु को दीपक की संज्ञा दी, जो शिष्य के जीवन से अज्ञानता का अंधकार दूर कर उसे बौद्धिक, मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर करता है।
प्रतियोगिता में महाविद्यालय की छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और गुरु-शिष्य परंपरा के विभिन्न आयामों जैसे गुरु का मार्गदर्शन, शिष्य की निष्ठा और इस परंपरा का आधुनिक संदर्भ में महत्व पर कविता एवं गीत प्रस्‍तुत किए। प्रतियोगिता के परिणाम में खुशी गुप्ता ने प्रथम, भूमि बैरागी ने द्वितीय और रिमी तिवारी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। सृष्टि उपाध्याय को सांत्वना पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सभी प्रतिभागियों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से इस परंपरा की महत्ता को प्रभावी ढंग से दर्शाया।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राध्यापकगण डॉ. रश्मि चतुर्वेदी, डॉ. अमिताभ पाण्डेय, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. रोशनी पाण्डेय, डॉ. के.जी. सिंह, डॉ. अशोक शर्मा, भीम बर्मन, प्रेमलाल कॉवरे, डॉ. सोनिया कश्यप, पूनम गर्ग, आंजनेय तिवारी, डॉ. वंदना चौहान, स्मृति दहायत, डॉ. अनिका वालिया, डॉ. मैत्रेयी शुक्ला, प्रियंका सोनी, डॉ. फूलचंद कोरी, डॉ. प्रतिमा सिंह, श्वेता कोरी और डॉ. संजयकांत भारद्वाज उपस्थित रहे। उनके मार्गदर्शन और प्रोत्साहन ने कार्यक्रम को और अधिक प्रभावशाली बनाया।

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