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मैं पाटन से चुनाव नहीं लड़ूंगा-विश्नोई

जबलपुर(अजय पांडे)। विधानसभा चुनाव 2018 के लिए अलग अलग विधानसभा सीटों से अनेक लोग टिकट मांग रहे हैं। ग्रामीण की पाटन सीट से भी भाजपा की ओर से कई नाम सामने आ रहे हैं। दावेदारों की श्रृ़ंखला में बुधवार को आशीष दुबे का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। लेकिन इस सीट से सबसे कदावर नाम अजय विश्नोई ने अपना नाम वापस खींचकर सबको चौंका दिया है। जिस नाम के इर्द गिर्द 20 सालों तक यहां की राजनीति घूमती रही वह अचानक खुद को यहां से अलग कर रहा है।

यह कहा विश्नोई ने
टिकट के दावेदार कॉलम के लिए जब यशभारत ने अजय विश्नोई से बात की और उनकी दावेदारी के विषय में जानना चाहा तो उन्होंने साफ शब्दों में जानकारी दी कि वे पाटन विधानसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। न ही वे वहां से टिकट चाहते हैं। जब उनसे पूछा कि वे कहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं उनकी दावेदारी कहां से है तो उन्होंने जवाब दिया कि जब उसका समय आएगा तो बता दूंगा।

1993 से रहे हैं क्षेत्र में
2008 में हुए परिसीमन के पहले पाटन सीट कटंगी मझौली विधानसभा सीट कहलाती थी। परिसीमन के बाद इसमें पाटन की 36 पंचायत और जोड़ दी गई। विश्नोई 90 के दशक से ही इस सीट पर सक्रिय रहे और फिर 1993 में रामकुमार पटेल से चुनाव लड़ा जो मामूली अंतर से हार गए। 98 में उन्होंने हिसाब बराबर किया और फिर 2013 तक इस सीट पर काबिज रहे।

क्यों छोड़ी सीट
2013 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद विश्नोई ने 3 सालों तक क्षेत्र से दूरी सी बना रखी थी। पिछले कुछ महीनों में उन्होंने कुछ सक्रियता दिखाई लेकिन उनका नाम पश्चिम और पनागर से भी जोड़ा गया। उनका पाटन को छोड़ने का निर्णय इस रूप में भी समझा जा सकता है कि विधानसभा चुनावों में वे लगभग 12 हजार वोट से हारे उसी जगह से भाजपा के राकेश सिंह ठीक बाद हुए लोकसभा चुनावों में इतनी ही वोट से जीते ऐसे में उनकी हार को व्यक्तिगत के रूप में देखा गया।
पार्टी के लोगों की मानें तो 2013 में स्वयं मुख्यमंत्री व संगठन महामंत्री ने विश्नोई को उनकी स्थिति से अवगत करा दिया था और उन्हें कहीं और से चुनाव लड़ने की सलाह भी दी थी लेकिन वे नहीं माने। इस बार भी हालत नहीं बदले यह बात हो सकता है उन्होंने भांप ली हो।

क्या होगा असर
अजय विश्नोई का पाटन से बाहर होने का असर जिले की दो और विधानसभा सीटों पर पड़ रहा है। उनके बाहर जाने से कुछ के चेहरे खिल गये हैं तो कुछ के मुरझा गए हैं। पाटन से कुछ लोगों को अपनी राह आसान दिखने लगी है तो दूसरी विधानसभा क्षेत्र में कुछ को वे अपनी राह का रोड़ा लग रहे हैं। वे एक कुशल संगठनकर्ता के साथ साथ दूरदर्शी नेता हैं आने वाले दिनों में देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि ऊंठ किस करवट बैठता है।

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