कैमरे से कब्रगाह तक-स्वर्ग में बारूद की तस्वीर, तब पुलवामा अब #पहलगाम
कैमरे से कब्रगाह तक-स्वर्ग में बारूद की तस्वीर, तब पुलवामा अब #पहलगाम

कैमरे से कब्रगाह तक-स्वर्ग में बारूद की तस्वीर, तब पुलवामा अब #पहलगाम। कभी फ़िल्मों में कश्मीर की वादियाँ मोहब्बत का पैगाम देती थीं। बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, डल झील पर तैरते शिकारे, और झरनों की कलकल… जैसे कैमरे के लेंस से कोई सपना उतर रहा हो। राज कपूर से लेकर शाहिद कपूर तक, हर दौर के नायक-नायिकाएं इन नज़ारों में अपने प्रेम के गीत गाते रहे। ‘जब-जब फूल खिले’, ‘कश्मीर की कली’, ‘रोज़ा’, ‘मिशन कश्मीर’ से होते हुए ‘हैदर’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ तक सिनेमा ने यहां की हकीकत को दिखाने की भी कोशिश की — कभी रंगों में, कभी रक्त में।
लेकिन अब कैमरे डरते हैं, और कहानियाँ चीखों में बदल गई हैं।
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की खूबसूरत वादियाँ एक बार फिर लहूलुहान हो गईं। बैसरन घाटी में हुए इस आतंकवादी हमले ने 28 निर्दोष टूरिस्टों की जान ले ली और 20 से ज्यादा को घायल कर दिया। जो जगह कभी टूरिस्टों की मुस्कानों से गुलजार थी, वहां आज चीखों की गूंज सुनाई देती है।
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इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है — एक ऐसा संगठन जो लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ बताया जाता है। जिन नामों की तस्वीरें सामने आई हैं, वे हैं: आसिफ फौजी, सुलेमान शाह, अबू तल्हा, आदिल गुरी और आसिफ शेख। कहा जा रहा है कि हमले से पहले ये सभी एक साथ कैमरे में कैद हुए थे — जैसे अपनी हैवानियत को भी फ़्रेम में अमर करना चाहते हों।
सरकार ने तेजी से कदम उठाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना विदेश दौरा बीच में छोड़ दिया। गृहमंत्री श्री अमित शाह श्रीनगर पहुंचे। NIA और सुरक्षा एजेंसियों ने जांच शुरू कर दी है।
लेकिन सवाल अब भी वहीं है: कब तक?
कश्मीर के हर पेड़ ने प्रेम गीत भी सुने हैं और बारूद की गंध भी महसूस की है। क्या हम उस दौर में लौट पाएंगे जब कैमरे सिर्फ प्रेम कहानियाँ शूट करते थे — गोलियों के छेद नहीं?
उम्मीद अब भी ज़िंदा है।
क्योंकि जितनी बार कश्मीर ने दर्द सहा है, उतनी ही बार उसने खुद को फिर से उठाया है। झीलें अब भी बहती हैं, शिकारे अब भी तैरते हैं — और शायद किसी दिन, फिर कोई फिल्म निर्माता वहां लौटेगा… प्यार की कहानी कहने
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