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Chawal: धान में बौनपन की बीमारी ने बढ़ाई किसानों की टेंशन, SRBSD वायरस की पुष्टि

Chawal: धान में बौनपन की बीमारी ने बढ़ाई किसानों की टेंशन, SRBSD वायरस की पुष्टि

Chawal: धान में बौनपन की बीमारी ने बढ़ाई किसानों की टेंशन, SRBSD वायरस की पुष्टि हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों में धान की फसल को SRBSD वायरस से खतरा है. यह वायरस पौधों को बौना बनाता है और पैदावार कम करता है. इस वायरस का असर कुछ खास किस्मों के धान पर ज्यादा देखा गया है. इस खबर में हम इस वायरस के बारे में विस्तार से जानेंगे और बचाव के उपायों पर बात करेंगे

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Chawal: धान में बौनपन की बीमारी ने बढ़ाई किसानों की टेंशन, SRBSD वायरस की पुष्टि

वायरस के कारण धान की फसल काली पड़ रही

देशभर के अलग-अलग इलाकों में धान की कई किस्म बोई जाती हैं. इन बैराइटियों की अलग पहचान है, लेकिन समय देश के ज्यादातर किसान अपनी-अपनी धान को लेकर परेशान हैं. इसके पीछे की वजह चीन का एक वायरस है, जिसे पहली बार साल 2001 में डिटेक्ट किया गया था. इस वायरस के कारण धान की फसल काली पड़ रही है. यह वायरस सबसे पहले दक्षिणी चीन में मिला था, इसलिए इसका नाम सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस पड़ा. अब इस वायरस को लेकर हरियाणा में सरकार और कृषि वैज्ञानिक भी अलर्ट मोड पर आ गए हैं. आइये इस आर्टिकल में समझते हैं क्या है यह वायरस और कैसे फसलों को नुकसान पहुंचाता है

 बासमती अब संकट के बादल

हरियाणा में धान का काफी रकबा लगाया जाता है. धान की फसल किसानों की मुख्य फसल होती है. यहां का बासमती पूरी दुनिया में अपनी एक अलग ही पहचान रखता है. इस पहचान पर अब संकट के बादल घिर आए हैं. इस बात को खुद सरकार भी मानती है. बीते दिनों इस वायरस का मुद्दा हरियाणा विधानसभा में उठाया गया. कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने बताया कि प्रदेश में 40 लाख एकड़ में बोई गई धान की फसल में से लगभग 92,000 एकड़ की फसल पर इस वायरस का असर हुआ है.

सरकार की तरफ से इस मामले पर कहा गया कि हम इस वायरस पर नजर रख रहे हैं. अगर किसान कृषि वैज्ञानिकों की सलाह और समय-समय पर दिए जाने वाले सरकारी निर्देशों के अनुसार धान की बुवाई करें, तो इस तरह की बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है.

क्या है SRBSD वायरस ?

सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (SRBSD) नाम के इस वायरस को पहली बार चीन में डिटेक्ट किया गया था. साल 2008 तक इस वायरस का प्रकोप केवल दक्षिणी चीन तक ही सीमित रहा है. पहली बार साल 2009 में चीन से बाहर वियतनाम में ये वायरस डिटेक्ट किया गया था. इसके बाद से ही इस वायरस को असर दूसरे देशों में देखने को मिला.

धान पर क्या असर करता है ये वायरस?

यह वायरस व्हाइट-बैक्ड प्लांट हॉपर (डब्ल्यूबीपीएच) नामक एक रोग वाहक के माध्यम से फैलता है, जो धान के पौधों का रस चूसता है और संक्रमित पौधों से स्वस्थ पौधों में विषाणु फैलता है. आसान भाषा कहा जाए तो ये वायरस धान के पौधे को बढ़ने नहीं देता है. यानि इस बीमारी से ग्रसित फसल में धान के पौधे 40 फीसदी तक छोटे हो जाते हैं और पैदावार भी बुरी तरह प्रभावित होती है.

इस वायरस को लेकर ऐसा माना जाता है कि फसल की बुआई के बाद जितनी ये फसल पर लग जाए तो उसी तेजी के साथ फसल को चौपट करता है. इस वायरस के कारण गंभीर रूप से रोग ग्रस्त पौधे मुरझाकर मर जाते हैं इसके साथ ही उन पौधों का निचला हिस्सा काला पड़ जाता है. संक्रमित पौधे के तनों पर छोटी धारीदार सफेद या काले मोमी गॉल भी साफ तौर पर दिखाई पड़ती है,

कब तक रहता है इस वायरस का नजर?

SRBSD वायरस को लेकर जो स्टडी की गई है. उससे पता चलता है कि ये शुरुआती समय में बहुत ज्यादा असरदार होता है. फसलों की उत्पादन क्षमता को 50 प्रतिशत तक कम कर देता है. हालांकि समय बीतने के साथ ही कम हो जाता है. इसके अलावा केवल तब गंभीर होता है जब फसल अंकुरित हो रही हो. अगर उस समय आपकी फसल बच जाती है तो फिर डरने की कोई जरूरत नहीं है, इस बीमारी को भारत में आज से ठीक 3 साल पहले डिटेक्ट किया गया था.

वायरस से अपनी फसल को कैसे बचाएं?

वैज्ञानिकों की तरफ से इस वायरस बचाव के लिए कई एडवाइजरी जारी की गई हैं. लगभग हर साल धान की बुआई के समय कृषि वैज्ञानिक इस वायरस को लेकर किसानों को जानकारी देते हैं. एडवाइजरी के मुताबिक यदि खेत में व्हाइट बैक्ड प्लांट हॉपर की मौजूदगी दिखाई दे तो उससे बचाव के लिए पैक्सोलैम 10 एससी (ट्राइफ्लूमेजोपाइरिन) 235 मिली प्रति हेक्टेयर या ओशीन टोकेन 20एसजी (डाइनोटेफरॉन) 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर या चेस 50 डब्ल्यू जी (पाइमेट्रोजीन) 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर का छिडक़ाव किया जाना चाहिए. इसके अलावा अगर फसल को लेकर पूरी तरह से सुरक्षित और बेहतर परिणाम हासिल करना चाहते हैं तो पौधे की आधार में ही दवा का छिड़काव करें. इससे वायरस को बढ़ने का समय नहीं मिलता है.

चावल की इन किस्मों पर पड़ा असर

इस वायरस के कारण चावल की कई किस्में प्रभावित हो रही हैं. मारू IARI की जांच में बासमती (पूसा-1962, 1718, 1121, 1509, 1847 और CSR-30) और गैर-बासमती (PR-114, 130, 131, 136, पायनियर हाइब्रिड और एराइज स्विफ्ट गोल्ड) समेत कई चावलों पर इस वायरस का असर देखने को मिला है. इसके कारण उत्पादन घटा है साथ ही बाजार की डिमांड भी पूरी नहीं हो सकी है.Chawal: धान में बौनपन की बीमारी ने बढ़ाई किसानों की टेंशन, SRBSD वायरस की पुष्टि

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