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कटनी में बिजली संकट गहराया: MPEB की लापरवाही से जनता बेहाल, रातभर अंधेरे में डूबे मोहल्ले

कटनी,मध्यप्रदेश | औद्योगिक विकास के नाम पर सुर्खियों में रहने वाला कटनी शहर आज बिजली संकट की भयावह सच्चाई से जूझ रहा है। एक ओर प्रदेश सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे करती है, तो दूसरी ओर कटनी जिला बिजली की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। हालात यह हैं कि शहर के कई फ़ीडरों पर बीते कई दिनों से रातभर बिजली गुल रहने की घटनाएं आम हो चुकी हैं — और MPEB (मध्य प्रदेश बिजली वितरण कंपनी) मूकदर्शक बनी बैठी है।

रातभर अंधेरे में डूबे मोहल्ले, जनता बेहाल

शहर के खिरहनी फाटक, शास्त्री कॉलोनी, चक्की घाट, घंटा घर , छपरवाह, गायत्री नगर, जैसे अन्य इलाकों में बिजली की आंख-मिचौनी ने नागरिकों का जीना मुहाल कर दिया है। रातभर कटौती के चलते आमजन पीड़ा झेल रहे हैं।

MPEB की नाकामी: सवालों के घेरे में जवाबदेही

शहरवासियों का कहना है कि समस्या की सूचना देने पर MPEB (मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी) के कॉल सेंटर और संबंधित कार्यालय से ‘तकनीकी समस्या है’, ‘लाइन फॉल्ट है’, ‘देख रहे हैं’ जैसे रटे-रटाए बहाने मिलते हैं। हकीकत यह है कि न तो फॉल्ट समय पर सुधरते हैं, न कोई स्थायी समाधान मिलता है।

जवाबदेही की बात करें तो ऐसा प्रतीत होता है मानो MPEB (मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी) का कोई भी अधिकारी न तो जनता के प्रति उत्तरदायी है और न ही सरकार के प्रति। लोक सेवक का पद केवल तनख्वाह और सरकारी सुविधा भोगने का माध्यम बन गया है।

भारी वोल्टेज ड्रॉप और उपकरणों की बर्बादी

केवल बिजली कटौती ही नहीं, बल्कि अत्यंत निम्न वोल्टेज की समस्या भी विकराल होती जा रही है। पंखे चलते नहीं, फ्रिज और इनवर्टर खराब हो रहे हैं, AC और कूलर शोपीस बनकर रह गए हैं। उपभोक्ताओं के लाखों के उपकरण ध्वस्त हो रहे हैं और MPEB (मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी) को मानो कोई सरोकार ही नहीं।

राजनीतिक चुप्पी और प्रशासनिक निष्क्रियता

सबसे गंभीर प्रश्न यह है कि शहर के निर्वाचित जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? क्या जनता की तकलीफें उनके एजेंडे में शामिल नहीं? क्या अधिकारियों को तभी नींद से जगाया जाएगा जब जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जाएगी?

कब सुधरेगी व्यवस्था?

कटनी की जनता अब MPEB (मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी) की लापरवाही और प्रशासनिक निष्क्रियता से त्रस्त हो चुकी है। यह केवल तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि प्रबंधन की भयानक कमी का नतीजा है।

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