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छठ पूजा के तीसरे दिन आज डूबते सूर्य देव को दिया जाएगा पहला अर्घ्य, कल उगते सूर्य को दूसरे अर्ध्य के साथ होगा पर्व का समापन 

कटनी। सूर्योपासना के महापर्व छठ का आज तीसरा दिन है। तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य यानी डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा एक त्यौहार नहीं बल्कि लोगों का इस पर्व से एक गहरी आस्था और भावनाएं जुड़ी हुई हैं। पूरे साल छठ पूजा का इंतजार लोग बड़ी बेसब्री के साथ करते हैं। एक यही वो मौका होता है जब पूरा परिवार एक साथ आता है। इस त्यौहार को मनाने के लिए सालभर दूर रहने वाले परिवार के अन्य सदस्य भी अपने घर आते हैं। शहर में छठ महापर्व की असली छठा गायत्रीनगर के बाबाघाट व उपनगरीय क्षेत्र छपरवाह के चक्की घाट में देखने को मिलती है। एक छठ पूजा ही है जिसमें ढलते सूर्य की उपासना की जाती है। आज यानी गुरुवार को छठ का तीसरा दिन है। आज ही छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिया जाएगा। छठ के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। आज व्रती महिलाएं नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं। व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

छठ के तीसरे दिन ढलते सूर्य को अर्घ्य देने का समय

आज सूर्यास्त का समय 07 नवंबर 2024 दिन गुरुवार को शाम 5 बजकर 31 मिनट पर है। आज इस समय पर छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्य भगवान को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। इसे अस्ताचलगामी सूर्य अर्घ्य कहा जाता है, जिसका अर्थ है ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देना।

छठ पूजा के महत्व पर एक नजर 

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ का त्यौहार मनाया जाता है। छठ का व्रत संतान की लंबी आयु और समृद्धि की लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से परिवार में सदैव खुशहाली बनी रहती है। वहीं अगर जिनकी गोद सूनी और वे छठ का व्रत करती हैं तो छठी मईया की कृपा से जल्द उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। बता दें कि छठ पूजा में डाला का विशेष महत्व होता है। डाला का अर्थ है बांस का डलिया। इस डाला को कोई पुरुष या महिला अपने सिर पर रखकर तालाब या नदी किनारे बने छठ घाट तक ले जाता है। इस डाला में छठ पूजा से जुड़ी सभी पूजा सामग्री रहती है।

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