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घुटनों का दर्द नहीं कई बड़ी बीमारियों को बुलवा देना है जिससे अधिकतर महिलाएं पीड़ित होती है

घुटनों का दर्द नहीं कई बड़ी बीमारियों को बुलवा देना है जिससे अधिकतर महिलाएं पीड़ित होती है जिस तरह से महिलाएं पूरे परिवार का ख्याल रखती है, ठीक वैसे ही घर की महिलाओं की सेहत का ध्यान रखना परिवार के अन्य सदस्यों की जिम्मेदारी है। अब जब हम हेल्‍थ की बात कर ही रहे है तो महिलाओं में घुटनों का दर्द उभर कर सबसे ऊपर आता है और समस्या यह है कि महिलाएं अपने घुटनों के दर्द या ओस्टियोअर्थराइटिस का इलाज खुद ही घरेलू नुस्खों से करती रहती है। इसी वजह से अंततः उनका दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि सर्जरी कराना ही अंतिम विकल्प रह जाता है। तो आइये इस वर्ल्ड अर्थराइटिस डे के मौके पर अर्थराइटिस और इसकी नई तकनीकों के बारे में जानते है ताकि महिलाओं को अपंगता भरी जिंदगी न बितानी पड़ें।

1. अर्थराइटिस को कैसे पहचानें?

साधारण शब्दों में समझे तो हमारे घुटने मुख्य रूप से दो हड्डियों के जोड़ से बने होते है और इन दोनों हड्डियों के बीच सुगमता लाने के लिए कार्टिलेज होता है जिससे घुटने आसानी से मुड़ पाते है और हम दिन-भर आसानी से काम कर पाते है। कई बार दुर्घटना, चोट, कसरत न करने, सारा दिन बैठे रहने, बीमारी, खाने पीने का ध्यान न रखने और मोटापे के कारण उम्र से पहले या उम्र बीतने के साथ कार्टिलेज घिसने लगता है या क्षतिग्रस्त होने लगता है। अगर समय पर जीवनशैली में बदलाव न करें तो यह कार्टिलेज इतना ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाता है कि घुटनों में अकड़न, सूजन और बहुत ज्यादा दर्द रहता है। दर्द से परेशान मरीज़ कई बार तो अपने बिस्तर तक से नहीं उठ पाते।

घुटनों का दर्द नहीं कई बड़ी बीमारियों को बुलवा देना है जिससे अधिकतर महिलाएं पीड़ित होती है

2. लाइफस्‍टाइल में बदलाव है जरूरी

वैसे तो कार्टिलेज के क्षतिग्रस्त के होने पर उसे दोबारा रिजनरेट नहीं किया जा सकता लेकिन आप अपनी जीवनशैली में बदलाव करके उसकी गति को रोक सकते है या धीमा कर सकते है। काफी मामलों में देखा गया है कि लोगों ने अपने लाइफस्टाइल में बदलाव करके अर्थराइटिस पर सफलता पाई है। सबसे जरूरी महत्वपूर्ण है कि महिलाओं को लगातार ऊंची हील के जूतों को पहनने से बचना चाहिए। साथ ही अपने वज़न पर नियंत्रण रखना जरूरी है, इसके लिए नियमित रूप से एक्‍सरसाइज करें।

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3. कितनी तरह का होता है अर्थराइटिस?

ओस्टियो अर्थराइटिस : इसमें आमतौर पर कार्टिलेज क्षतिग्रस्त होने लगता है। यह आमतौर पर 55 साल की उम्र के बाद होता है किंतु अगर समस्या पहले से हो तो युवा अवस्था में भी लोग इस बीमारी से ग्रस्त हो जाते है।
रूमेटॉयड अर्थराइटिस : यह ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम शरीर के खिलाफ काम करने लगता है। ब्लड टेस्ट नेगेटिव होने के बावजूद रूमेटॉयड अर्थराइटिस का आमतौर पर 35-55 साल की उम्र में होने का चांस ज्यादा होता है।
सोरायसिस अर्थराइटिस : इसमें सोरायसिस की वजह से घुटनों के जोड़ों को अर्थराइटिस होने का रिस्क रहता है।

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