
हाल ही में शुक्र ग्रह (Venus)के बादलों में बहुत अधिक फॉस्फीन (Phosphiene) पाए जाने की खोज ने हलचल मचा दी थी. शोध में इस संभावना से की यह गैस पृथ्वी (Earth) पर केवल सूक्ष्मजीव (Microbes) ही पैदा करते हैं, इससे लोगों में कोतूहल पैदा हो गया था कि क्या शुक्र ग्रह पर भी जीवन संभव है. लेकिन अब इस शोध के दावों पर सवाल उठने लगे हैं. इसके साथ ही इस पर भी गंभीरता से विचार हो रहा है कि क्या इस खोज को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है
मच गया था तहलका
इस साल सितंबर में खगोलविदों के एक समूह ने एक शोधपत्र के जरिए बताया था कि उन्हें शुक्र ग्रह पर बहुत सारी मात्रा में फॉस्फीन मिली है. उनके मुताबिक शुक्र ग्रह पर 53 किलोमीटर की ऊंचाई पर फॉस्फीन का 20 पार्ट्स पर बिलयन की मात्रा में मिलने बहुत ही ज्यादा थी.
स्रोत की गुंजाइश नहीं फिर इतनी मात्रा
यह दावा अंतरिक्ष विज्ञान जगत में एक बड़े चौकाने वाली जानकारी के तौर पर सामने आया था क्योंकि ग्रह विज्ञानियों को इस जहरीली गैस का आसपास कोई भी स्रोत होने की उम्मीद नहीं थी. इस मामले में रोचक मोड़ तब आया जब एक अन्य खगोलविद ने अपने शोधपत्र में दावा किया कि फॉस्फीन पृथ्वी पर केवल सूक्ष्मजीवी ही बना पाते हैं, इसलिए शुक्रग्रह पर बड़ी मात्रा में फॉस्फीन पाई जाने से इस ग्रह पर सूक्ष्म जीवन के होने का संकेत मिलता है.
ये दलीलें भी गौर करने वाली
इस शोध में इस शुक्र पर सूक्ष्म जीवन होना केवल एक संभावना थी और प्रचुर फॉस्फीन होने की बहुत सी अन्य व्याख्या भी संभव थीं. अब इस संभावना पर भी सवाल उठ रहे हैं. इस बारे में सिड पेर्किंस ने साइंसमैग के लिए लिखा, ”फॉसफोरस के खनिज जिनमें फॉस्फीन भी हो सकता है, शुक्र की सतह से इतनी ऊंचाई पर नहीं पहुंच सकते हैं. वहीं आकाशीय बिजली या फिर सूर्य के प्रकाश से होने वाले रासायनिक प्रतिक्रियाओं के कारण भी इतनी गैस नहीं बन सकती है. पृथ्वी पर भी ज्वालामुखी बहुत ही कम फॉस्फीन पैदा करते हैं. इतनी ज्यादा फॉस्फीन के लिए शुक्र पर अभी जितनी ज्वालामुखी गतिविधि है उसकी तुलना में करीब 200 गुना ज्यादा ज्वालामुखी गतिविधि की जरूरत होगी.
क्या कहा गया था शोधपत्र में
14 सितंबर को नेचर में प्रकाशित शोध पत्र में शुक्र पर फॉस्फीन गैस के बारे में लिखते हुए इस समूह ने कहा कि फॉस्फीन किसी अज्ञात फोटोकैमिस्ट्री या जियोकैमिस्ट्री के कारण बन सकती है या फिर पृथ्वी की तरह की जैविक उत्पादन की तरह पैदा हो सकती है. इस मामले में दूसरे स्पैक्ट्रल पहलुओं को देखा जाना चाहिए.

शुक्र ग्रह (Venus) पर जीवन के अनुकूल हालात बिलकुल नहीं माने जाते हैं. सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)
यूं उठे सवाल
इसी बात को मीडिया में सनसनी के तौर पर देखा जाने लगा जबकि जीवन की संभावना केवल अन्य संभावनाओं में से एक थी जिसकी पुष्टी तक नहीं हो सकी थी. लेकिन कुछ सप्ताह बाद कई खगोलविदों ने पहले समूह के आंकड़ों खास कर शुक्र के वायुमंडल पर बहुतायत में फॉस्फीन की मौजूदगी पर सवाल उठाए. उन्होंने यह भी जानना चाहा कि इस शोध के उपकरण और पद्धतियां सही थे या नहीं और क्या वाकई वे शुक्र पर इससे पहले से ज्ञात स्रोतों से आंकी गई फॉस्फीन से ज्यादा मात्रा के होने के निष्कर्ष क समर्थन करते हैं.
अगर शोध के बात करें तो यह शोध कोई एक दिन में नहीं हो गया. शोधकर्ता साल 2017 से इसका अध्ययन कर रहे थे. फिर आपत्तियों में से एक यह भी है कि इस समूह के पास पर्याप्त आंकड़े नहीं थे. फिर भी समूह ने खुद कहा था कि वह इन पड़तालों की पुष्टि करने का प्रयास कर रहा है. इसके अलावा एक संदेह यह भी है कि फॉस्फीन की मात्रा ही कम हो सकती है. ऐसे और भी संदेह जताए जा रहे हैं जिनका जवाब केवल बेहतर और पुष्ट अवलोकन से मिल सकता है.