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शहर की नब्ज़ बताती है यह सीट

जबलपुर नगर प्रतिनिधि। यश भारत द्वारा विधानसभा चुनाव २०१८ में जबलपुर की 8 विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस से टिकट की दावेदारी करने वाले दावेदारों की समीक्षा प्रकाशित की जा रही है। पहले चरण में ग्रामीण की पाटन विधानसभा सीट का विश्लेषण व दावेदारों की समीक्षा प्रकाशित की गई। अब दूसरे चरण में शहर की उत्तर मध्य विधानसभा सीट की समीक्षा प्रकाशित की जा रही है। वैसे तो यह सीट शहर की राजनिती हृदय स्थल मानी जाती है जहां से राजनैतिक विमर्श और मुद्दो की धुरी घुमती रहती है।

यदि इस विधानसभा सीट की नब्ज को पकड़े तो समझ आता है कि यहां लंबे समय से भाजपा की तूती बोलती आ रही है। एक उपचुनाव को छोड़ दे तो पिछले तीन दशकों से यहां कमल खिलता आ रहा है लेकिन यहां कांग्रेस के पास भी मजबूत जमीन है लेकिन चुनावों में उसे इसका फायदा नही मिलता पुराना जबलपुर होने के चलते यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों के पास परंपरागत वोट बैंक तो है लेकिन भाजपा के पास संघ परिवार की एक लंबी लौबी है जो बड़े से कुनबे को बांधकर रखती है। वहीं कांग्रेस का बिखराव मजबूत टीम होने के बाद भी उसे जीत से दूर रखता है।

क्षेत्रीय समीकरण
उत्तर मध्य विधानसभा सीट को यदि क्षेत्रीय आधार पर देखे तो इसको 2 भागों में बांट सकते है एक पुराना जबलपुर, एक नया जबलपुर। पुराना जबलपुर जहां जातिगत समीकरणों और सबंधों के आधार पर वोट मिल जाते है। वहीं दूसरा है नई बसाहट जो राष्ट्रीय परिदृश्य में बन रही परिस्थितियों और विकास के आधार पर वोट डालता है और इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा सं या है नव मतदाता वर्ग की जिसका झुकाव कहीं न कहीं भाजपा की तरफ रहता है। पुराने जबलपुर में भी भाजपा की की स्थिति अच्छी है लेकिन यहां कांग्रेस के पास भी क्षेत्रीय क्षप्रकों की एक लंबी फौज है जो उसे मजबूती देती है। जो कि छोटे चुनाव जैसे की नगरीय निकाय आदि में कांग्रेस को जीत दिलवाती है लेकिन इन्ही क्षेत्रीय क्षप्रकों के आपसी विवाद विधानसभा और लोकसभा में हार का कारण बनते है।

जातिगत समीकरण
यदि जातिगत समीकरणों की बात की जाये तो यहां जाति को आधार बनाकर सबसे ज्यादा दावेदारी की जा रही है। जिसमें कांग्रेस की तरफ से सबसे ज्यादा नाम है तो भाजपा की तरफ से भी कुछ सामने से तो कुछ पर्दे के पीछे से टिकट मांग रहे है। यदि जातियों और उसके प्रभाव को देखे तो यहां मुस्लिम, जैन और ब्रा हण फैक्टर काम करता है। मुस्लिम वोटों का पोलराईजेशन ज्यादातर कांग्रेस की तरफ रहता है जिसका फायदा भाजपा को मिलता आ रहा है। मुस्लिम वोटो के पोलराईजेशन के कारण पुराने जबलपुर के पुराने क्षेत्रों की हिन्दू वोट बीजेपी की तरफ पोलराईज़ हो जाती है।

जिसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है बीजेपी का ब्रा हण-बनिया फैक्टर जो उसे जीत दिलाता है कहने को तो सभी अपनी-अपनी सुविधाओं के हिसाब से अपने वोट बैंक को बढ़ाकर बताते है लेकिन वास्तविकता में लगभग बीस हजार जैन वोटर और लगभग 25 हजार ब्रा ण वोटर मिलकर भाजपा के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर देते है। जिसके बाद भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज तो है ही यहां ओ बी सी की सं या सबसे ज्यादा है लेकिन बिखराव के चलते यह निर्णायक भूमिका में नहीं है।

परिसिमन्य ने बदल दिया
२००८ के पहले इस विधानसभा में मुस्लिम वोट भी महत्वपूर्ण थी यदि चुनावों में पोलराईजेशन न हो तो भाजपा के लिए मुश्किल स्थिति हो जाती थी जो अनारों देवी के चुनावों में देखने को भी मिली लेकिन २००८ में विधानसभा का परिसिमन हो गया। जिसके बाद एक बोहत बड़ा मुस्लिम वोट बैंक पूर्व में स्थानांतरित हो गया वहीं पश्चिम विधानसभा का एक बड़ा हिस्सा जो भाजपा ओरिएंटेड माना जाता था। व इस विधानसभा में शामिल हो गया। जो कि भाजपा के लिए एक अच्छी स्थिति थी। उसके बाद तो भाजपा ने यहां हुए दो विधानसभा चुनावों में ५० प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किये और कांग्रेस आस – पास भी नही दिखी।

इस सीट का इतिहास
यदि इतिहास के आईने में देखे तो जनसंघ ने जबलपुर में अपनी नींव इस क्षेत्र से ही डालना शुरू की जिसके चलते उसके पास यहां बहुत बड़ा कार्यकर्ता संगठन तैयार हो गया और फिर नंबे का दौर आते-आते भाजपा ने यहां अपनी पैठ मजबूत कर ली। ओंकार तिवारी ने यहां १९९३ में यहां से जीत दर्ज की १९९८ में भी उन्हें जीत मिली लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव में भाजपा का यह गढ़ 2 सालों के लिए उनके हाथ से निकल गया। लेकिन २००३ में भाजपा ने एक नया चेहरा दिया उसने अपने जमीनी कार्यकर्ता को मैदान में उतारा और उसकी जीत ने यह साबित कर दिया कि यहां प्रत्याशी नहीं कार्यकर्ता भाजपा की ओर से चुनाव लड़ता है। उसके बाद २००८ और २०१३ में तो यहां से भाजपा ने जीत की इबारत ही रच डाली। ऐसा नही है कि कांग्रेस यहां से साफ हो चुकी है। कांग्रेस के पास एक मजबूत आधार है लेकिन वह वोट में नही बदल पाता।

१९९३
भाजपा – ओंकार प्रसाद तिवारी (विजयी)
कांग्रेस – राममूर्ति मिश्रा (पराजय)
१९९८
भाजपा – ओंकार प्रसाद तिवारी (विजयी)
कांग्रेस – ललित श्रीवास्तव (पराजय)
१९९९ उपचुनाव
कांग्रेस – नरेश सराफ (विजयी)
भाजपा – अनारो देवी (पराजय)
२००३े
भाजपा – शरद जैन (विजयी)
कांग्रेस – नरेश सराफ (पराजय)
२००८
भाजपा – शरद जैन (विजयी)
कांग्रेस – कदीर सोनी (पराजय)
२०१३
भाजपा – शरद जैन (विजयी)
कांग्रेस – नरेश सराफ (पराजय)

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