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History Of Maharana Pratap’s Power: 4 घंटे की वो जंग जिसमें महाराणा प्रताप ने मुगलों को दिया था मुंहतोड़ जवाब, पढ़ें हल्दीघाटी के युद्ध का दिलचस्प किस्सा

History Of Maharana Pratap's Power: 4 घंटे की वो जंग जिसमें महाराणा प्रताप ने मुगलों को दिया था मुंहतोड़ जवाब, पढ़ें हल्दीघाटी के युद्ध का दिलचस्प किस्सा

History Of Maharana Pratap’s Power: 4 घंटे की वो जंग जिसमें महाराणा प्रताप ने मुगलों को दिया था मुंहतोड़ जवाब, पढ़ें हल्दीघाटी के युद्ध का दिलचस्प किस्सा

 उत्तर प्रदेश में महाराणा प्रताप को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है पर मेवाड़ के राजपूत राजा महाराणा प्रताप की वीरता पर किसी को कोई संदेह नहीं है. नौ मई 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में जन्मे महाराणा और मुगलों के बीच हमेशा ठनी रही. इनमें सबसे चर्चित है हल्दीघाटी का युद्ध.महाराणा की जयंती पर आइए जान लेते हैं पूरा किस्सा.

भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े महोत्सव यानी आम चुनाव के दौरान महाराणा प्रताप का प्रवेश हो चुका है. खासकर, उत्तर प्रदेश में महाराणा प्रताप को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है पर मेवाड़ के राजपूत राजा महाराणा प्रताप की वीरता पर किसी को कोई संदेह नहीं है. नौ मई 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में जन्मे महाराणा और मुगलों के बीच हमेशा ठनी रही. इनमें सबसे चर्चित है हल्दीघाटी का युद्ध.

भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े महोत्सव यानी आम चुनाव के दौरान महाराणा प्रताप का प्रवेश हो चुका है. खासकर, उत्तर प्रदेश में महाराणा प्रताप को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है पर मेवाड़ के राजपूत राजा महाराणा प्रताप की वीरता पर किसी को कोई संदेह नहीं है. नौ मई 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में जन्मे महाराणा और मुगलों के बीच हमेशा ठनी रही. इनमें सबसे चर्चित है हल्दीघाटी का युद्ध.

हल्दीघाटी से निकल खमनौर में हुई थी भीषण लड़ाई

राजस्थान की दो पहाड़ियों के बीच एक पतली सी घाटी है, जिसकी मिट्टी का रंग हल्दी की तरह होने के कारण हल्दीघाटी कहा जाता है. अपनी खास रणनीति के तहत मान सिंह के साथ आई मुगल सेना को महाराणा प्रताप ने इसी हल्दीघाटी में घेरना चाहा पर मान सिंह वहां तक गए ही नहीं.

बताया जाता है कि महाराणा प्रताप अपनी सेना के साथ मान सिंह का इंतजार करते पर वह बड़ी सेना लेकर हल्दीघाट तक नहीं गए, क्योंकि वहां घिर जाते. वैसे तो यह लड़ाई हल्दीघाटी दर्रे से ही शुरू हुई थी पर असल लड़ाई हुई खमनौर में.

मुगल इतिहासकार अबुल फजल ने इस लड़ाई को खमनौर की ही लड़ाई कहा है. काफी इंतजार के बाद मान सिंह की सेना नहीं आई तो महाराणा प्रताप खुद अपनी सेना लेकर खमनौर पहुंच गए. इसके बाद दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ.

18 जून 1576 को हुई यह लड़ाई सिर्फ चार घंटे चली. महाराणा की खास रणनीति के तहत संख्या बल में आधी होने के बावजूद राजपूत सेना इस युद्ध में मुगलों की सेना पर भारी पड़ रही थी. खमनौर में भीषण रक्तपात हो रहा था. सैकड़ों मुगल सैनिक मारे जा रहे थे. वहीं, मुगल सैनिक महाराणा प्रताप के मुकुट को देखकर उन्हें लगातार निशाना बना रहे थे. इससे वह घायल होने लगे फिर भी युद्ध लड़ते रहे.

 

यह देख सरदार मन्नाजी झाला ने महाराणा का मुकुट खुद पहन लिया, जिससे मुगल सैनिक उन पर टूट पड़े. वहीं, घायल महाराणा युद्ध भूमि से बच निकले. बताया जाता है कि इस लड़ाई में किसी भी तरह का नतीजा नहीं निकला.

आजीवन मुगलों के खिलाफ लड़ते रहे महाराणा

हालांकि, इसी के बाद मेवाड़ के साथ ही चित्तौड़, गोगुंडा और कुंभलगढ़ पर मुगलों का कब्जा हो गया. एक-एक कर सभी राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए. महाराणा प्रताप अपनी भूमि को मुगलों से वापस पाने के लिए जंगल तक में भटके और शक्ति जुटाते रहे. हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा पीछे जरूर हटे थे पर उन्होंने मुगलों के सामने हार नहीं मानी और आजीवन मुगलों के खिलाफ लड़ते रहे.

मुगलों के पास बड़ी सेना और आधुनिक हथियार थे

हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा और मान सिंह की सेना को लेकर अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं. सभी इतिहासकारों के आंकड़ों के आधार पर एक निष्कर्ष यह निकलता है कि इस लड़ाई में पांच हजार मेवाड़ी और 20 हजार मुगल सैनिक थे. मुगल सेना के पास बंदूकें थीं. ऊंट पर रखी जा सकने वाली तोपें थीं, जबकि राजपूत खराब रास्ते के कारण अपनी तोपें नहीं ला पाए थे. उनके पास बंदूकें भी नहीं थीं.

महाराणा की सेना में लूना और रामप्रसाद जैसे प्रसिद्ध हाथियों के साथ कुल सौ हाथी थे, तो मुगलों की सेना में हाथियों की संख्या तीन गुना थी. चेतक समेत राणा ने इस युद्ध में तीन हजार घोड़ों का इस्तेमाल किया था, जबकि मुगल सेना 10 हजार घोड़ों पर सवार थी. मुगल सेना ने ऊंटों का भी प्रयोग किया था पर राजपूत सेना में ऊंट नहीं थे.

 

 

 

 

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