शपथ समारोह से वापस आते ही इसके शब्दों को भूल जाएंगे

इसी बहाने
(आशीष शुक्ला) शपथ, कसम, सौं आदि शब्द ऐसे हैं जिनका हमारे जीवन काल मे हमेशा ही विशेष महत्व रहा है। शपथ का यह मौसम यूं ही आता और जाता है। इस वक्त शपथ की इस प्रसांगिकता की याद जेहन में तब आई जब अचानक सोशल मीडिया की पहचान बने मोबाइल पर चार-पांच इंच के स्क्रीन में माननीयों की शपथ की लाइव अपडेट एक के बाद एक घनघनातीं रहीं।
एयर पोर्ट से लेकर शपथ ग्रहण समारोह स्थल के पग-पग की खबरों की ब्रेकिंग झेल कर में परेशान कम हैरान ज्यादा था। सोच रहा था कि आखिर मैं तो रोज ही ऐसी सच्ची, झूठी शपथ उठाता ही रहता हूं पर कोई इसे इतना ब्रेकिंग क्यों नहीं समझता? शपथ और कसम के इस समय में अचानक मुझे हर वो कसमें भी याद आ गईं जो में बचपन में अपने दोस्तों के संग खाता रहा।
बात-बात पर मां कसम तो बेहद खास थी जो आज भी इस देश की वह शपथ है जो न जानें कितने लोग रोज ही खाते या फिर खिलाते रहते हैं। छात्र अवस्था में दूसरी फेमस विद्या कसम जो बच्चों की सबसे लोकप्रिय कसम आज भी रेटिंग में नंबर वन ही बनी है। कसम की यह बुनियाद एक दूसरे की कसम खा कर रिश्तों को परवान चढ़ाने के लिए हमेशा ही तैयार नजर आती है।
प्रेमी युगल के विश्वास की यह वह नींव है जिससे संबंध कहीं प्रगाढ़ होते नज़र आते हैं तो कभी बिना शपथ का सम्मान रखे यही रिश्ते एक पल में टूट जाते हैं। संबंधों की यह बुनियाद किस्मों के साथ कसमों पर भी टिकी होती है। कसम की इस लम्बी फ़ेहरीश्त में हमारा देश ही है जो पूरी तरह से रचा-बसा है, लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं कि दुनिया मे शपथ या कसम को तवज्जो नहीं मिलती। आज भी बाई गॉड जैसे शब्द को दुनिया भर में लोग बात-बात पर इस्तेमाल करते हैं।
फिलहाल तो हम बात अपने माननीयों की शपथ औऱ शपथ ग्रहण समारोह की ही करें तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि फिलहाल तो अखबार की सुर्खियों से लेकर टीवी की टीआरपी तक सब कुछ इसी शपथ के इर्द-गिर्द नजर आ रहा है। बीते दो तीन दिन शपथ की खबर सुबह से देर रात तक दिमाग में शपथ औऱ सिर्फ शपथ ही गूंज रही है। कोई पहली बार शपथ लेकर गदगद है, तो कोई दूसरी दफे शपथ लेकर फूला नहीं समा रहा। इधर इन माननीयों की शपथ के इस समारोह में शामिल अन्य माननीय मन ही मन स्वयं की शपथ के सपने अभी से सजाये बैठे हैं।
यूं तो संविधान की रक्षा के साथ जनता के साथ भेदभाव नहीं करने और सम्प्रभुता की रक्षा की शपथ लेकर माननीय अपने राजकाज की पांच वर्षीय इनिंग शुरू करने के लिए बेताब नजर आते हैं, पर हकीकत यह कि शपथ ग्रहण समारोह के मंच से नीचे आते ही इनसे शपथ के दो शब्दों को पूछ लिया जाए तो बता नहीं पाते। शपथ लेना बेहद आसान है किंतु शपथ को निभाना बहुत कठिन। विशेष तौर पर तब जब बात राजधर्म के पालन की हो। देश में न जाने कितनी शपथ रोज ही उठाई जाती हैं, ली जातीं हैं या फिर खाई जाती हैं, पर इनके पालनार्थ बात हो तो यह कहीं भी समझ में नहीं आती है। शपथ लेना बेहद आसान है लेकिन इसका महत्व समझना मुश्किल।
आज हर महीने कहीं न कहीं कोई न कोई शपथ ग्रहण समारोह की खबरें दिल को लुभाती रहती हैं, पर यहीं कुछ दिनों बाद इस शपथ के पालनार्थ शपथ की हर बातें खंडित होती दिखती हैं। शपथ लेना तो इस देश की संस्कृति कम फैशन का रूप ज्यादा लेती जा रही हंै। कहीं स्वच्छता की शपथ तो कहीं नशा छोड़ने की शपथ। शपथ का यह रूप सिर्फ फोटो सेशन फिर अखबारों के समाचारों तक सीमित नजर आता है। शपथ लेने वाले ही इसके पालनार्थ स्वयं की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाते आज जरूरत शपथ से कहीं ज्यादा शपथ के अक्षरशः पालन की है, वरना शपथ ग्रहण समारोह एक कार्यक्रम ही बन कर रह जाएंगे और इस समारोह से वापस आते ही हम हों या फिर हमारे माननीय शपथ के शब्दों को भूलते ही जाएंगे।