इसी बहाने

किसी पर चढ़ा तो किसी का उतर गया रंग

इसी बहाने (आशीष शुक्‍ला)। होली दुनियाभर का एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमे बुरा मानने की भी कोई बात होती है! तभी तो कहा जाता है बुरा न मानो होली है…।

वैसे कोई अगर बुरा मान भी गया तो न तो इससे होली पर कोई प्रभाव पड़ता है न ही होरियारों पर। देश मे यह परंपरा अपने आप मे अनूठी ही है, जिसमे बुरा मानने की बात से शुरुआत होती है जो बाद में होली मिलन के साथ सम्पन्न हो जाती है।

बहरहाल इससे पहले रंग चढ़ने या फिर उतरने की बात की जाए आप सभी को इसी बहाने हम भी समूचे यशभारत परिवार की तरफ से रंग बिरंगी शुभकामनाएं दे देते हैं। अब इसमें आप सब बुरा मत मानना विशेष तौर पर वे माननीय जिन पर होली का रंग चुनाव परिणाम के साथ ही उतरा-उतरा सा नज़र आ रहा है। होली के इस रंग-बिरंगे पर्व में प्रदेश की होली कहीं खुशी कहीं गम जैसी ही रही । किसी पर होली में परिणामों का गाढ़ा रंग चढ़ा तो किसी का कई वर्षों से चढ़ा रंग फीका पड़ गया। अब ये तो समय है पता नहीं कब किस पर होली का रंग चढ़ जाए और कब उतर जाए।

यही तो होली का असली मज़ा है। मैं तो परिणाम देने वाली संस्थाओं से गुजारिश करूँगा कि वह कम से कम होली और दिवाली के ठीक पहले परिणामों का रंग बिल्कुल भी न उड़ाएं। इधर परिणामों का रंग उड़ता है, उधर कई लोगों के चेहरे का रंग उड़ जाता है।

दिवाली हो या होली परिणाम तो त्योहार के बाद ही आने चाहिये ताकि कम से कम सभी के चेहरे का रंग तो सलामत रहे। रंग से एक बात ध्यान में आई कि कुछ घंटों पहले ही प्रदेश के उप चुनावों में जमकर रंग बिखरा भी और उतरा भी।

लोग तो अब इस रंग से खासे उत्साहित नज़र आ रहे हैं। ऐसे महानुभावों का मानना है कि यह रंग इतना गाढ़ा है कि नवम्बर-दिसम्बर तक बिल्कुल भी उतरने की संभावना नहीं । दूसरी ओर रंग में नहाए दूसरे महानुभाव को विश्वास है कि वह इस रंग को उतार ही लेंगे, भले ही इसके लिए उन्हें कोई स्वदेशी साबुन ही क्यों न बनवाना पड़े।

चिंता और चिंतन के दौर में फिलहाल पराजय के रंग की उस विधि की तलाशने का वक्त है जिसमें जनता के एक एक एक वोट रूपी कण से रंग चोखा हुआ। परिणाम में पराजय के रंग को स्वीकार तो सहर्ष कर लिया गया, अब यह रंग उतरेगा कैसे इसके विकल्पों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। दूसरी ओर विजय के रंग में चमके चेहरों को भी अति आत्मविश्वास के रंग से बचना चाहिये क्योंकि जमाना जानता है रंग कितने भी पक्के क्यों न हों एक ऐसा मतदाता ब्रांड का डिटर्जेंट आ ही जाता है जो रंगों को उतार ही देता है। फिलहाल जनता ही वह साबुन है जो जीत के रंग को उतारने का माद्दा रखती है लिहाजा रंग चढ़ा रहे इस पर ध्यान देना मुनासिब, वरना वक्त जाते देर नहीं लगती सफलता पाना आसान हो सकता है किंतु उसे संभाल कर रखना कठिन।

आज 14 साल से सफलता दर सफलता मिलने का परिणाम भी सामने है जब ऐन होली पर ही सत्ता का रंग उतर गया। जनता ने विश्वास की कसौटी पर नया रंग डाल दिया। अब वक्त की कसौटी पर यह रंग कितना गुल खिलाता है, आने वाला समय तय करेगा। हम तो यही चाहते हैं कि रंगों के इस पावन पर्व में देश मे खुशियों, आपसी भाईचारे, का रंग चढ़े बस ईश्वर से यही कामना है।

हमारे लिये यह होली कुछ दुःख भरी खबरों के साथ भी आई। 50 वर्षों तक अपने अभिनय से देश दुनिया को कद्रदान बनाने वाली अभिनेत्री श्रीदेवी हमेशा हमेशा के लिये खामोश हो गईं। यह निश्चित तौर पर पूरे फिल्म जगत ही नहीं हर भारतीय कला के कद्रदान के लिए एक सदमा की तरह वह काला रंग है जिसका दिलों से मिट पाना असंभव है। होली आपके जीवन मे खुशियों की सौगात लाये। बुरा न मानों होली की कहावत को हर व्यक्ति चरितार्थ करे क्योंकि पर्व ही हैं जो हमें एक दूसरे से मिलन का मौका देते हैं एक दूसरे का कुशलक्षेम जानने का अवसर देते हैं, जिन्हें पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाएं चिंता न करें यह तो रंग है जब चढ़ेगा तो खिलेगा पर उतर भी तो जाएगा…।

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