वन नेशन वन इलेक्शन: सरकार गिरने के बाद क्या होगी नई रणनीति?, जानिए हर सवाल का जवाब

मोदी कैबिनेट ने एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इसे दो चरण में लागू करने का प्लान है. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे. इन चुनावों के बाद 100 दिन के भीतर स्थानीय चुनाव (पंचायत और निगम) होंगे. चुनावों के लिए एक वोटर लिस्ट होगी. सरकार का कहना है कि इसको लागू करने के लिए एक कार्यान्वयन समूह बनाएगी. प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद अब लोगों के जेहन में कुछ सवाल हैं. पहला सवाल है देश में किस तरह से ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ लागू होगा? समय से पहले भंग हुई लोकसभा और विधानसभा तो क्या होगा? आइए जानते हैं कि उच्च समिति ने अपनी रिपोर्ट में इसको लेकर क्या सिफारिशें की थीं.
अगर समय से पहले भंग हुई लोकसभा और विधानसभा तो क्या होगा?
लोकसभा और राज्य विधानसभा अपनी पहली बैठक के लिए नियत तारीख से पांच साल की अवधि से पहले ही भंग कर दी जाती है तो सदन या राज्यविधान सभा को पुनर्गठित करने के लिए मध्यावधि चुनाव होंगे. मगर, मध्यावधि चुनाव में गठित सदन या राज्यविधान सभा का कार्यकाल, उसके कार्यकाल की शेष असमाप्त अवधि के लिए होगा. इस तरह पांच साल बाद लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाएं एक ही समय में अपने कार्यकाल के अंत तक पहुंचेगीं. ऐसे में एक साथ चुनाव होंगे.
अगर किसी राज्य में नहीं कराए जा सकते चुनाव तो क्या होगा?
अगर किसी वजह सेआम चुनाव के समय किसी राज्य विधानसभा के लिए साथ में चुनाव नहीं कराया जा सकता है तो चुनाव आयोग राष्ट्रपति से सिफारिश कर सकता है. वो कह सकता है कि उस विधानसभा का चुनाव राष्ट्रपति किसी अन्य तारीख में कराने का ऐलान करें. हालांकि, ऐसी विधानसभा का पूरा कार्यकाल उसी दिन समाप्त होगा, जिस दिन आम चुनाव में गठित लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होगा. चुनाव आयोग विधानसभा के लिए स्थगित निर्वाचन को अधिसूचित करते समय वह तारीख घोषित करेगा, जिस दिन विधानसभा का पूरा कार्यकाल समाप्त होगा.
कैसे होंगे एक साथ चुनाव?
इन सभी चुनावों को एक ही समय कराने के लिए एक बार अस्थायी उपाय आवश्यक होगा. सरकार को यह तय करना होगा कि साथ- साथ चुनाव कराने की व्यवस्था कब होगी. आम चुनावों के बाद जब लोकसभा का गठन किया जाता है तो राष्ट्रपति सदन की पहली बैठक की तारीख को अधिसूचना जारी करके प्रावधानों को लागू करेंगे. इस तारीख को नियत तिथि कहा जाएगा.
एक बार जब प्रावधानों को लागू कर दिया जाता है तो नियत तिथि के बाद किसी भी चुनाव में गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर (चाहे किसी भी समय सभा का गठन किया गया हो) समाप्त हो जाएगा. इस तरह लोकसभा और राज्य विधानसभाएं कार्यकाल के अंत में साथ-साथ चुनाव के लिए तैयार हो जाएंगी. इसके बाद लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल में प्रस्तावित संशोधन यह सुनिश्चित करेगा कि तालमेल बना रहे।
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 के बारे में जानकारी चाहते हैं? यह अनुच्छेद जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करता था, जो संविधान के 21वें भाग में वर्णित है ¹.
अनुच्छेद 370 के प्रमुख बिंदु
रक्षा, विदेश मामले और संचार_: संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार था
_विशेष अधिकार_: जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती थी, जिसका अर्थ है कि राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं था
भूमि अधिग्रहण_: भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार था, लेकिन जम्मू-कश्मीर में नहीं ।
_वित्तीय आपातकाल_: भारतीय संविधान की धारा 360, जिसके तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती थी
भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया, जिसमें अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया