OMG बगैर नौकरी किए 12 साल तक हर महीने आरक्षक के खाते में वेतन पहुंचता रहा
OMG बगैर नौकरी किए 12 साल तक हर महीने आरक्षक खाते में वेतन पहुंचता रहा

भोपाल। OMG बगैर नौकरी किए 12 साल तक हर महीने उसके खाते में वेतन पहुंचता रहा। करीब 144 महीने में उसके खाते में 28 लाख से ज्यादा की राशि पहुंच गई यह कोई फिल्मी स्टोरी नहीं मध्यप्रदेश पुलिस के आरक्षक का कारनामा है। मामला भोपाल का है।
भोपाल पुलिस लाइन से सागर भेजा गया था
इस आरक्षक को भर्ती के बाद बुनियादी प्रशिक्षण के लिए भोपाल पुलिस लाइन से सागर भेजा गया था। आरक्षक प्रशिक्षण केंद्र न जाकर विदिशा स्थित अपने घर चला गया। तबसे सरकार हर महीने तय समय पर उसके खाते में वेतन भेजती रही। 10 साल बाद पदोन्नति के लिए उसे बुलाया गया तब मामला खुला, अब पुलिस की आंतरिक जांच चल रही है।
आरक्षक की नियुक्ति भोपाल में हुई थी
जानकारी के अनुसार वर्ष 2011 में विदिशा के रहने वाले आरक्षक की नियुक्ति भोपाल में हुई थी। बैच के अधिकतर आरक्षकों के प्रशिक्षण केंद्र जाने के बाद उसने पुलिस लाइन में आमद दी थी। तत्कालीन आरआइ ने उसे पत्रावली देकर सागर स्थित प्रशिक्षण केंद्र भेजा था, लेकिन आरक्षक वहां पहुंचने की बजाए अपने घर चला गया।
प्रशिक्षण केंद्र के अधिकारियों ने भी उसके वहां नहीं पहुंचने की सूचना भोपाल लाइन को नहीं दी। जब छह महीने का प्रशिक्षण पूरा कर अन्य आरक्षक भोपाल पुलिस लाइन में वापस पहुंचे तो अधिकारियों ने उसकी जांच नहीं की। कागजों में उसकी नियुक्ति पुलिस लाइन भोपाल में दिखती रही। इस तरह बगैर नौकरी किए 12 साल तक हर महीने उसके खाते में वेतन पहुंचता रहा। करीब 144 महीने में उसके खाते में 28 लाख से ज्यादा की राशि पहुंच गई।
12 साल बाद ढूंढकर बुलाया गया
वर्ष 2023 में जब 2011 के बैच के आरक्षकों के समयमान वेतनमान का प्रस्ताव आया तो उस बैच के आरक्षकों को बुलाया। तब पता चला कि वह आरक्षक तो कहीं है ही नहीं। उसे फोन कर जब आरआइ ने बुलाया तो आरक्षक ने मनोचिकित्सा उपचार के मेडिकल दस्तावेज पेश कर दिए। उसने बताया कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गया था और इलाज चलता रहा, इसलिए उपस्थित नहीं हो पाया।
सस्पेंड, फिर बहाली
अधिकारियों तक जब यह सूचना पहुंची तो लाइन में ही उसकी पदस्थापना कर दी गई। आरक्षक उसके बाद से ही नेहरू नगर लाइन में कार्यरत है। मामले का खुलासा होने के बाद प्राथमिक जांच होने पर आरक्षक को सस्पेंड कर पुलिस लाइन में ही संबद्ध कर दिया गया। दस महीने पहले एसीपी अंकिता खातरकर की अगुवाई में एक समिति मामले की जांच कर रही है।