इस वजह से धार और झाबुआ में बढ़ी भाजपा की चिंता, संघ का लेंगे सहारा

इंदौर। मालवा-निमाड़ के आदिवासी जिले झाबुआ और धार की विधानसभा सीटों को लेकर भाजपा ज्यादा चिंतित है। विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर इस बार रणनीतिकार लगातार मंथन कर रहे हैं और मौजूदा कुछ विधायकों के टिकट इस बार दोनों जिलों में काटे जाएंगे, या फिर उन्हें दूसरी विधानसभा सीटों से लड़ाया जाएगा।
संगठन को चार सीटों को लेकर फीडबैक मिला है कि, यदि चेहरे नहीं बदले तो पार्टी को उसकी कीमत चुनाव में चुकाना होगी। आदिवासी अंचल कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है। पहले यहां के लोग चुनाव में ‘पंजे’ के अलावा कोई दूसरे चुनाव चिन्ह पर विश्वास ही नहीं करते थे। भाजपा ने यहां अपनी जमीन तैयार करने के लिए काफी मेहनत की।
18 साल पहले भाजपा ने झाबुआ में हिंदू संगम के जरिए आदिवासी परिवारों में पैठ बनाई और उसका राजनीतिक फायदा भी मिला। तब झाबुआ जिले की सभी सीटें भाजपा ने जीती थीं, लेकिन बाद में आरएसएस की गतिविधियां कमजोर पड़ती गई। हालांकि इसके बाद भाजपा को कभी आदिवासी जिलों की विधानसभा सीटों पर ‘शून्य” का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन दोनों जिलों की ज्यादातर सीटों का मिजाज ‘एक बार इसको, एक बार उसको मौका दो” जैसा है।
इस बार परेशानी की वजह भी यही है। पिछली बार दोनों जिलों में भाजपा के प्रत्याशी ज्यादा जीते थे, ऐसे में इस बार उन सीटों पर जनप्रतिनिधियों के खिलाफ एंटीइंकमबेंसी जनता में नजर आ रही है। झाबुआ जिले में सरकार ने विकास के कई काम करवाए हैं। सड़कों का जाल गांवों तक बिछा है, आवास योजना का भी लाभ काफी दिया गया। इतने कामों के बावजूद फीडबैक भाजपा के पक्ष में नहीं होने से रणनीतिकार आश्चर्यचकित हैं।
कुक्षी और गंधवानी सीट को लेकर भाजपा ने विशेष रणनीति तैयार की है और यहां पार्टी दमदार उम्मीदवार खोज रही है। जिले की दूसरी पांच सीटों में से तीन पर मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं। उधर, झाबुआ जिले की तीन सीटों पर भी लड़ाई चेहरे की है।
थांदला विधानसभा सीट के लिए पिछली बार कांग्रेस और भाजपा दोनों ही उम्मीदवार के चयन पर गच्चा खा गई थी और जीत भाजपा के बागी उम्मीदवार कलसिंह भाबर को मिली थी। बागी उम्मीदवार की भाजपा में घर वापसी हो गई, लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी इस बार उन्हें ही मैदान में उतार सकती है। पेटलवाद सीट के लिए निर्मला भूरिया पर संगठन फिर विश्वास जता सकता है। झाबुआ सीट पर संघ की पसंद को संगठन तवज्जो देगा, क्योंकि यहां लोगों के बीच भी संघ का नेटवर्क है। आलीराजपुर जिले की दोनों सीटों के मामले में संगठन को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है।
संघ हुआ सक्रिय, बैठकों का दौर शुरू
दोनों ही जिलों में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने कमान संभाल ली है और बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। नाराज नेताओं को मनाया जा रहा है और बैठकों के माध्यम से घर बैठे कार्यकर्ताओं को मैदान में उतरने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। उधर, संभागीय संगठन मंत्री जयपाल सिंह चावड़ा के दौरे भी लगातार दोनों जिलों में होते रहे हैं और वे पदाधिकारियों से संपर्क में रहते हैं। संभाग में सबसे ज्यादा वे इन जिलों की सीटों पर ही फोकस कर रहे हैं।
कमजोर हुआ संगठन
झाबुआ में संगठन की पकड़ कमजोर हुई है। पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की यात्रा के एक दिन पहले संगठन को जिलाध्यक्ष बदलना पड़ा। मनोहर सेठिया के फोटो सोशल मीडिया पर आ गए और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। जिस नेता को अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई, वे जिले के दूसरे पदाधिकारियों के साथ पटरी नहीं बैठा पा रहे हैं।