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पाटन विधानसभा क्षेत्र: पटैल लॉबी भी तलाश रही संभावनाएं

जबलपुर। 2012 से पटैल (कुर्मी) समाज का संगठन लगातार कुछ न कुछ गतिविधियां करके इस जाति के लोगों के संगठित करने का काम कर रहा है और जो धीरे धीरे बड़ी संख्या में लोगों को अपने साथ जोड़ता जा रहा है। इसका एक शक्ति प्रदर्शन पिछले दिनों कटंगी सिहोरा के बीच सरदार पटेल की स्थापित हुई मूर्ति के कार्यक्रम में देखने को मिला जहां बड़ी संख्या में समाज के लोग मौजूद रहे। वैसे तो इस संगठन का नाम कुर्मी सेवा संस्था है जिसका उद्देश्य सामाजिक संगठन का निर्माण करना है लेकिन इसके पीछे भी कहीं न कहीं सामाजिक समीकरण बनाके टिकट की दावेदारी से जोड़कर देखा जा रहा है। टिकट के दावेदार श्रृ़ंखला में पाटन विधानसभा सीट से इस बैनर के तले टिकट की संभावनाएं तलाश रहे हैं।

मनोरमा पटेल
ये वर्तमान में जबलपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं। इसके पूर्व महिला मोर्चा में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा चुकी हैं। इसके अलावा इनका परिवार जन संघ के समय से पार्टी से जुड़ा हुआ है और इनके ससुर तीन बार क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। टिकट के दावेदारों में वैसे तो मनोरमा पटेल का नाम पाटन विधानसभा सीट से पिछले एक साल से सामने आ रहा है। खासकर सांसद राकेश सिंह की ये पसंद मानी जा रही हैं और वे क्षेत्र में इनके नाम को आगे भी बढ़ा रहे हैं। जातिगत फैक्टर के साथ साथ इनके पास एक और प्लस प्वाइंट है वो है इनका महिला होना। चूंकि भाजपा से वर्तमान में दो महिला विधायक हैं और दोनों ही ग्रामीण सीटों से हैं। लेकिन जो सर्वे रिपोर्ट व गुजरात के परिणाम सामने आए हैं उसके बाद यह पूरे दावे के साथ कहना मुश्किल है कि सिटिंग एमएलए की टिकट नहीं कटेगी। ऐसे में भाजपा के पास ग्रामीण क्षेत्र में महिला चेहरे के नाम पर मनोरमा पटेल से बड़ा नाम कोई भी नहीं है जो कि इन्हें जातिगत फायदा भी दे सकता है। इसके अलावा इनका तीन साल का कार्यकाल विवादों से दूर रहा और वे पर्दे के पीछे रहकर अपना काम करती हैं जो कि भाजपा के लिहाज से एक अच्छा संकेत माना जाता है।

शिव पटेल
ये भारतीय जनता पार्टी जिला ग्रामीण के अध्यक्ष हैं। इसके अलावा पूर्व में संगठन के महत्वपूर्ण दायित्वों पर रह चुके हैं। क्षेत्र में जो पटैल फैक्टर काम कर रहा है। उसमें इनका नाम भी पटैल समाज की ओर से आगे किया जा रहा है। संगठन में महत्वपूर्ण पद पर होने के नाते बूथ लेबिल पर इनकी पकड़ है और यही इनका ड्रॉबेक भी है कि वे भाजपा के अध्यक्ष हैं। संगठन द्वारा किसी भी पदाधिकारी को चुनाव न लड़ने की पहले ही साथ हिदायत दे रखी है जिसके चलते इन्हें टिकट लाना इतना आसान नहीं होगा। इसके अलावा पिछले कुछ समय से इनकी विश्नोई से नजदीकी बढ़ती जा रही है जिसका फायदा इन्हें मिल सकता है। यदि पटैल समाज की बात की जाए तो वह वर्तमान में पाटन सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच में बटा हुआ है।

नारायण चौधरी
क्षेत्रीय राजनीति में नारायण चौधरी की पहचान किसान नेता के रूप में रही है। उन्होंने विद्यार्थी परिषद से शुरुआत कर राष्ट्रीय स्वयं संघ, मीसाबंदी से होते हुए भाजपा के महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है इसके अलावा वे मंडी अध्यक्ष व सोसायटियों से भी जुड़े रहे हैं। पटैलों के एकत्रीकरण की मुहिम इनके द्वारा 2012 में शुरू की गयी थी जो अब अपना असर दिखा रही है लेकिन 2013 में विश्नोई विरोध के चलते इन्होंने पार्टी को छोड़ दिया था लेकिन भारतीय किसान संघ के माध्यम से संघ परिवार से जुड़े हुए हैं। 2003 में जब पाटन अलग विधानसभा हुआ करता था जिसमें शहपुरा का भी कुछ हिस्सा आता था उस दौरान ये भाजपा की टिकट से चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन भाजपा की ही बागी प्रत्याशी प्रतिभा सिंह के कारण हार का मुंह देखना पड़ा था। इस बार पटैलों को संगठित करके ये नयी तरह की राजनीति साधने की कोशिश कर रहे हैं जिसके माध्यम से टिकट के लिए इनका नाम भी आगे चल रहा है। जबकि विश्नोई पाटन से बाहर जा चुके हैं ऐसे में इनके लिए स्थितियां कुछ आसान जरुर हुई हैं लेकिन रास्ता अभी भी कठिनाईयों से भरा है।

विधानसभा पर जाति का प्रभाव
यदि पाटन विधानसभा सीट पर पटैल जाति के प्रभाव को देखें तो 1993 से 2013 के पांच विधानसभा चुनावों में तीन बार पटैल प्रत्याशी मैदान में आ चुके हैं जिसमें से एक बार उन्हें जीत मिली और दो बार हार। 1993 में विश्नोई और रामकुमार पटैल का मुकाबला हुआ जिसमें रामकुमार पटेल 339 वोटों की मामूली जीत मिली उसके बाद 98 में विश्नोई रामकुमार पटैल से 20172 वोट से जीते और फिर 2003 में विश्नोई एक बार फिर पटैल प्रत्याशी तारा पटेल से 13622 वोटों से विजयी रहे। उसके बाद कांग्रेस ने 2008 और 2013 के चुनावों में किसी पटैल को टिकट नहीं दी लेकिन 2008 में ही तीन पटैल प्रत्याशी निर्दलीय या छोटी पार्टियों से मैदान में उतरे जो कुल मिलाकर 6130 वोट ही ले पाये और फिर 2013 में कोई भी पटैल निर्दलीय ही सही मैदान में नहीं आया।

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