#MP Vidhansabha ElectionsLatestPolitics

MP में आरक्षित वर्ग की दस सीटों पर हुआ रिकॉर्ड मतदान किसकी कराएगा नैया पार ?

भोपाल। आंकड़ा वाकई में चौंकाता है। सुदूर आदिवासी अंचल और अति पिछड़े इलाकों में बम्पर वोटिंग। वह भी 70 से 80 फीसदी तक। पिछले चुनाव के मुकाबले एकदम 10 फीसदी से ज्यादा का उछाल। वोट बदलाव के लिए डला या मजबूत राष्ट्र के लिए इसकी मिमांसा सियासी दल कर रहे हैं। तसल्ली इस बात की है कि कम पढ़ा लिखा माने जाने वाला तबका भी लोकतांत्रिक अधिकार के लिए कितना सचेत है।

मध्यप्रदेश इस बात के लिए भी इस बार गर्व कर सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले उसने वोट प्रतिशत उछाल के मामले में पूरे देश में अव्वल नंबर हासिल किया। सर्वाधिक दस फीसदी की बढ़ोतरी लेकर हिंदी भाषी राज्यों में परचम लहराया। इसमें भी सबसे अचरज उन दस सीटों के लिए ज्यादा हो रहा है, जो आदिवासी और अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। देवास शाजापुर लोकसभा सीट जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थीं, वहां तो वोटिंग का आंकड़ा 80 से थोड़ा कम यानी 79.48 फीसदी रहा।

धुर आदिवासी सीट मंडला, बालाघाट, खरगोन में 77 फीसदी से ज्यादा वोट पड़े तो धार झाबुआ-रतलाम जैसे आदिवासी इलाकों में वोटिंग परसेंटेज 75 फीसदी के पार रहा। सभी आरक्षित सीटों पर पिछले चुनाव के मुकाबले औसतन दस फीसदी ज्यादा मतदान हुआ। इसके विपरीत शहरी इलाकों की बात करें तो भोपाल जहां पूरे देश की निगाहें टिकी हुई थीं, वहां दिलचस्प मुकाबले के बावजूद 65 फीसदी ही वोट पड़े। जबकि ग्वालियर में यह आंकड़ा 59.78 फीसदी रहा।

नफा नुकसान का आकलन

यह संयोग है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में आरक्षित वर्ग की ये दस सीटें भाजपा के पास थीं। बाद में हुए एक उपचुनाव में एक आदिवासी सीट भाजपा के कब्जे से निकलकर कांग्रेस के पास चली गई, लेकिन 2014 भाजपा के इतिहास के मील का पत्थर कहा जाएगा, जब छह आदिवासी और चार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट उसके पाले में गिरीं। सबसे बड़ा सवाल कि इस बार क्या होगा। दोनों दल इन सीटों पर उम्मीद लगाए बैठे हैं।

कांग्रेस को उम्मीदें ज्यादा हैं, क्योंकि चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में इन दस लोकसभा सीटों के अंतर्गत पड़ने वाली विधानसभा की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा लिया है। धार-रतलाम और खरगोन की 24 में से 20 सीटें कांग्रेस के पास चली गई थीं। कांग्रेस इस बार इन तीनों लोकसभा सीटों पर वापसी का दावा कर रही है। इस दावे का आधार विधानसभा चुनाव के नतीजे हैं। जबकि भाजपा बाजी पलटने की बात कर रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के बड़े नेता शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि ‘मैं आदिवासी इलाकों में घूमा हूं।उनके चेहरे पढ़ता हूं। आदिवासियों को भी भाजपा की सरकार जाने का मलाल है।” भाजपा मोदी लहर के साथ-साथ मालवा-निमाड़ के प्रमुख आदिवासी संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) में फूट को भी अपने पक्ष में मानकर चल रही है। महाकोशल और विंध्य कीआदिवासी सीटों पर भाजपा यदि अपने भितरघात पर काबू पा गई तो वहां उसकी राह आसान हो जाएगी। यहां दो सीटें हैं, शहडोल और मंडला। विधानसभा चुनाव में भाजपा बराबरी की स्थिति में थी।

अनुसूचित जाति की सीटों की बात करें तो ग्वालियर चंबल संभाग की भिंड और बुंदेलखंड की टीकमगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा अपने आप को मजबूत मान रही है। कांग्रेस ने भी पूरा दम झोंक रखा है। विधानसभा चुनाव में भिंड में भाजपा को तगड़ा झटका लगा था, लेकिन अब वहां स्थिति संभल गई है। टीकमगढ़ में भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार मैदान में हैं। वहां कांग्रेस ने एकदम नए चेहरे को मौका दिया है, जिसका भाजपा लाभ उठाने की फिराक में है।

Leave a Reply

Back to top button