
ऑपरेशन सिंदूर से लेकर विधानसभा चुनाव, वक्फ कानून, उपराष्ट्रपति के इस्तीफे और वोटर लिस्ट विवाद तक—2025 में राजनीति हर मोर्चे पर सुर्खियों में रही
साल 2025 भी हर साल की तरह देश की राजनीति के लिहाज से बेहद घटनापूर्ण रहा। पूरे वर्ष सत्ता, विपक्ष, चुनावी प्रक्रिया और संवैधानिक संस्थाओं को लेकर तीखी बहस और विवाद देखने को मिले। हालांकि, इन सबके बीच कुछ ऐसे पल भी आए जब देश एकजुट नजर आया।
ऑपरेशन सिंदूर: राजनीतिक एकजुटता की अनूठी मिसाल
2025 की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना ऑपरेशन सिंदूर रही। इस दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष ने मतभेद भुलाकर देश के हित में एकजुटता दिखाई। सीजफायर को लेकर आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह रहे, लेकिन जिस तरह सभी दलों के सांसदों की अलग-अलग टीमें बनाकर उन्हें दुनिया भर में भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा गया, उसने भारतीय राजनीति में एक नई और सकारात्मक मिसाल कायम की।
न्यायपालिका और संवैधानिक संस्थान चर्चा मे
2025 में न्यायपालिका भी कई फैसलों और याचिकाओं के चलते लगातार सुर्खियों में रही। वहीं चुनाव आयोग द्वारा कराए गए SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) को लेकर भी बड़ा विवाद खड़ा हुआ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ अभियान तक छेड़ दिया।
अप्रत्याशित रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे
2025 में देश की दो अहम विधानसभाओं—दिल्ली और बिहार—के चुनाव हुए और दोनों के नतीजे चौंकाने वाले रहे।
बिहार चुनाव:
बिहार में नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी से ज्यादा चर्चा में रहा विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल का महज 25 सीटों पर सिमटना। यह नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव की याद दिलाने वाला रहा। हालांकि, तेजस्वी यादव की आरजेडी को इतनी सीटें जरूर मिलीं कि वे नेता प्रतिपक्ष का दर्जा हासिल कर सके।
दिल्ली चुनाव:
दिल्ली विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन हुआ। आम आदमी पार्टी को शिकस्त देकर भारतीय जनता पार्टी ने राजधानी में सत्ता हासिल की। रेखा गुप्ता दिल्ली की नई मुख्यमंत्री बनीं। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा। केजरीवाल की विदाई उतनी ही नाटकीय रही, जितनी 2013 में शीला दीक्षित को हराकर उनकी राजनीति में एंट्री रही थी।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर घमासान
8 अप्रैल से देशभर में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 लागू कर दिया गया। यह विधेयक 2 अप्रैल को लोकसभा और 3 अप्रैल को राज्यसभा से पारित हुआ था, जबकि 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बना।
सरकार के अनुसार, इस कानून का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना, विभिन्न मुस्लिम समुदायों की भागीदारी बढ़ाना और सामाजिक कल्याण को मजबूत करना है। हालांकि, कुछ मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया। कानून की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दर्जन भर याचिकाएं दायर हुईं, लेकिन 15 सितंबर को शीर्ष अदालत ने कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा
2025 की एक और अभूतपूर्व घटना रही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा। 21 जुलाई को उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए पद छोड़ दिया और इसके बाद सार्वजनिक जीवन से लगभग गायब हो गए। नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की घोषणा तक विपक्ष सरकार पर लगातार सवाल उठाता रहा। अंततः 12 सितंबर को सीपी राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति पद का कार्यभार संभाला, जिसके साथ ही यह विवाद भी थम गया।
वोटर लिस्ट और SIR को लेकर सियासी संग्राम
विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में चुनाव आयोग द्वारा कराए गए SIR को लेकर सबसे ज्यादा विरोध देखने को मिला। इसके बाद पश्चिम बंगाल सहित देश के 12 राज्यों में यह प्रक्रिया शुरू हुई। चुनाव आयोग का कहना है कि यह अभियान चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में चलेगा, ताकि वोटर लिस्ट पूरी तरह शुद्ध की जा सके। बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने इसके विरोध में लंबी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ भी निकाली, हालांकि चुनावी नतीजों पर इसका खास असर नहीं दिखा। इसके बावजूद राहुल गांधी ने संसद और सड़कों पर अपनी ‘वोट चोरी’ मुहिम जारी रखी।
साल 2025 भारतीय राजनीति के इतिहास में चुनावी उलटफेर, बड़े संवैधानिक फैसलों और संस्थागत बहसों के लिए याद किया जाएगा—जहां टकराव भी दिखा, और राष्ट्रीय हित में एकजुटता की झलक भी।







