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बरसी महोत्सव में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

बाबा ईश्‍वरशाह

कटनी। माधवनगर के बरसी मेले में उमड़ी भीड़ ने पिछले रिकार्ड तोड़ दिए। शहर एवं देश के कोने-कोने से आए श्रद्घालुओं ने आस्था के सागर में गोते लगाए। सारा आलम बाबा माधवशाह, बाबा नारायणशाह के जयकारों से गूंज उठा। दरबार में बनाए गए शाही पंडाल में हजारों हाथ हरे माधव के बोल के साथखड़े हो गए। सत्संग भजन, कीर्तन का सिलसिला देर रात तक चलता रहा। आज रात्रि बाबा ईश्वरशाह के आध्यात्मिक सत्संग के साथ बरसी मेले का समापन हो जाएगा।भजन मंडलियों के कीर्तन ने बरसी मेले में चार चांद लगा दिए। चहुंओर बस यही स्वर सुनाई पड़ रहे हैं, जब तक सूरज चांद रहेगा, बाबा तेरा नाम रहेगा। बरसी महोत्सव के दूसरे और आखिरी दिन आज प्रातः 9 बजे से 12 बजे तक बाबा ईश्वर शाह द्वारा अमृत वर्षा के साथ दोपहर 12 बजे से सायं 4 बजे तक आम भण्डारा (लंगर) का आयोजन किया गया।

मेलास्थल पर बने सुसज्जित पंडाल में सतगुरू साहब के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से आए भक्तों का रेला लगा रहा। बरसी मेले के अवसर पर समूचे माधवनगर को दुल्हन की तरह सजा दिया गया था। लाउडस्पीकरों के जरिए समूचे क्षेत्र में बाबा की भक्ति से सम्बंधित गीतों का सिलसिला जारी है, जो आज देर रात्रि तक चलता रहेगा। 80 सीसीटीव्ही कैमरों से चप्पे-चप्पे पर निगरानी रखी जा रही है। पिछले वर्षो की तरह आयोजन को लेकर इस वर्ष भी युवाओं में खासा उत्साह देखने को मिला। सेवाकार्यों में युवाओं के समूह व्यस्त नजर आए। विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं ने भी मेला स्थल पर इंतजामों का जिम्मा सम्हाले रखा।

सतगुरू कराते हैं आत्मा के सत्स्वरूप की पहचान – बाबा ईश्वरशाह
हरे माधव सत्संग में प्रवचनों की

दर्शन करते श्रद्वालु

अमृतवर्षा करते हुए सतगुरू बाबा ईश्वरशाह ने फरमाया कि आत्मा सत्य स्वरूप परमात्मा का अंश होते हुए भी अपनी असलता से विमुख हो गई है, उसमें न वह ज्ञान, न वह बंदगी और न ही निर्मलता है। काल के प्रभाव में आकर अपने निज स्वरूप को विसार मन-माया के फैलाए जाल से विकारों एवं चौरासी के फंदे में कैद है। पूर्ण सतगुरु आत्मा को असलता से परिचय करा उसके निज स्वरूप की पहचान बताते हैं और काल माया के फैलाए जाल से निकलने का सत्य पथ, रूहानी सोझी देते हैं, जिसको आत्मसात कर आत्मा अपने सत्स्वरूप की पहचान कर पाती है। उन्होंने कहा कि आत्मा को परमात्मा में मिलने में देरी, कठिनाई, उलझन इसलिये है कि वह बाहरमुखी हो मनमत के कर्म करती है, अंश ने अपने निज अंश से दूर होकर स्व को बाहरमुखी लाग-लपेट में फंसा लिया है, देही को अपना मान, ये मेरा, वो तेरा जो अपना है ही नहीं, नाश्वत है उससे प्रेम कर दुखी रहती है और जो सदा कायम- दायम रहने वाला अविनाशी तत्व है उस अंतरमुखी राह की ओर जीवात्मा का रुख ही नहीं है।

देश के कोने-कोने से पहुंचे श्रद्धालु
महोत्सव में दिल्ली, कोल्हापुर, सांगली, मिरज, कल्याण, पनवेल, पिंपरी, पुणे, बैंगलूर, करीम नगर, इरोड, सेलम, चेन्नई, अमरावती, लालबर्रा, अकोला, भुसावल, गोंदिया, तुमसर, नागपुर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, वर्धा, चन्द्रपुर, मुम्बई, उल्हासनगर, नासिक, वाशिम, मुर्तिजापुर, मल्कापुर, परतवाड़ा, कारंजा, नांदुरा, बालाघाट, लाखनी, शोलापुर, भण्डारा, मण्डला, नैनपुर, वारासिवनी, सिवनी, जलगाँव, कोचेवाही, सूरत, अहमदाबाद, इन्दौर, कानपुर, कोटा, जयपुर, अजमेर, भोपाल, विदिशा, उज्जैन, ग्वालियर,झांसी, नागौद, महोबा, आगरा, इलाहाबाद, देवास, बीना, सागर, खुरई, दमोह, छतरपुर, इटारसी, खण्डवा, बुरहानपुर, हरदा, नरसिंहपुर, राजनांदगाँव, धमतरी, दुर्ग, रायपुर, भिलाई, राजिम, तिल्दा, भाटापारा, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, धरमजयगढ़,झारसुगड़ा, शक्ति, अंबिकापुर, मनेन्द्रगढ़, अनुपपुर, कोतमा, बुढ़ार, शहडोल, पाली, उमरिया, चंदिया, चोपान, ब्यौहारी, देवलोन, रीवा, बरही सहित देश विदेश से पहुंचे है।

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