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क्या हिंदी बेल्ट वालों के लिए साउथ में पोस्टिंग सजा, या फिर पेशेवर चुनौती? BJP ने कांग्रेस को घेरा

क्या हिंदी बेल्ट वालों के लिए साउथ में पोस्टिंग सजा, या फिर पेशेवर चुनौती? BJP ने कांग्रेस को घेरा

क्या हिंदी बेल्ट वालों के लिए साउथ में पोस्टिंग सजा, या फिर पेशेवर चुनौती? BJP ने कांग्रेस को घेरा। कर्नाटक में भारतीय स्टेट बैंक की मैनेजर और स्थानीय ग्राहक के बीच कन्नड़ बोलने को लेकर हुए विवाद ने तूल पकड़ लिया है. बैंक अफसर को कन्नड़ नहीं आती तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि मैं हिंदी या अंग्रेजी में बात कर सकती हूं, जबकि ग्राहक कन्नड़ में बात करने की जिद कर रहा था. तर्क यह कि बैंक स्थानीय भाषा में बातचीत को प्राथमिकता में रखते हैं

 

इस विवाद के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर भाषा विवाद हो क्यों रहा है? रातों-रात उत्तर भारत का मूल निवासी कोई भी बैंक अफसर तमिल, तेलुगु, मलयालम आदि तो नहीं सीख सकता. इसके लिए समुचित ट्रेनिंग की व्यवस्था ही उचित कदम होगा, लेकिन फिलहाल ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. सवाल यह भी उठते रहते हैं कि क्या उत्तर भारतीय बैंक अधिकारी की दक्षिण और दक्षिण भारतीय बैंक अधिकारी की उत्तर भारत में पोस्टिंग सजा है?

बैंकिंग में नहीं दिया जाता भाषा का प्रशिक्षण

नियमानुसार अभी तक देश के किसी भी बैंक में यह व्यवस्था नहीं है कि अफसर या कर्मचारी को स्थानीय भाषा का प्रशिक्षण दिया जाए, जैसा कि आईएएस, आईपीएस आदि के केस में होता है. उन्हें भाषा का समुचित ज्ञान दिया जाता है. पर, भाषा के लिए आपसी सहयोग की भावना और तैनाती में ध्यान रखने की एक अलिखित परंपरा का पालन बैंक अधिकारी करते हैं.

बैंकों में नियमित अंतराल पर तबादले होते रहते हैं. प्रोन्नति पर अनिवार्य तबादले होते हैं. अनेक बैंक कर्मचारी ऐसे पाए जाते हैं, जिन्होंने तबादला न हो इसके लिए प्रोन्नति नहीं लेने का फैसला किया लेकिन उसमें भाषा मुख्य कारण नहीं रहा है. बैंकों में पीओ की सीधी भर्ती होती आ रही है और पीओ ही आगे चलकर वरिष्ठ पदों पर तैनात किए जाते हैं. ऐसे में वे जहां तैनाती पाते हैं, वहीं जाकर स्थानीय टीम के साथ भाषा भी सीखते हैं और काम भी करते हैं.

जब तेलंगाना के अफसर को मिली पूर्वी यूपी में तैनाती

वरिष्ठ बैंक अफसर विद्या सागर मूल रूप से तेलंगाना के रहने वाले हैं. उन्हें पोस्टिंग उत्तर प्रदेश में मिली, वह भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिहार की सीमा वाले जिले में. वे बताते हैं कि शुरू में मुझे थोड़ी मुश्किल आई जब ब्रांच पोस्टिंग मिली, जहां ग्राहक से सीधा संवाद करना होता था. बड़ी संख्या में ऐसे ग्राहक आते जिन्हें भोजपुरी मिश्रित हिंदी के अलावा दूसरी भाषा नहीं आती और मुझे अंग्रेजी, तेलुगू और तमिल के अलावा कुछ नहीं आता था. मैं एक ऐसे बैंक में था, जिसकी शाखाएं यूपी में उस जमाने में बहुत कम थीं. इस सूरत में कामकाज को सरल बनाने के लिए हमने स्थानीय कर्मचारियों का सहयोग लिया.

करीब छह महीने बाद मैं हिंदी-भोजपुरी समझने लगा, बोलने भी लगा. उस समय गर्व हुआ खुद पर, अपने भारत की संस्कृति पर, क्योंकि भाषा सीखने के साथ ही मैं आसानी से यूपी बिहार के तीज त्योहार का हिस्सा बन पा रहा था. मेरी पत्नी-बच्चे भी हिंदी सीख गए. विद्या सागर अब तेलंगाना पहुंच गए हैं, लेकिन यूपी में छह साल की पोस्टिंग को याद करते हुए मंद-मंद मुस्कुराते जरूर हैं. पूरे देश में विद्या सागर एक नहीं, अनेक हैं.

भाषा से ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है सुविधाएं

यूं तो अफसरों-कर्मचारियों के संदर्भ में हर राष्ट्रीयकृत बैंक के अपने नियम-कानून हैं लेकिन इनमें समानताएं बहुत हैं. हर बैंक ने एरिया के हिसाब से सुख-सुविधाएं देने की व्यवस्था है. मसलन, अगर किसी की पोस्टिंग लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, नॉर्थ-ईस्ट में होगी तो ऐसे बैंक अफसरों-कर्मचारियों को विशेष भत्ते की व्यवस्था है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े शहरों में तैनाती पर आवासीय भत्ता ज्यादा मिलता है तो लखनऊ, पटना, हैदराबाद, भोपाल, नासिक में अपेक्षाकृत कम. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि बैंकिंग सेक्टर में हर अफसर को अनिवार्य रूप से ग्रामीण ब्रांच में भी काम करना होता है तो कस्बों में खुले ब्रांच में भी.

