मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का अहम फैसला: पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध ‘दुष्कर्म’ की श्रेणी में नहीं, लेकिन ‘क्रूरता’ जरूर

ग्वालियर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि पत्नी के साथ इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध ‘दुष्कर्म’ की परिभाषा में नहीं आता, लेकिन इसे ‘क्रूरता’ माना जा सकता है। अदालत ने इस फैसले में पति के खिलाफ धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) के तहत दर्ज मामला निरस्त कर दिया, हालांकि दहेज प्रताड़ना का मामला अब भी चलेगा।
क्या है मामला?
ग्वालियर के सिरोल क्षेत्र निवासी महिला ने अपने पति के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। शिकायत में महिला ने दहेज की मांग, मारपीट और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोप लगाए थे। सिरोल थाना पुलिस ने इन आरोपों के आधार पर धारा 498A (दहेज प्रताड़ना) और धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) के तहत मामला दर्ज किया था।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
पति ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर धारा 377 के अंतर्गत दर्ज केस को रद्द करने की मांग की। उसका कहना था कि वह महिला का कानूनी पति है, और यह कृत्य अप्राकृतिक यौन संबंध की श्रेणी में नहीं आता।
हाईकोर्ट ने इस पर कहा:
“बालिग पत्नी के साथ पति द्वारा किया गया अप्राकृतिक यौन संबंध, दुष्कर्म या धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता।”लेकिन अगर ऐसा संबंध पत्नी की इच्छा के विरुद्ध, बलपूर्वक, या मारपीट के साथ किया गया हो, तो यह क्रूरता माना जाएगा।
केवल दहेज प्रताड़ना का मामला चलेगा
कोर्ट ने पति के खिलाफ धारा 377 को निरस्त करते हुए कहा कि अब सिर्फ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा चलेगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पति-पत्नी के आपसी रिश्तों में यदि कोई कृत्य क्रूरता की सीमा में आता है, तो उसे उस रूप में ही कानून में देखा जाना चाहिए, लेकिन उसे बलात्कार नहीं माना जा सकता।
पृष्ठभूमि: कानून की धाराएं
धारा 377 (IPC): अप्राकृतिक यौन संबंधों से संबंधित है। हालांकि, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। लेकिन विवाह के संदर्भ में यह अब भी विवादित स्थिति में है।धारा 498A (IPC): पति या उसके परिवार द्वारा महिला को दहेज के लिए प्रताड़ित करने पर लगाई जाती है।
यह मामला एक बार फिर भारतीय दंड संहिता की व्याख्या और विवाहित जीवन में सहमति के महत्व को लेकर कानूनी बहस के केंद्र में आ गया है। कोर्ट का यह निर्णय अन्य मामलों में भी मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत हो सकता है।अगर आप चाहें, तो मैं इसी विषय पर एक विश्लेषणात्मक लेख या संपादकीय भी तैयार कर सकता हूं।