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दुश्मन को धूल चटाने के लिए भारत खरीदेगा कनाडा का स्ट्राइक

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दुश्मन को धूल चटाने के लिए भारत खरीदेगा कनाडा का स्ट्राइक स्ट्राइकर एक बख्तरबंद लड़ाकू वाहन है. यह आठ पहियों से ड्राइव होता है. कनाडा और अमेरिका की कंपनियों द्वारा संयुक्त रूप से बनाए जाने वाले 530 स्ट्राइकर लड़ाकू वाहनों को भारत खरीदने की योजना बना रहा था. अब सम्बंधों में खटास आने के कारण डील ठंडे बस्ते में जा सकती है. आइए जानते हैं कैसे दुश्मनों को धूल चटाता है स्ट्राइकर और भारत इसे क्यों खरीदना चाहता था?

कनाडा के साथ भारत के बिगड़ते रिश्तों का असर आठ पहियों वाले स्ट्राइकर बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों की खरीद पर भी पड़ सकता है. कनाडा और अमेरिका की कंपनियों द्वारा संयुक्त रूप से बनाए जाने वाले ऐसे 530 वाहनों को खरीदने की योजना भारत बना रहा था. इन्हें लद्दाख जैसे क्षेत्रों में तैनात करने की योजना थी. आइए जान लेते हैं इस वाहन की खूबियां और भारत के लिए ये कितने जरूरी हैं?

स्ट्राइकर बख्तरबंद लड़ाकू वाहन आठों पहियों से ड्राइव होता है. इसे कनाडा की जनरल डायनेमिक्स लैंड सिस्टम्स (जीडीएलएस) और संयुक्त राज्य अमेरिका के जनरल डायनेमिक्स लैंड सिस्टम्स डिवीजन की ओर से संयुक्त रूप से विकसित किया गया है. वास्तव में स्ट्राइकर वाहन जीडीएलएस, कनाडा के एलएवी III 8×8 हल्के बख्तरबंद वाहनों का ही नया संस्करण है और साल 2001 से परिचालन में है. मूल रूप से इस वाहन को स्विट्जरलैंड के मोवाग द्वारा निर्मित पिरान्हा-III के आधार पर विकसित किया गया है.

स्ट्राइकर का नाम मरणोपरांत मेडल ऑफ ऑनर से सम्मानित अमेरिका के दो सैनिकों स्टुअर्ट एस स्ट्राइकर और रॉबर्ट एफ स्ट्राइकर के नाम पर है. 1980 के दशक में अब्राम्स टैंक के बाद अमेरिका की सेना में शामिल स्ट्राइकर पहला नया सैन्य वाहन था.

गोलीबारी से बचने में सक्षम

तकनीकी रूप से देखें तो स्ट्राइकर एक वी-हुल बख्तरबंद पैदल सेना वाहन (Stryker V-hull armoured infantry combat vehicles) है. इसमें 30 मिमी तोप और 105 मिमी मोबाइल गन लगी हैं. इसे उच्च कठोरता वाले स्टील से बनाया जाता है. इसके कारण सामने से इस पर 14.5 मिमी राउंड की फायरिंग का कोई असर नहीं पड़ता, जबकि चारों ओर से 7.62 मिमी बॉल गोला-बारूद भी इसे भेद नहीं पाता. इन वाहनों में बोल्ट ऑन सिरेमिक कवच लगा होता है, जो 14.5 मिमी के कवच भेदी गोला-बारूद और 152 मिमी राउंड की फायरिंग से निकले तोपखाने के टुकड़ों से इसे सुरक्षित रखता है.

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दुश्मन को धूल चटाने के लिए भारत खरीदेगा कनाडा का स्ट्राइक

सौ किमी प्रति घंटा है अधिकतम रफ्तार

आर्मी गाइड डॉट कॉम के मुताबिक स्ट्राइकर में दो लोगों का चालक दल होता है और यह नौ सैनिकों की टुकड़ी को ले जा सकता है. इसमें 350 हॉर्स पावर का कैटरपिलर सी-7 इंजन लगा होता है. इसकी रेंज 483 किलोमीटर और अधिकतम गति लगभग 100 किमी/घंटा है. स्ट्राइकर वाहन इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) से भी किसी हद तक बचने में सक्षम हैं. इनको चिनूक हेलीकॉप्टरों से कहीं भी ले जाया जा सकता है. इन हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना भी करती है.

