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Pseudo Satellite: टेक्नोलॉजी डे पर भारत ने हासिल की ये बड़ी उपलब्धि, 25000 फीट पर पहुंची ‘तीसरी आंख’

Pseudo Satellite: टेक्नोलॉजी डे पर भारत ने हासिल की ये बड़ी उपलब्धि, 25000 फीट पर पहुंची 'तीसरी आंख'

Pseudo Satellite: टेक्नोलॉजी डे पर भारत ने हासिल की ये बड़ी उपलब्धि, 25000 फीट पर पहुंची ‘तीसरी आंख’। 11 मई टेक्नोलॉजी दिवस पर भारत ने एक और मुकाम हासिल किया। भारत के पहले हाई एल्टीट्यूड स्यूडो सैटेलाइट यानी HAP ने पेलोड के साथ समुद्र तल से 25000 फीट ऊंचाई को छुआ।

इस महत्वपूर्ण उपलब्धि की जानकारी भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और नेशनल एरोस्पेस लिमिटेड ने सोमवार को साझा की। भारत ने इस साल की शुरुआत में ही स्यूडो सैटेलाइट यानी छद्म सैटेलाइट का प्रोटोटाइप बनाया था। भारत की ‘तीसरी आंख’ कहे जाने वाला यह सैटेलाइट आसमान की ऊंचाइयों से चीन-पाकिस्तान पर नजर रख सकता है।

 

भारतीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और नेशनल एरोस्पेस लिमिटेड (CSIR-NAL) ने सोमवार को बताया कि एचएपी (हाई एल्टीट्यूड स्यूडो सैटेलाइट) सैटेलाइट ने 11 मई टेक्नोलॉजी डे पर समुद्र तल से 25000 फीट (7.62 किमी) की ऊंचाई पर उड़ान भर कर बड़ा मुकाम हासिल किया है। खास बात यह है कि एचएपी (HAP) ने पेलोड के साथ यह उपलब्धि हासिल की है।

चीन के साथ चल रहे गतिरोध के बीच भारत की इस उपलब्धि को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अपनी पहली टेस्टिंग के दौरान HAP ने लगातार 21 घंटों तक उड़ान भरी। यह सौर ऊर्जा से चलता है। एचएपी की खासियत है कि इससे 15 सेमी तक का रेजोल्यूशन हासिल कर सकते हैं। यह भारत के ड्रोन विंगमैन कार्यक्रम का एक हिस्सा है।

अमेरिकी ड्रोन रीपर के मुकाबले कम कीमत में निगरानी

CSIR-NAL से मिली जानकारी के मुताबिक स्यूडो सैटेलाइट 65,000 फीट की ऊंचाई पर पृथ्वी के समताप मंडल यानी स्ट्रेटोस्फियर (20 किमी से ऊपर की ऊंचाई) में उड़ता है। यह पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले सैटेलाइट्स और वायुमंडल के भीतर उड़ने वाले ड्रोन के बीच इसकी गिनती होती है। सौर ऊर्जा से चलने की वजह से यह महीनों तक बिना किसी रूकावट के काम कर सकता है।

वहीं अमेरिकी ड्रोन रीपर जैसे हाई-एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (HALE) ड्रोन की तुलना में स्यूडो सैटेलाइट से निगरानी की लागत कम पड़ती है। आंकड़ों के मुताबिक यूएसएएफ रीपर ड्रोन को संचालित करने में लगभग 3500 डॉलर प्रति घंटे का खर्च आता है, जबकि HAP की लागत 500 डॉलर प्रति घंटे से भी कम है। HAP सैटेलाइट जहां दिन में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करता है, तो रात में सौर-चार्ज बैटरी का उपयोग करता है। लेकिन उस ऊंचाई पर तापमान -50 डिग्री सेल्सियस या उससे भी नीचे चला जाता है, ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों को गर्म रखने की जरूरत होती है।

