
30 दिन में निवेशकों ने खोए ₹1.4 लाख करोड़, इन 3 वजहों से नेपाली शेयर बाजार में मची भयंकर तबाही, जेन स्ट्रीट स्कैंडल ने बढ़ाया संकट। शेयर बाजार में इन दिनों हाहाकार मचा हुआ है. बीएसई (BSE) और एनएसई (NSE) के निवेशकों की जेब पर करीब ₹1.4 लाख करोड़ की चपत लग चुकी है. जून के हाई लेवल से बीएसई के शेयर 22% टूटकर बेयर जोन में पहुंच गए हैं, वहीं एनएसई के शेयर भी 18% लुढ़क चुके हैं. इस गिरावट की सबसे बड़ी वजह जेन स्ट्रीट स्कैंडल, सेबी की सख्ती, टर्नओवर में कमी और ब्रोकरेज फर्मों के डाउनग्रेड हैं. आइए, आपको बताते हैं कि आखिर इस भारी नुकसान के पीछे क्या-क्या कारण हैं।
30 दिन में निवेशकों ने खोए ₹1.4 लाख करोड़, इन 3 वजहों से नेपाली शेयर बाजार में मची भयंकर तबाही, जेन स्ट्रीट स्कैंडल ने बढ़ाया संकट
MP Teacher Bharti 2025: फाइनल राउंड की तैयारी शुरू, परीक्षा 150 अंकों की होगी
जेन स्ट्रीट स्कैंडल ने बढ़ाया संकट
पिछले कुछ समय से बीएसई और एनएसई के शेयरों पर सेबी की सख्ती और ब्रोकरेज फर्मों के डाउनग्रेड का दबाव था, लेकिन जेन स्ट्रीट स्कैंडल ने आग में घी डालने का काम किया. सेबी ने 3 जुलाई को एक अंतरिम आदेश में अमेरिकी क्वांट ट्रेडिंग फर्म जेन स्ट्रीट पर भारतीय बाजार में एंट्री पर रोक लगा दी और इसके ₹4840 करोड़ के एसेट्स फ्रीज कर दिए. सेबी का कहना है कि जेन स्ट्रीट ने बैंक निफ्टी में बड़े पैमाने पर हेरफेर किया. इस कार्रवाई से डेरिवेटिव्स मार्केट को तगड़ा झटका लगा. नतीजा? बीएसई के शेयर 10 जून के ₹3,030 के भाव से लुढ़ककर ₹2,376 पर आ गए, जिससे निवेशकों के ₹26,600 करोड़ स्वाहा हो गए. वहीं, एनएसई के शेयर 21 जून के ₹2,590 से गिरकर ₹2,125 पर आ गए, जिससे इसका मार्केट कैप ₹1.15 लाख करोड़ कम हो गया.
ब्रोकरेज फर्मों ने घटाई रेटिंग
नियामकीय अनिश्चितता और मार्केट वॉल्यूम में कमी के चलते कई ब्रोकरेज फर्मों ने बीएसई और एनएसई की रेटिंग डाउनग्रेड कर दी. आईआईएफएल कैपिटल ने बीएसई की रेटिंग को ‘ऐड’ से घटाकर और सख्त कर दिया. ब्रोकरेज का कहना है कि सेबी के सख्त नियम, अन्य ट्रेडिंग फर्मों पर बढ़ती निगरानी और खुदरा निवेशकों के बढ़ते नुकसान से एक्सचेंज के वॉल्यूम पर दबाव पड़ेगा. इससे पहले मोतीलाल ओसवाल ने भी एक्सपायरी डे में बदलाव के बाद बाजार में दबदबे को लेकर चिंता जताते हुए बीएसई की रेटिंग कम की थी. जेफरीज का कहना है कि जेन स्ट्रीट की बीएसई के टर्नओवर में सिर्फ 1% हिस्सेदारी थी, लेकिन एक्सपायरी डे में बदलाव और वॉल्यूम प्रेशर ज्यादा बड़ा खतरा है. जेफरीज के मुताबिक, वित्त वर्ष 2026 में प्रीमियम अनुमान में 1% की कमी से अर्निंग्स में 0.6-0.7% की गिरावट आ सकती है.
सेबी की सख्ती और एक्सपायरी में बदलाव का असर
सेबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, डेरिवेटिव्स (F&O) ट्रेडिंग में खुदरा निवेशकों को वित्त वर्ष 2025 में ₹1.05 लाख करोड़ का घाटा हुआ. वित्त वर्ष 2024 में 86.3 लाख ट्रेडर्स थे, जो 2025 में बढ़कर 96 लाख हो गए. लेकिन, औसत नुकसान ₹86,728 से 27% बढ़कर ₹1,10,069 हो गया. वॉल्यूम की बात करें तो उसमें भी भारी दबाव देखने को मिल रहा है. 1 सितंबर से एनएसई की एक्सपायरी मंगलवार को और बीएसई की गुरुवार को होगी. आईआईएफएल का अनुमान है कि इससे बीएसई का वॉल्यूम 10-12% तक गिर सकता है. इस आधार पर आईआईएफएल ने बीएसई का वैल्यूएशन 50x से घटाकर 45x कर दिया और ₹2,200 का फेयर वैल्यू बताया.
हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग पर भी खतरा
हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडर्स, जो कोलोकेशन सर्वर्स के जरिए ट्रेड करते हैं, डेरिवेटिव्स वॉल्यूम में 55-60% हिस्सा रखते हैं. आईआईएफएल का कहना है कि इन ट्रेडर्स पर सेबी की बढ़ती निगरानी से निकट भविष्य में वॉल्यूम में कमी आ सकती है. हालांकि, लंबे समय में कमाई की संभावनाएं अच्छी हैं, लेकिन फिलहाल चुनौतियां भारी पड़ रही हैं. सेबी की डेरिवेटिव्स सेगमेंट पर कड़ी नजर और सख्त नियमों के चलते बाजार में रिस्क बढ़ गया है.