Latestमध्यप्रदेश

रामवन गमन पथ की तलाश में निकले इतिहासविद, कटनी से भी होकर गुजरे थे भगवान श्री राम, लखन माता सीता

भोपाल। इतिहास विद डॉ. रामअवतार एक बार फिर भगवान श्रीराम के वन गमन पथ की यात्रा पर निकल पड़े हैं। डा रामअवतार पिछले 48 वर्षों से भगवान श्रीराम के वन गमन पथ पर शोध कर रहे हैं, जिसे भारत सरकार ने भी मान्यता दी है। बता दें कि रामवन गमन पथ कटनी जिले के बड़वारा विजयराघवगढ़ सीमा से भी होकर गुजरने की मान्यता प्रचलित है।

श्रीराम वन गमन मार्ग

भगवान श्रीराम की यात्रा को चार भागों में वर्गीकृत किया गया है. इसमें पहली यात्रा विश्वमित्र मुनि के साथ ताड़का वध के लिए हुई. दूसरी यात्रा विवाह के लिए मिथिला तक और तीसरी यात्रा चौदह वर्ष की वनगमन और चौथी यात्रा सिंघलान्क यानी श्रीलंका की यात्रा है.उन्होंने बताया कि वन यात्रा में चिन्हित स्थान को मानचित्र पर दर्शाया गया है. ये स्थान उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओड़िशा, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के नगरों, गांवों, जंगलों, पहाड़ियों तथा समुद्र के किनारे स्थित हैं. इनमें से कई स्थान तो संरक्षण और संवर्धन के अभाव में लुप्त भी हो गए

उमरिया-अनूपपुर जिले में दो और सीधी-सिंगरौली के एक स्थल की उन्हें तलाश है जहां भगवान कुछ दिन रुके थे। उमरिया जिले में उन्हें कहेंदुआ पहाड़ की तलाश है। यह पहाड़ महानदी के किनारे तैमूर पहाड़ से 15-20 किमी की दूरी पर दक्षिण में स्थित होना बताया जाता है। यह स्थान मार्कंडेय आश्रम के पास बताया जा रहा है। मान्यता है कि श्रीराम ने वनवास के दौरान इस पहाड़ पर कहेंदुआ राक्षस का वध किया था।

रूसा में एक स्थल और तीर्थमय पहाड़ की करेंगे खोज

अनूपपुर-डिंडौरी के बीच रूसा गांव में भी श्रीराम रुके थे। यहां के एक स्थल की भी उन्हें तलाश है। सीधी-सिंगरौली जिले के बीच माड़ा और बैढ़न के पास का तीर्थमय पहाड़ पर भी है। डा रामअवतार ने कहा कि उनके शोध से तैयार सूची में जो स्थान छूटे हुए हैं, वे उन्हें समझने और जानने के इच्छुक हैं। उमरिया जिले में सीतामढ़ी का उन्होंने दौरा किया। इस दौरान करीब दो सौ लोगों से बातचीत की है।

अभी तक इन स्थलों को किया चिह्नित

सतना जिले के चित्रकूट में स्फटिक शिला, गुप्त गोदावरी, अत्रि आश्रम, शरभंग आश्रम, अश्वमुनि आश्रम, सिलहा गांव में सुतीक्ष्ण आश्रम, सिद्धा पहाड़, रक्सेला गांव में सीता रसोई और रामसेल। पन्ना में पहाड़ी खेरा गांव में बृहस्पति कुंड, सारंगधर गांव में सुतीक्ष्ण आश्रम, बड़े गांव में अग्निजिह्वा आश्रम और सलेहा में अगस्त्य आश्रम, मैहर जिले में राम जानकी मंदिर, कटनी जिले के भरभरा में शिव मंदिर, जबलपुर जिले में पिपरिया के पास रामघाट, नर्मदापुरम में पासी घाट और माच्छा के राम मंदिर, बालाघाट जिले में राम पायली, मंडला में सीता रपटन, उमरिया जिले में राम मंदिर दशरथ घाट और मार्कंडेय आश्रम, शहडोल के गंधिया और अनूपपुर के कनवाई में स्थित सीतामढ़ी।

48 वर्षों से श्रीराम से जुड़े तीर्थों पर शोध कर रहे डॉ. राम अवतार शर्मा

आयकर विभाग में वरिष्ठ अधिकारी रह चुके डॉ. राम अवतार शर्मा 48 वर्षों से श्रीराम से जुड़े तीर्थों पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने 290 स्थलों को राम तीर्थ के रूप में खोजा है। इनकी अनुशंसा पर केंद्र सरकार और विभिन्न राज्यों के पर्यटन विभाग ने अपने मानचित्र पर इन स्थलों को दिखाया और विकास योजनाएं बनाईं।

वे रामायण परिपथ, भारत सरकार पर्यटन मंत्रालय नई दिल्ली के अध्यक्ष हैं और श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के प्रबंध न्यासी व शोधकर्ता हैं। वे सहायक निदेशक आयकर विभाग रह चुके हैं। उन्होंने दुनिया के कई देशों में भगवान श्रीराम की यात्राओं पर शोध पत्र प्रस्तुत किया है।

कटनी जिले के भरभरा में शिव मंदिर और आश्रम जहां भगवान राम, सीताजी और लक्ष्मणजी रुके थे।

राम वनगमन पथ के बारे में मुख्य बातें:
  • अयोध्या से श्रीलंका:
    यह मार्ग अयोध्या से शुरू होता है और श्रीलंका में समाप्त होता है, जहाँ भगवान राम ने अपना वनवास काटा था.

  • धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व:
    यह हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय है क्योंकि भगवान राम के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाएँ इसी मार्ग पर घटित हुई हैं.

राज्यों में विकास:
इस पथ को पुनर्जीवित और विकसित करने का कार्य कई राज्यों द्वारा किया जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं.

जब माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ विंध्याचल पर्वत पार करके दंडकारण्य की ओर प्रस्थान किया था

IMG 20240116 WA0006

उन्हें इस बात का आभास था कि भगवान श्रीराम ने जब माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ विंध्याचल पर्वत पार करके दंडकारण्य की ओर प्रस्थान किया था तब वे इसी क्षेत्र की पावन भूमि से होकर ही गए थे। अपनी इसी सोच और भावना को आधार बनाकर उन्होंने अपने राज्य का नाम राघव के नाम पर विजयराघवगढ़ रखा था तथा अपनी कुल देवी शारदा माई के अलावा जगह – जगह भगवान राम के मंदिर भी बनवाये थे।

झपावन नदी के तीर पर उन्होंने श्रीराम,भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के नाम पर चार कुंड भी स्थापित कराये थे। कलहरा ग्राम के समीप एक रमणीक स्थान भूमिकेश्वर धाम में भी घाट, कुंड और मंदिर का निर्माण राजा प्रयागदास द्वारा ही कराया गया था।

अयोध्या से निकलने के बाद सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम श्रंगेश्वेर पहुंचे

इतिहासकारों सहित संतो की खोजबीन और पडतालों से राम वनगमन पथ को लेकर जो तथ्य उजागर हुए थे उनके अनुसार अयोध्या से निकलने के बाद सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम श्रंगेश्वेर पहुंचे थे। यहां वे रथ से उतर गए थे। मंत्री सुमंत सहित उन्हें विदा करने आये अयोध्यावासी यहीं से अयोध्या वापस लौट गए थे। यहां से श्रीराम पैदल ही आगे बढ़े थे। यहीं उन्होंने राजसी वस्त्र और आभूषण का त्याग करके वल्कल धारण किया था।

उस समय निषादराज गुह श्रंगेश्वर के शासक थे। भगवान राम,सीता और लक्ष्मण कुछ समय तक निषादराज के अतिथि रहे। यह स्थान गंगा नदी के किनारे था। यहीं से केवट ने उन्हें गंगा नदी पार कराई थी।

महान ऋषि अगस्त्य ने विंध्याचल पर्वत को ऊंचा होने से रोक दिया था

प्रयागराज और वन प्रान्त में स्थित ऋषि मुनियों के आश्रम होते हुए भगवान राम चित्रकूट पहुंचे थे। श्रीराम के 12 वर्षों तक चित्रकूट में रुकने का प्रमाण विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। चित्रकूट से आगे बढ़ते हुए श्रीराम ने विंध्याचल पर्वत पार किया। किवदंती एवं जनश्रुति के अनुसार महान ऋषि अगस्त्य ने विंध्याचल पर्वत को ऊंचा होने से रोक दिया था। उन्होंने जहां पर्वत को झुकाया था उसी स्थान का नाम झुकेही पड़ा था। चित्रकूट से रवाना हुए श्रीराम झुकेही – मैहर के सघन वन को पार करते हुए के भूमिकेश्वर धाम कलहरा पहुंचे थे। यहां से आगे की यात्रा करते हुए वे ऋषि मार्कण्डेय के आश्रम पहुंचे और वहां से शहडोल अमरकंटक होते हुए दंडकारण्य की ओर बढ़े। आगे उनके दक्षिण प्रदेशो की यात्रा का उल्लेख मिलता है।

यही मग ह्वे के गए,दंडक वन श्रीराम

विजयराघवगढ़ के अमर शहीद राजा सरयू प्रसाद के पुत्र ठाकुर जगमोहन सिंह भारतेंदु हरिश्चंद्र के मित्र थे। वे स्वयं भी एक बड़े साहित्यकार थे। ठाकुर जगमोहनसिंह ने अनेक प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की। उनकी एक विश्व विख्यात रचना श्यामा स्वप्न में इस बात का उल्लेख है कि माता सीता और लक्ष्मण के साथ मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम विंध्याचल पार कर इस भूमि पर पहुंचे थे। श्यामास्वप्न में उनकी पंक्तियां कुछ इस प्रकार थीं,। यही मग ह्वे के गए दंडक वन श्रीराम,,तासों पावन देश यह विंध्याटवी तमाम

Back to top button