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मात्स्या-6000: भारत की अत्याधुनिक पनडुब्बी, 6000 मीटर तक जा सकती है, 30 मिनट में भेजेगी जानकारी

मात्स्या-6000: भारत की अत्याधुनिक पनडुब्बी, 6000 मीटर तक जा सकती है, 30 मिनट में भेजेगी जानकारी

मात्स्या-6000: भारत की अत्याधुनिक पनडुब्बी, 6000 मीटर तक जा सकती है, 30 मिनट में भेजेगी जानकारी, मत्स्य-6000 भारत की प्रमुख मानव पनडुब्बी है, जिसका उद्देश्य तीन व्यक्तियों को 6000 मीटर की गहराई तक ले जाना है। इसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान चेन्नई द्वारा विकसित किया गया है। अब यह पनडुब्बी समुद्र में अपने मिशन पर जाने के लिए तैयार है।
मात्स्या-6000: भारत की अत्याधुनिक पनडुब्बी, 6000 मीटर तक जा सकती है, 30 मिनट में भेजेगी जानकारी

तैयारी के अंतिम चरण में पनडुब्बी को कई परीक्षणों से गुजारा जा रहा है। पनडुब्बी का पायलट हर 30 मिनट में जानकारी देगा। पनडुब्बी में 96 घंटे तक की आपातकालीन सहनशक्ति है, जो एक डीएनवी प्रमाणित मानव सहायता और सुरक्षा प्रणाली (एचएसएसएस) द्वारा समर्थित है। गहरे समुद्र के रहस्यों का पता लगाने में यह पनडुब्बी कारगर साबित होगी। इस प्रोजेक्ट के जरिए नॉटाइल नामक समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक जाने वाली फ्रांसीसी मानव वैज्ञानिक पनडुब्बी के साथ भागीदारी की जा सकेगी।

कटुपल्ली बंदरगाह पर तीन चालक दल के सदस्यों के साथ इसका सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया

 

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के मुताबिक, मत्स्य-6000 का डिजाइन, घटकों का निर्माण और एकीकरण का कार्य पूरा किया जा चुका है। इस प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार डिजाइन और परीक्षण किया गया है। इसकी कार्यक्षमता (तैरना, वाहन की स्थिरता, गतिशीलता, पावर तथा नियंत्रण उपकरणों तथा मानव सहायता एवं सुरक्षा) के लिए चेन्नई के निकट कटुपल्ली बंदरगाह पर तीन चालक दल के सदस्यों के साथ इसका सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने वर्ष 2021 में डीप ओशन मिशन आरंभ किया था। डीप ओशन मिशन के तहत 2021-22 में 150 करोड़ रुपये बजट आबंटन किया था। इसमें से 59.93 करोड़ रुपये व्यय हुए थे। 2022-23 में 650 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया, जिसमें से 98.07 करोड़ रुपये व्यय किए गए। 2022-24 में मत्स्य-6000 के विकास के लिए 600 करोड़ रुपये आबंटित किए गए। इसमें से 214.42 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। 2024-25 में भी 600 करोड़ रुपये आबंटित हुए हैं। इसमें 28 मार्च 2025 तक 585.95 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

मत्स्य-6000 के विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं में इसरो, डीआरडीओ, आईआईटी, भारतीय नौसेना और समीर-चेन्नई की प्रयोगशालाएं सहित कई संस्थान शामिल हैं। निजी क्षेत्र के संस्थानों का भी सहयोग लिया जा रहा है। इनमें लार्सन एंड टुब्रो, टीम चेन्नई, टीआईएनआई इंडस्ट्रीज चेन्नई, वीएमएक्स कनेक्टर कोच्चि, रंगसंस एयरोस्पेस बैंगलोर, यूनिक हाइड्रा मुंबई और मिश्र धातु निगम लिमिटेड हैदराबाद शामिल हैं।

 

मत्स्य-6000 (2.1 मीटर व्यास वाला पर्सनेल स्फीयर) के अंदर कर्मी दल रहेगा। इसे टाइटेनियम मिश्र धातु से बनाया गया है। इसके अंदर 1 एटमॉस्फीयर (एटीएम) का दबाव रहेगा। खास बात है कि इस पर्सनेल स्फीयर के स्फेयरिकल प्रेशर हुल को 720 बार प्रेशर सहन करने के लिए परीक्षण किया गया है, जो समुद्र में 6000 मीटर की गहराई पर अपेक्षित दाब से 1.2 गुणा अधिक है। संचालन के दौरान सभी मानव सुरक्षा मापदंडों की लगातार निगरानी की जाती है और एक एकाउस्टिक मॉडम के माध्यम से जहाज आधारित मिशन कंट्रोल सेंटर के साथ संचार किया जाता है। पायलट हर 30 मिनट में अंडरवाटर एकाउस्टिक टेलीफोन के माध्यम से नवीनतम जानकारी भेजता रहता है। इसे 12 घंटे तक के संचालन के लिए डिजाइन किया गया है, जिसमें 96 घंटे तक की आपातकालीन सहनशक्ति है, जो एक डीएनवी प्रमाणित मानव सहायता और सुरक्षा प्रणाली (एचएसएसएस) द्वारा समर्थित है।

डीएनवी (डेट नॉस्र्क वेरिटास) एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त रजिस्ट्रार एवं क्लासीफिकेशन सोसायटी है, जिसका मुख्यालय नार्वे में है। एचएसएसएस, ऑक्सीजन स्तर को 20 प्रतिशत, कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ2) को 1000 पीपीएमवी (पार्ट पर मिलियन बाई वोल्यूम) से कम पर बनाए रखता है। साथ ही मानव जीवन को सहज और सुरक्षित बनाए रखने के लिए मेजरमेंट सेंसर द्वारा आद्र्रता को नियंत्रित करता है। पनडुब्बी इस प्रकार डिजाइन की गई है कि यह हमेशा तैरती रहे, जब तक उसे इसके बैलास्ट टैंक में भरे पानी के माध्यम से गोता लगाने के लिए निर्देशित न किया जाए।

इसमें ऊपर सतह पर जाने के दौरान वजन कम करने के क्रियातंत्र के तीन अलग अलग संयोजन हैं, ताकि इसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसमें आपातकालीन परिद्रश्यों के लिए अतिरिक्त आपाताकालीन पावर, नियंत्रण और संचार उपकरण हैं। मत्स्य-6000 में एक अंडरवाटर एकॉस्टिक टेलीफोन लगाया गया है, जिसे मानव संचालन वाहनों में 10000 मीटर की गहराई तक संचालन के लिए संचालित और परीक्षण किया गया है। इसके अलावा इसमें 500 मीटर की गहराई पर काम करने की रेटिंग वाला सब-फोन भी है।

वॉयस कम्युनिकेशन को सबमर्सिबल पायलट और मिशन कंट्रोल सेंटर के साथ हर 30 मिनट में उपयोग करने के लिए डिजाइन किया गया है, ताकि निरंतर संचार सुनिश्चित हो सके। राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान ने ‘फ्रेंच रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर एक्सप्लॉयटेशन ऑफ दि सी’ के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। इससे वैज्ञानिक ज्ञान का आदान प्रदान किया जा सकेगा। नॉटाइल नामक समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक जाने वाली फ्रांसीसी मानव वैज्ञानिक पनडुब्बी के साथ भागीदारी की जा सकेगी।

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