अमेरिकी सेना में कई रूप में इस्तेमाल

स्ट्राइकर के दो मेन वर्जन इन्फैंट्री कैरियर व्हीकल (आईसीवी) और मोबाइल गन सिस्टम (एमजीएस) हैं. अमेरिका की सेना में 550 से अधिक स्ट्राइकर शामिल हैं. वहां इनका इस्तेमाल पैदल सेना वाहक वाहन, कमांडर वाहन, चिकित्सा निकासी वाहन, अग्नि सहायता वाहन, इंजीनियर दस्ता वाहन, टैंक रोधी निर्देशित मिसाइल वाहक, मोर्टार वाहक, टोही वाहन और मोबाइल गन प्रणाली और परमाणु, जैविक और रासायनिक टोही वाहन के रूप में किया जाता है.

भारत में भी निर्माण की थी योजना

वास्तव में कनाडा में बन रहीं इन गाड़ियों को अमेरिका की ओर से भारत को बेचने की कोशिशें हो रही थीं. भारत और अमेरिका मिलकर मिलिट्री सामान बनाने की वार्ता आगे बढ़ा रहे थे. इसमें स्ट्राइकर भी शामिल थे. बीते जून में अमेरिका के एक अफसर ने कहा था कि जल्द ही भारतीय सेना को स्ट्राइकर की ताकत दिखाई जाएगी. इसे आत्मनिर्भर भारत पहल से जोड़ा जा रहा था और शुरुआती योजना के अनुसार पहले कनाडा से सीधे कुछ गाड़ियां आयात की जातीं. बाद में कनाडा की कंपनी जीडीएलएस-सी के साथ इसे भारत में ही बनाया जाता. हालांकि, कनाडा से रिश्ते बिगड़ने के बाद इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है.

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भारत के लिए इसलिए जरूरी

स्ट्राइकर की खास बात यह है कि यह विद्रोह या युद्ध की स्थिति में तेजी से जवाब दे सकता है. यह पक्की सड़कों पर टैंकों की तुलना में काफी तेज गति से आगे जा सकता है. इससे पैदल सेना के दस्ते जल्द से जल्द लड़ाई के मैदान में पहुंच सकते हैं. यही नहीं, आठ पहियों वाला स्ट्राइकर वाहन हर तरह के मौसम में और हर तरह के रास्ते पर चल सकता है. रेगिस्तान और पहाड़ से लेकर दलदली इलाकों तक में इससे पहुंचना आसान है. इसीलिए शुरुआती चरण में इसे लद्दाख में सीमा पर तैनात करने की योजना थी. ऐसे वाहन देश की अन्य सीमाओं पर तो तैनात किए ही जा सकते हैं, नक्सलियों से प्रभावित इलाकों में भी ये सुरक्षा बलों के लिए काफी काम के साबित हो सकते हैं, जहां आए दिन नक्सली आईईडी माइंस बिछाकर सुरक्षा बलों के वाहनों को उड़ाते रहते हैं. इनके जरिए जंगलों में छिपे नक्सलियों का मुकाबला भी आसान हो सकता है.

फिलहाल यह है विकल्प

भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड ने मिलकर आर्मर्ड गाड़ी ‘व्हील्ड आर्मर्ड प्लेटफॉर्म’ (WhAP) विकसित किया है. ऐसी कुछ गाड़ियां भारतीय सेना लद्दाख में इस्तेमाल भी कर रही है. मोरक्को भी भारत से ये गाड़ियां खरीद रहा है. समझौते के तहत मोरक्को के कैसाब्लांका नामक शहर में ये गाड़ियां बनाने के लिए नया कारखाना लगाया जा रहा है. वहां से दूसरे अफ्रीकी देशों की मांग भी पूरी की जा सकेगी. स्ट्राइकर भी भारतीय सेना और सुरक्षा बलों को मिल जाए तो इनकी ताकत और बढ़ जाएगी.दुश्मन को धूल चटाने के लिए भारत खरीदेगा कनाडा का स्ट्राइक

 

Ashutosh shukla

30 वर्षों से निरन्तर सकारात्मक पत्रकारिता, संपादक यशभारत डॉट काम

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