उत्तर प्रदेश को मिलेगा 76वां जिला कल्याण सिंह नगर: जानें कैसे बनते हैं नए जिले, कितनी आती है लागत और क्या होती हैं शर्तें
उत्तर प्रदेश को मिलेगा 76वां जिला कल्याण सिंह नगर: जानें कैसे बनते हैं नए जिले, कितनी आती है लागत और क्या होती हैं शर्तें

उत्तर प्रदेश को मिलेगा 76वां जिला कल्याण सिंह नगर: जानें कैसे बनते हैं नए जिले, कितनी आती है लागत और क्या होती हैं शर्तें। कल्याण सिंह नगर, उत्तर प्रदेश का 76वां जिला होगा। उत्तर प्रदेश के सरकारी नक्शे में एक नया रंग भरने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश को मिलेगा 76वां जिला: जानें कैसे बनते हैं नए जिले, कितनी आती है लागत और क्या होती हैं शर्तें
दरअसल राज्य में एक नया जिला बनाने की तैयारी है, जिसका नाम ‘कल्याण सिंह नगर’ होगा। सीएम योगी आदित्यनाथ की यह घोषणा केवल एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि प्रदेश की राजनीतिक स्मृतियों और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी एक भावनात्मक पहल भी है।
इस जिले का निर्माण अलीगढ़ और बुलंदशहर के कुछ हिस्सों को मिलाकर किया जाएगा. यह वही इलाका है, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की थी।
कल्याण सिंह का नाम सुनते ही उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक ऐसा अध्याय खुल जाता है, जिसने देश की सत्ता संरचना तक असर डाला है।
राम मंदिर आंदोलन की धुरी रहे इस नेता का जीवन जनता की उम्मीदों, संघर्षों और संकल्प का प्रतीक था।
उनके नाम पर जिला बनना स्थानीय लोगों के लिए मानो उनके व्यक्तित्व और योगदान को धरातल पर स्थायी रूप से दर्ज कर देने जैसा है।
भारत के नख्शे में तेजी से बढ़ते जा रहे जिले
भारत के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में इस वक्त कुल 797 जिले हैं. आजादी के वक्त साल 1947 में देश में करीब 230 जिले थे, जिनमें ब्रिटिश भारत के 17 प्रांतों और सैकड़ों रियासतों के क्षेत्रों को मिलाया गया था. आजादी के बाद संयुक्त प्रांत के नाम से पहचान रखने वाले उत्तर प्रदेश में 35 से 38 जिले थे।
पिछले दस सालों के आंकड़ों को देखें तो साल 2015 से 2025 के बीच देशभर में सबसे ज्यादा राजस्थान में नए जिले बनाए गए हैं. राजस्थान की बात करें तो पिछले कुछ वर्षों में यहां 19 नए जिलों का गठन किया गया है।
इसी दौरान आंध्र प्रदेश ने भी जिलों की संख्या तेजी से बढ़ाई गई है. यहां भी कुछ सालों में 19 नए जिले तैयार किए गए हैं. मध्य प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है. पिछले करीब 24 सालों में एमपी में 10 नए जिले बनाए गए हैं. पश्चिम बंगाल में साल 2022 में 7 नए जिलों के गठन किया गया था. इन सभी आंकड़ों को देखें तो देशभर में पिछले दस सालों में 40 से अधिक नए जिलों का गठन किया गया है।
नया जिला बनाने की क्या होती है प्रक्रिया
जिला बनाने की शक्ति राज्य सरकार के पास होती है. यह कार्य विधानसभा में विधेयक पारित करके या सरकारी अधिसूचना जारी कर भी किया जा सकता है. प्रक्रिया के अनुसार सबसे पहले सीमाओं का निर्धारण किया जाता है, उसके बाद बजट, भवनों और संसाधनों के बंटवारे की योजना तैयार होती है. नए जिले में सबसे पहले जिलाधिकारी (डीएम) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) की नियुक्ति होती है. इन्हीं के माध्यम से प्रशासनिक संरचना आकार लेना शुरू करती है.
