Success Story: प्रदेशभर में हरियाली की नई लहर, बेलकुंड रोपणी के सागौन रूट-सूट से ढीमरखेड़ा का भमका गांव बना रोजगार का केंद्र
Success Story: प्रदेशभर में हरियाली की नई लहर, बेलकुंड रोपणी के सागौन रूट-सूट से ढीमरखेड़ा का भमका गांव बना रोजगार का केंद्र

Success Story: प्रदेशभर में हरियाली की नई लहर, बेलकुंड रोपणी के सागौन रूट-सूट से ढीमरखेड़ा का भमका गांव बना रोजगार का केंद्र। जिले के ढीमरखेड़ा तहसील के भमका गांव की वन विकास निगम बेलकुंड रोपणी से तैयार किए गए सागौन के रूट-सूट एवं पालीपौट पौधे प्रदेशभर को हरियाली से समृद्ध करेंगे।
बेलकुंड रोपणी हरियाली की ओर एक सशक्त कदम
भमका गांव स्थित बेलकुंड रोपणी का नाम उस नदी के नाम पर पड़ा है जो इसी गांव से होकर गुजरती है बेलकुंड नदी। यह रोपणी अब ढीमरखेड़ा क्षेत्र की पहचान बन गई है। यहां पर तैयार होने वाले पौधे न केवल स्थानीय वन क्षेत्रों के लिए बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों में भेजे जाते हैं। रूट-सूट सागौन के 21 लाख पौधे, पालीपौट सागौन के 2 लाख 17 हज़ार पौधे, यह मात्र आंकड़े नहीं, बल्कि प्रदेश की धरती को हरीतिमा से आच्छादित करने का अभियान है।
रूट-सूट सागौन
रूट-सूट तकनीक से तैयार पौधे सामान्य पौधों की तुलना में अधिक टिकाऊ, मजबूत और तेजी से विकसित होने वाले होते हैं। ये पौधे विभिन्न मौसमीय परिस्थितियों में भी जीवित रहते हैं और उनकी जड़ें गहराई तक जाती हैं, जिससे भूमि अपरदन में कमी आती है। बेलकुंड रोपणी में इस तकनीक के तहत तैयार किए गए 21 लाख रूट-सूट सागौन अब प्रदेशभर के सूख चुके स्थानों में रोपित किए जाएंगे।
पालीपौट सागौन गुणवत्ता और पोषण का प्रतीक
पालीपौट तकनीक के माध्यम से पौधे छोटे कंटेनर या थैलियों में उगाए जाते हैं, जिससे उन्हें स्थानांतरित करने में आसानी होती है और उनकी जड़ें कम क्षतिग्रस्त होती हैं। बेलकुंड रोपणी में इस वर्ष 2 लाख 17 पालीपौट सागौन का भी उत्पादन किया है, जो वन क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने में उपयोग किए जाएंगे।
प्रदेशभर में जा रहे पौधे
बेलकुंड रोपणी से तैयार पौधों को प्रदेश के विभिन्न जिलों कटनी, सतना, सीधी आदि में भेजा गया है। 7 लाख 64 हजार पौधे अकेले सामान्य वन मंडल कटनी, सतना, सीधी में भेजे गए, जिसकी लागत लगभग 61 लाख 12 हज़ार रुपये है। यह न केवल पर्यावरणीय बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी बेलकुंड रोपणी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
रोजगार का सृजन
बेलकुंड रोपणी का संचालन न केवल पौधों के उत्पादन तक सीमित है, बल्कि इसने ग्रामीणों के लिए रोजगार के नए अवसर खोले हैं। भमका, परसेल, रोझन, देहरी, कटरा, बिजौरी, जिर्री जैसे दर्जनों गांवों से सैकड़ों श्रमिक बेलकुंड आते हैं और 6 से 8 महीनों तक यहां कार्य करते हैं। इस रोपणी में नर्सरी से लेकर पौधारोपण, देखभाल और वितरण तक की सभी प्रक्रियाएं हाथों से होती हैं, जिसमें महिला एवं पुरुष दोनों की भागीदारी रहती है। इससे न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता आती है, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को हरियाली से जोड़ने का प्रयास भी होता है।
कुंडम परियोजना मंडल
मध्यप्रदेश राज्य वन विकास निगम कुंडम परियोजना मंडल, जबलपुर द्वारा किया जा रहा है। प्रमुख अधिकारी संभागीय प्रबंधक श्री राहुल मिश्रा, उपसंभागीय प्रबंधक श्रीमती अभिश्वेता रावत, रोपणी सहायक श्री विवेक तिवारी इन अधिकारियों के नेतृत्व में बेलकुंड रोपणी को सशक्त दिशा मिली है। उनके मार्गदर्शन में रोपणी का प्रत्येक पहलू जैसे गुणवत्तापूर्ण उत्पादन, वितरण प्रबंधन, कार्यकर्ताओं के हितों की रक्षा, पौधों की देखरेख, जल प्रबंधन आदि योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है।