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Premature Ovarian Failure किन वजहों से होता है, जाने इसका इलाज और लक्षण क्या-क्या है

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Premature Ovarian Failure किन वजहों से होता है, जाने इसका इलाज और लक्षण क्या-क्या है

प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर को सरल शब्दों में अर्ली मेनोपॉज भी कहा जाता है। आमतौर पर महिलाओं की मेनोपॉज की उम्र 42 साल से लेकर 56 साल के बीच होती है। भारत में महिलाओं की मेनोपॉज की उम्र औसतन 46.2 साल है। पश्चिमी देशों में रहने वाली महिलाओं की तुलना में यह कम है, उनकी मेनोपॉज की औसतन उम्र 51 साल है। हालांकि कुछ दुर्लभ मामलों में महिलाओं में प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर 19 से 39 साल की उम्र में भी हो सकता है। इसमें कुछ लक्षण मेनोपॉज जैसे ही होते हैं। इसका सबसे आम संकेत है इररेगुलर पीरियड्स, जिसमें पीरियड्स अचानक आने बंद हो जाते हैं। कुछ मामलों में प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर को विकसित होने में कई साल लगते हैं, तो वहीं कुछ महिलाओं में यह कुछ महीनों में ही विकसित हो जाता है।इस बारे में हमने बात की Dr. Mansi Medhekar (M.S. D.N.B., F.I.C.O.G) से और उन्होंने इस विषय में हमें कुछ अहम सुझाव दिए-

Premature Ovarian Failure किन वजहों से होता है, जाने इसका इलाज और लक्षण क्या-क्या है

प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर के कारण और लक्षण
premature ovarian failure reasons

ज्यादातर केसेस में प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर (पीओएफ) का कोई लक्षण नजर नहीं आता। कुछ मामलों में एस्ट्रोजन लेवल में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। महिलाओं के लिए प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर की जांच की खबर आमतौर पर दुखदायक होती है, क्योंकि यह उनके प्रजनन प्रकिया को प्रभावित करती है। पीरियड्स अनियमित होना या बंद हो जाना पीओएफ का सबसे आम संकेत है। इसके दूसरे लक्षण भी नोटिस किए जा सकते हैं जैसे कि हॉट फ्लैशेज महसूस होना, मूड स्वींग्स होना और पसीना आना। इसकी कुछ अहम वजहें इस प्रकार हैं-

रेडियेशन थेरेपी
कीमोथेरेपी
पेल्विक इन्फ्लेमेटरी डिजीज
ट्यूबरकलोसिस
पेल्विक सर्जरी
endometriosis की गंभीर स्थिति
टर्नर सिंड्रोम
mumps जैसे इन्फेक्शन
हार्मोनल डिसऑर्डर जैसे कि हाइपोथायरॉइडिज्म
ऑटोइम्यून डिजीज जैसे कि लम्प्स
प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर के लिए टेस्ट

पीओएफ की जांच क्लीनिकल फैक्टर्स, ब्लड टेस्ट, ट्रांसवेजाइनल सोनोग्राफी आदि के आधार पर होती है। किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले इन तीनों ही चीजों को ध्यान में रखा जाता है। इसके लिए हार्मोन से जुड़े ब्लड टेस्ट जैसे कि FSH और LH कराने की सलाह दी जाती है। इन जांच से सही नतीजा तब निकलता है, जब ये पीरियड्स होने के दूसरे या पांचवे दिन किए जाते हैं। हाल ही में AMH (एक तरह का ब्लड टेस्ट) को FSH और LH की तुलना में पीओएफ का ज्यादा अहम संकेत माना गया है। प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर का यह बड़ा संकेत माना जाता है। AMHका स्तर पीरियड्स पर निर्भर नहीं करता और इसकी जांच कभी भी की जा सकती है। इससे पीओएफ डायग्नोस होने के साथ महिलाओं में इन्फर्टिलिटी की समस्या का भाी इलाज संभव हो पाता है।

अल्ट्रासाउंड (TVS) से इस समस्या के इलाज में मदद मिलती है। इसके जरिए मेडिकल एक्जामिनर ओवरी की साइज की जांच करता है, साथ ही वह ओवरी में एंट्रल फॉलीक्यूलर काउंट भी देखता है ( छोटे फॉलीकल्स की संख्या/ऐसे सिस्ट, जिनकी जांच संभव हो), यहां भी TVSके लिए उचित समय पीरियड्स का तीसरा या पांचवां दिन है। पीओएफ के मामले में ओवरी का आकार छोड़ा नजर आता है, जिसमें बहुत कम फॉलिकल्स दिखाई देते हैं।

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