कई बैंकों में प्रोन्नति से इसे जोड़ दिया गया है. जब कोई युवा पीओ बनता है तो उसके सपने होते हैं. जीवन मस्त कटेगा लेकिन उसकी नई-नई शादी हुई और पोस्टिंग मिल गई स्केल-2 की ब्रांच में किसी गांव में तो उसके सामने अजब संकट होता है. आवास, चिकित्सा, अगर छोटे बच्चे हैं तो स्कूल, ऐसे में अफसर ब्रांच से 25-50 किलोमीटर तक की दूरी रोज तय करते हैं ब्रांच पहुंचने के लिए. वे कहते हैं भाषा से तो निपटना आसान है, लेकिन यह सबसे बड़ा चैलेंज होता है. जाड़ा, गर्मी, बरसात में समय से ब्रांच पहुंचना-लौटना चुनौती से कम नहीं है.

तैनाती को सजा नहीं मानते अधिकारी

जीएम रहे बैंक अधिकारी वीएम त्रिपाठी कहते हैं कि बैंकों में पोस्टिंग को लोग सजा नहीं मानते और न ही तैनाती देते समय किसी अफसर के मन में ऐसा कुछ होता है. बैंक के सामान्य नियम हैं. अगर आज किसी इलाके में पोस्टिंग हुई है तो ऐसा नहीं होगा कि वह अनिश्चित काल के लिए हो. अधिकतम तीन साल की पोस्टिंग हो सकती है. नौकरी के शुरुआती दिनों में ही यह सबको पता होता है कि देश के किसी भी हिस्से में पोस्टिंग हो सकती है, ऐसे में हर इंसान तैयार रहता है. सबको बड़े शहर मिलते हैं तो गांव में भेजे जाने का नियम भी है.

वे कहते हैं कि जब भी किसी उत्तर भारतीय को दक्षिण या दक्षिण भारतीय को उत्तर भारत में पोस्टिंग दी जाती है तो सभी बैंक प्रयास यही करते हैं कि ऐसे अफसरों को जिनके सामने स्थानीय भाषा का संकट हो उन्हें ज़ोनल या रीजनल ऑफिस की पोस्टिंग दी जाए, क्योंकि आमतौर पर यहां ग्राहक से डील नहीं करना होता. बाकी बैंक में जो भी अफसर बना है, उसकी अंग्रेजी ठीक होती है तो काम चल जाता है. स्थानीय साथियों का सहयोग परस्पर मिलता ही है. ऐसे में दिक्कतें स्वाभाविक तौर पर कम हो जाती हैं.

रेलवे, सीबीआई, इनकम टैक्स वालों के सामने भी भाषाई दिक्कतें

भाषाई संकट केवल बैंक वालों के सामने नहीं है, बल्कि रेलवे, सीबीआई, इनकम टैक्स समेत केंद्र सरकार के अनेक विभागों में भाषाई समस्या अफसरों-कर्मचारियों के सामने आती है. किसी भी संगठन के पास भाषा सिखाने की सुविधा नहीं है, लेकिन आपसी सहयोग से सबका काम चल रहा है. कर्मचारी संगठन की नेतागिरी कर रहे मधुरेन्द्र कहते हैं कि नौकरी की शुरुआती दिनों में ही यह सब पता होता ऐसे में दिक्कतें होकर भी नहीं होती. एक कहावत है-मरता क्या न करता? अगर कोई पोस्टिंग प्लेस पर जाने से मना करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है.

मधुरेन्द्र कहते है कि अच्छा हो सरकार केन्द्रीय कर्मचारियों को कम से कम दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय भाषाओं की मूलभूत ट्रेनिंग तैनाती के समय दे दे तो आसानी हो जाएगी. हिंदी के प्रोफेसर डॉ. परिचय दास कहते हैं कि वे भाषा संस्थान के साथ काम कर चुके हैं. भारत विविधताओं वाला देश है. अनेक भाषाओं के साथ हम जीते हैं और यही भारत की खूबसूरती है. भाषाओं की ट्रेनिंग का कोई ढांचा बनाना एकदम से आसान नहीं है.

आठवीं अनुसूची में हैं 22 भाषाएं

प्रोफेसर परिचय दास कहते हैं कि कहना आसान है, लेकिन अकेले आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं. इनमें हिंदी, संस्कृत, बंगाली, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मराठी, गुजराती, उड़िया, असमिया, कोंकण, कश्मीरी, सिन्धी, बोड़ो, संथाली, मैथिली, मणिपुरी, नेपाली, डोगरी, पंजाबी, अंग्रेजी आदि हैं. इनके अलावा अनेक ऐसी भाषाएं बोली-लिखी जाती हैं, जो इस सूची में दर्ज होने को संघर्ष कर रही हैं. ऐसे में केन्द्रीय कर्मचारियों को भाषा की ट्रेनिंग देना किसी चुनौती से कम नहीं है.

हालांकि सरकार चाहे तो कर सकती है लेकिन कठिनाई आएगी. चूंकि अंग्रेजी आठवीं अनुसूची में शामिल एक ऐसी भाषा है, जिसे पूरे भारत में सहायक भाषा के रूप में मान्यता है, ऐसे में कामकाज आसान हो जाता है. बैंकों या कहीं भी केंद्र सरकार के सभी आदेश प्रायः इंग्लिश में ही निकाले जाते हैं. बैंक तो हिंदी में भी निकालते हैं. राज्य सरकारें जरूर अपनी भाषा में आदेश आदि निकालती हैं.

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