केंद्र सरकार इस प्रक्रिया में तभी शामिल होती है, जब किसी जिले या शहर का नाम बदलने की स्थिति आती है. वहां गृह मंत्रालय और अन्य केंद्रीय विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है. यहां यह भी याद रखने की जरूरत है कि नया जिला केवल प्रशासनिक दक्षता का विषय नहीं होता, यह राजनीतिक संदेश भी देता है. कल्याण सिंह नगर की घोषणा कहीं न कहीं भाजपा के सामाजिक आधार, उसकी स्मृति-राजनीति और क्षेत्रीय पहचान के संयोजन की झलक भी पेश करती है.
लोगों के जीवन में क्या बदलेगा?
अलीगढ़ और बुलंदशहर के बड़े हिस्सों में आज भी जिला मुख्यालय तक पहुंचने में लंबा रास्ता तय करना होता है. इसके साथ ही समय और पैसे भी बहुत खर्च होते हैं. एक साधारण आय वाले किसान, मजदूर, दुकानदार या छात्र के लिए यह सिर्फ दूरी नहीं, बल्कि सरकारी सुविधाओं तक पहुंच का सवाल है.
नया जिला बनने के बाद, सरकारी योजनाओं का लाभ जल्दी और आसानी से मिल सकेगा. भूमि, राजस्व और प्रशासनिक कार्यों में समय की बचत होगी और पुलिस व्यवस्था और कानून-व्यवस्था मजबूत होगी. इसके साथ ही क्षेत्र में नए व्यवसाय, बाजार, परिवहन और सरकारी निवेश बढ़ेगा. इसका अर्थ यह नहीं कि परिवर्तन रातों-रात दिख जाएगा, लेकिन यह निश्चित है कि परिवर्तन की दिशा अब बदल चुकी है.
एक नया जिला बनाने पर कितना आता है खर्च?
नया जिला बनाने में आमतौर पर 2 हजार करोड़ रुपए से अधिक का खर्च आता है. नए जिले के साथ ही वहां प्रशासनिक भवन, सड़कें, बिजली- पानी की व्यवस्था और स्टाफ की नियुक्ति करना आधारभूत सुविधाओं में शामिल है. एक अनुमान के मुताबिक जिला मुख्यालय, जिला परिषद, स्वास्थ्य विभाग के भवन, न्यायालय, कृषि और शिक्षा से जुड़े भवनों के निर्माण में ही लगभग 500 करोड़ रुपये तक आ सकते हैं. इसके साथ ही सड़क, बिजली, पानी, सफाई और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी अनुमानित खर्च 1500 करोड़ रुपये तक आता है.
राज्य सरकारें जरूरत और इलाके के हिसाब से भी बजट तय करती हैं. जिले में दी जाने वाली सुविधाओं, भवनों के निर्माण और स्थानीय व्यवस्था के हिसाब से बजट कम ज्यादा हो सकता है. उदाहरण के तौर पर राजस्थान में जब नए जिले बनाने की घोषणा की गई तो सरकार ने करीब 1000 करोड़ रुपये के बजट घोषणा की थी, जिसमें आधारभूत निर्माण प्राथमिकता थी. .
नए जिले से जुड़ी कुछ जरूरी बातें :-
- किसी भी नए जिले के लिए प्रशासनिक, आधारभूत, और सामाजिक सुविधाएं बेहद जरूरी होती हैं.
- राज्य सरकार की अधिसूचना के जारी होने के 6 महीने के अंदर नया जिला काम करना शुरू कर देता है.
- नए जिला जब विधानसभा में पास हो जाता है उसके बाद नए जिले के सीमांकन, बजट और इन्फ्रा का काम शुरू होता है.
- नए जिले के लिए जरूरी है कि वहां की न्यूनतम आबादी 2 लाख के करीब हो, हालांकि क्षेत्र विशेष के मुताबिक ये अलग-अलग हो सकता है.
- नए जिले में जिला मुख्यालय, कलेक्ट्रेट, पुलिस थाना, न्यायालय. शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सड़क और जल व्यवस्था होना है जरूरी.
- नया जिला बनने के साथ ही सबसे पहले प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर डीएम और एसपी की तैनाती की जाती है.







