
MP Politics: भाजपा का गढ़ बन चुकी हैं कई लोकसभा सीटें, इन्हें जीतना कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चुनौती है ।भोपाल सहित पांच लोकसभा सीटों में 1989 से नहीं जीती कांग्रेस, कांग्रेस अब इन सीटों पर दमदार चेहरे उतारने की तैयारी कर रही है। मध्य प्रदेश में लोकसभा की कई सीटें भाजपा की गढ़ बन चुकी हैं। इन्हें जीत पाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसमें इंदौर और भोपाल लोकसभा सीट भी शामिल है। इंदौर में वर्ष 1984 में कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी जीते थे। इसके बाद 1989 से लगातार भाजपा के कब्जे में यह सीट रही है। यही स्थिति भोपाल की है।
यहां से आखिरी बार कांग्रेस प्रत्याशी केएन प्रधान 1984 में जीते थे। इसके बाद यहां भी 1989 से लगातार यहां भाजपा जीतती रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को यहां से लड़ाया, पर उन्हें भी हार मिली।
भिंड, विदिशा और दमोह में भी 1989 यानी से यानी पिछले नौ चुनावों में भाजपा ही जीतती रही है। जबलपुर, मुरैना बैतूल और सागर में भाजपा वर्ष 1996 से लगातार जीत रही है। पार्टी अब इन सीटों पर जीत के लिए नए और दमदार चेहरे आगे करने की तैयारी में है। एकमात्र छिंदवाड़ा ही ऐसी सीट है जहां एक बार छोड़ कांग्रेस लगातार जीतती रही है। 1997 के उप चुनाव में यहां से भाजपा के सुंदरलाल पटवा जीते थे।
इन सीटों पर है भाजपा का लंबे समय से कब्जा
लोकसभा सीट — भाजपा काबिज
इंदौर — 1989 से
भोपाल — 1989 से
भिंड — 1989 से
विदिशा– 1989 से
दमोह — 1989
जबलपुर– 1996 से
बैतूल — 1996 से
मुरैना– 1996 से
सागर– 1996 से
सतना– 1998 से
बालाघाट — 1998 से
खजुराहो– 2004 से
ग्वालियर — 2007 से
खरगोन –2009 से
सीधी– 2009 से
टीकमगढ़ — 2009 से
शहडोल– 2014 से
मंडला– 2014 से
रीवा — 2014 से
होशंगाबाद — 2014 से
राजगढ़ — 2014 से
देवास– 2014 से
उज्जैन– 2014 से
मंदसौर– 2014 से
धार- 2014 से
खंडवा– 2014 से
गुना — 2019 से
रतलाम – 2019 से
मुश्किल सीटों पर कांग्रेस की ऐसी है तैयारी
कांग्रेस ने सभी लोकसभा सीटों के लिए समन्वयक नियुक्त किए हैं जो क्षेत्र में सभी तरह के समीकरणों का आकलन कर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त पार्टी के अलग-अलग स्तर पर प्रत्याशी चयन को लेकर सर्वे भी हो रहा है।
सभी पहलुओं के साथ कांग्रेस यह भी नजर रख रही है कि भाजपा किस सीट पर किस प्रत्याशी को उतारने की तैयारी कर रही है, जिससे जातिगत समीकरणों को देखते हुए प्रत्याशी की तलाश की जा सके।
इसके साथ ही ऐसे मतदान केंद्र जहां पार्टी पिछले चार चुनाव में लगातार हार रही है उन केंद्रों पर घर-घर संपर्क अभियान चलाया जा रहा है। यह भी कोशिश की जा रही है कि आम सहमति से किसी एक दावेदार का नाम ही चिह्नित किया जाए। तीन फरवरी से स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा होगी।