सरकारें आएंगी-जाएंगी, मगर यह देश रहना चाहिये, इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिये..

इसी बहाने (आशीष शुक्ला )। चुनाव की आचार संहिता किसी भी पल लग जायेगी तब माननीयों की वर्तमान की दूरदर्शिता ही काम आएगी। इसी काम मे फिलहाल प्रदेश के सम्मानीय जी जान से जुटे हैं। वैसे तो पांच वर्षों में घोषणाओं का कोई अंत ही नहीं रहा, लेकिन अब जब मैच का अंतिम ओवर खेला जा रहा है तो लास्ट बाल पर ही सही मैच जीतने की ललक भला किसे नहीं? लेकिन इस बार का मैच कांटे का है।
इकतरफा मुकाबले के गुंजाइश कम ही है। कहा तो यह भी जा रहा है सुपर ओवर भी हो जाये तो आश्चर्य नहीं। टाई होने के चांस भी नजर आ रहे हैं लेकिन इस टाई में दोनों टीमों की किसी दूसरे टीम के रन जोड़ कर सत्ता अर्थात मैच के कप पर कब्ज़ा जमाने की गुंजाइश ज्यादा है। एक तरफ वेस्टइंडीज का भारत दौरा शुरू हुआ है, टेस्ट के पहले दिन का खेल अभी चल ही रहा है तो इधर अजब एमपी के गजब माननीयों का टेस्ट २-३ रोज में शुरू होने वाला है। पहले इन्हें टिकट के टेस्ट से जूझना पड़ेगा, फिर यहां बाजी मारी तो नाराज अपनों के ही टेस्ट में पास होना पड़ेगा।
फिर उसके बाद असली परीक्षा जनता के टेस्ट की होगी। यही टेस्ट २०-२२ दिन में खेलने के सारे मौके देगा। कुछ फ्रंट फुट पर खेलेंगे तो कुछ बैकफुट के सहारे मैच को आखरी बाल तक जीतने की कोशिश करेंगे। कमी उनकी भी नहीं जो इस मैच के पहले ही हार मान लेंगे, फिर कमेंट्रेटर कहेगा… औपचारिकता ही शेष। यह सब चलता रहता है।
हर पांच साल में इसी तरह चुनावी मैच खेले जाते हैं। ठीक उस टेस्ट की तरह जो मैदान पर पांच दिन का होता है और सत्ता में पांच साल का। वैसे पांच का हमारे जीवन मे बहुत महत्वपूर्ण योगदान है तभी तो पंचकर्म जैसे कर्म आज भी प्रासंगिक हैं। पांच साल की यह परीक्षा कुछ रोज में शुरू होगी। एनरोलमेंट के बाद टिकट रूपी प्रवेश पत्र पाकर जनता की कक्षा में मिलेगी। परीक्षा कापी जिसमे देना पड़ेगा पांच साल के सवालों का जवाब। सवाल कठिन तो होंगे, सही जवाब दिलाएंगे जीत औऱ गलत जवाब मतलब खेल खत्म। इसमे नहीं होगी कोई लाइफ लाइन। जो कुछ करना सिर्फ परीक्षा देने वालों को ही करना। फायदा थोड़ा बहुत इतना कि इसमें नकल करने की छूट रहेगी लेकिन किसी ने सही कहा है कि नकल करने में भी तो अक्ल की जरूरत होती है।
वैसे इस मामले में माननीयों का कोई तोड़ नहीं । उनसे नकल करते भी बनती है और इस मामले में अक्ल भी खूब चलती है। परिक्षात्मक व्यवधान के बीच चार दिन की शांति फिर जो जीता वही सिकन्दर। सभा समाप्त, मैच खत्म, अब फिर से पांच साल जनता की अग्नि परीक्षा शुरू। फिर से वही पेट की परीक्षा, फिर से युवाओं को रोजगार की परीक्षा, फिर से आम गरीब को महगाई की परीक्षा, फिर से महिलाओं को अपनी रक्षा की परीक्षा, क्षेत्रों के विकास की परीक्षा, किसान की आय को बढाने की परीक्षा, सीमा पार से खंजर लिए पड़ोसियों से रक्षा की परीक्षा.. और न जाने और कितनी परीक्षा। बहरहाल परीक्षाओं का तो डट कर मुकाबला करने में देशवासी माहिर हैं। सवाल तो अभी सिर्फ यही है कि इस लोकतंत्र की परीक्षा में हमेशा सफलता मिले। तभी तो भारत रत्न अटल जी ने कहा था… “सरकार आएंगी जाएंगे मगर यह देश रहना चाहिए इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए….