
Tel Sasta Huaa: सरसों, सोयाबीन, कपास और मूंगफली जैसे तिलहनों की मंडियों में आवक कम, तेल के दाम में आई कमी। देश के बंदरगाह पर आयातित तेलों की लागत से कम दाम पर बिकवाली जारी रहने के बीच देश के तेल-तिलहन बाजारों में सभी खाद्य तेल तिलहनों के दाम हानि दर्शाते बंद हुए. बाजार सूत्रों ने बताया कि बंदरगाहों पर आयातित तेलों का बेपड़ता कारोबार यानी लागत से कम दाम पर बिक्री जारी है. पिछले लगभग तीन महीनों से आयातक बैंकों में अपना ऋण साखपत्र (एलसी) घुमाते रहने की मजबूरी की वजह से आयातित खाद्यतेलों को लागत से 2-3 रुपये किलो कम दाम पर बेच रहे हैं. तीन महीनों से जारी इस बेपड़ता कारोबार की न तो तेल संगठनों ने और न ही सरकार ने कोई खोज खबर ली है.
खाद्यतेलों का स्टॉक
इस निरंतर घाटे के सौदों के बीच आयातकों की आर्थिक दशा बिगड़ चुकी है. उनके पास इतना भी पैसा नहीं बचा कि वह आयातित खाद्यतेलों का स्टॉक जमा रख सकें और लाभ मिलने पर अपने स्टॉक को खपायें. बैंकों में अपने ऋण साख पत्र (लेटर आफ क्रेडिट या एलसी) को चलाते रहने की मजबूरी की वजह से आयातित तेल सस्ते में ही बंदरगाहों पर बेचा जा रहा है.
मंडियों में आवक कम हो रही
उन्होंने कहा कि इसके अलावा सरसों, सोयाबीन, कपास और मूंगफली जैसे तिलहनों की मंडियों में आवक कम हो रही है. मंडियों में तो सरसों, मूंगफली और सूरजमुखी तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी कम दाम पर बिक रहे हैं. माल होने के बावजूद पेराई का काम बेपड़ता होने यानी पेराई के बाद बेचने में नुकसान होने के कारण लगभग 60-70 प्रतिशत तेल पेराई की छोटी मिलें बंद हो चुकी हैं. बंदरगाहों पर भी साफ्ट तेलों का स्टॉक कम है और पाइपलाईन खाली है. दिसंबर में काफी संख्या में शादियों और जाड़े की मांग होगी. साफ्ट ऑयल का आयात भी घट रहा है. ऐसे में आने वाली मांग को पूरा करना एक गंभीर चुनौती बन सकता है.