सैटेलाइट और एक एरोप्लेन के बीच का क्रॉस
भारतीय वायु सेना के पूर्व पायलट समीर जोशी के मुताबिक HAP भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है, सात ही यह सैटेलाइट और एक एरोप्लेन के बीच का क्रॉस है। खास बात यह है कि HAP सैटेलाइट 65,000 फीट की ऊंचाई से 500 किमी के क्षेत्र में नजर रख सकता है। जबकि एक जियोस्टेशनरी सैटेलाइट 36,000 किमी की ऊंचाई से एक इलाके पर लगातार नजर रख सकते हैं। वहीं, अगर एक ड्रोन से इसकी तुलना करें, तो 25 घंटे तक लगातार उड़ने वाला ड्रोन सिर्फ 25 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ सकता है। जबकि 500 किमी के क्षेत्र पर नजर रखने के लिए उसे 5000 बार उड़ान भरनी होगी। वहीं, HAP सैटेलाइट को सिर्फ 250 बार उड़ान भरने की आवश्यकता होगी। वहीं इनकी क्षमता बढ़ाने पर यह 800-1000 किलोमीटर तक के इलाके की निगरानी कर सकते हैं। इसलिए इन्हें स्कैनर सैटेलाइट भी कहा जाता है। आम सैटेलाइट के मुकाबले इनकी रफ्तार काफी कम होती है, जिससे यह लंबे समय तक एक ही क्षेत्र में रह सकते हैं। ड्रोन के मुकाबले एक HAP सैटेलाइट एक घंटे में 80 से 100 किमी रफ्तार से उड़ सकता है। इसकी वजह है कि 17 से 23 किमी की ऊंचाई पर हवा की रफ्तार बेहद कम हो जाती है, तो हल्के वजन वाले एयरक्रॉफ्ट के लिए बेहतर होती है।

चीन पर नजर रखने में होगी आसानी
रक्षा सूत्रों के मुताबिक HAP सैटेलाइट को रिमोट से कंट्रोल किया जा सकता है और ये कम वजन वाले प्लेटफॉर्म पर बने होते हैं। साथ ही, इनमें संचार करने की सुविधा भी होती है। ये 35 किग्रा तक का वजन ढो सकते हैं, जिनमें सेंसर और नेविगेशन इंस्ट्रूमेंट्स शामिल हैं। HAP परियोजना सरकार के 1,000 करोड़ रुपये के ‘मेक आई प्रोजेक्ट’ को का हिस्सा है, जिसमें 70 फीसदी फाइनेंस सरकार करेगी। HAP सैटेलाइट को हासिल हुई इस उपलब्धि से भारत की सर्विलांस ताकत में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। HAP सैटेलाइट हिमालयी इलाके में चीन के साथ चल रहे गतिरोध में भी काफी उपयोगी साबित होगा। अभी तक इस इलाके की स्कैनिंग ड्रोन, हेप्टर से की जाती थी, वहीं कई इलाकों में ड्रोन के पेलोड काम नहीं कर पाते हैं, उन इलाकों के लिए HAP सैटेलाइट एक वरदान की तरह साबित होगा।

बाकी देश भी लगे इस टेक्नोलॉजी को विकसित करने में
HAP सैटेलाइट टेक्नोलॉजी को दूसरे देश भी डेवलप करने की कोशिशों में लगे हैं। कई देशों और कंपनियों ने ऐसे सैटेलाइट उड़ाए हैं, लेकिन अभी तक किसी ने भी इस तकनीक में महारत हासिल नहीं की है। इस श्रेणी के सैटेलाइट का वर्ल्ड रिकॉर्ड एयरबस के ज़ेफिर के नाम है, जिसने अगस्त 2022 में 64 दिनों तक लगातार उड़ान भरी थी और 76,100 फीट की ऊंचाई तक गया था। हालांकि बाद में वह हादसे का शिकार हो गया था। उसके बाद, 2023 में बीएई सिस्टम्स ने फासा-35 नामक अपने HAP सैटेलाइट की पहली परीक्षण उड़ान आयोजित की थी। कंपनी का दावा था कि 24 घंटे की उड़ान के दौरान, फासा-35 66,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर पहुंच गया और न्यू मैक्सिको के ऊपर स्ट्रेटोस्फियर में एंट्री की।

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