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मध्य प्रदेश के पहले शासकीय सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में शुरू हुआ हैप्लो ट्रांसप्लांट, मुफ्त इलाज होगा

मध्य प्रदेश के पहले शासकीय सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में शुरू हुआ हैप्लो ट्रांसप्लांट, मुफ्त इलाज होगा

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मध्य प्रदेश के पहले शासकीय सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में शुरू हुआ हैप्लो ट्रांसप्लांट, मुफ्त इलाज होगा। मध्य प्रदेश के पहले शासकीय सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में शुरू हुआ हैप्लो ट्रांसप्लांट। अभी तक बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए 100 प्रतिशत ब्लड मैच होने की जरूरत होती थी। लेकिन अब इसकी मदद से ब्लड 50 प्रतिशत मैच होने पर भी ट्रांसप्लांट किया जा सकेगा।

(Haploidentical Transplant)। इंदौर में मरीजों को अब आधुनिक सुविधाएं मिलने लगी हैं। प्रदेश के पहले शासकीय सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में बालिग मरीजों के लिए हैप्लो ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू हो गई है। इससे अब बच्चों के साथ ही सभी आयु वर्ग के मरीजों को ट्रांसप्लांट की सुविधा मिलने लगी है।

अभी तक शत-प्रतिशत ब्लड मैच होने के बाद ही बोन मेरो ट्रांसप्लांट किया जा सकता था, लेकिन इसके माध्यम से अब 50 प्रतिशत मैच होने के बाद भी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। इसमें ल्यूकेमिया, क्रोनिक थेलेसीमिया, ब्लड कैंसर,एनीमिया आदि के मरीजों को लाभ मिल रहा है।

दो मरीजों के हुए ट्रांसप्लांट

अस्पताल में अब तक दो बालिग मरीजों के ट्रांसप्लांट अस्पताल में हो चुके हैं। निजी अस्पताल में इसका खर्च 35 लाख रुपये आता है, लेकिन एसएसएच में शासकीय योजना और संस्थाओं की मदद से निश्शुल्क सुविधा मरीजों को मिल रही है।

हेमेटोलाजिस्ट डॉ. अक्षय लाहोटी ने बताया कि ट्रांसप्लांट के लिए हम ब्लड ग्रुप मैच करते हैं, यदि आधा ही मैच होता है तो उसमें मरीज की रिस्क बढ़ जाती है। बोनमेरो ट्रांसप्लांट में ब्लड ग्रुप मैच नहीं होता तो ट्रांसप्लांट नहीं होता है, लेकिन इसमें यदि आधा मैच हो जाता है, तो भी ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। इसके लिए ब्लड ग्रुप की तरह एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) मैच करवाते हैं।

इसमें हम मरीज और डोनर के जींस मैच करते हैं। पहले हैप्लो ट्रांसप्लांट ज्यादा नहीं होते थे, लेकिन अब नई दवाई और प्रोसिजर आ गए हैं, जिससे अब यह होने लगा है।

यह होता है हैप्लो ट्रांसप्लांट

आम तौर पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट में डोनर और मरीज के सेल का पूरी तरह से मिलान इसलिए जरूरी होता है, क्योंकि अगर डोनर के सेल थोड़े भी अलग हुए तो मरीज का शरीर उसे स्वीकार नहीं करेगा, मगर नई तकनीक में विशिष्ट सेल का ही मिलान किया जाता है और एक आधुनिकतम मशीन की सहायता से उन्हें ही निकालकर मरीज के शरीर में डाला जाता है।

हैप्लो ट्रांसप्लांट यह होता है, जैसे मरीज और डोनर के फुल मैच 10 में से दो ही मिलते हैं, लेकिन हैप्लो मैच होना मुश्किल नहीं होता है। हैप्लो मतलब आधा मिलान होता है। एचएलए जांच करते हैं तो माता-पिता, बच्चे, भाई-बहन से मैच होना आसान होता है।

इसमें क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को डोनर की स्वस्थ स्टेम कोशिकाओं से प्रत्यारोपित करते हैं। इसका निजी अस्पताल में 35 लाख ट्रांसप्लांट का खर्च और दवाइयों का खर्च भी करीब 35 लाख तक पहुंचता है। ऐसे में मरीजों को निजी अस्पताल या अन्य राज्य जाना पड़ता था, अब यहीं सुविधा मिलने लगी है।

इन बीमारी के मरीजों को लाभ

रक्त संबंधी बीमारियों ल्यूकीमिया, ब्लड कैंसर, अप्लास्टिक एनीमिया, स्किल एनीमिया, थैलेसीमिया आदि के उन मरीजों को हैप्लो ट्रांसप्लांट का लाभ मिलता है जिनका ब्लड फुल मैच नहीं हो पाता है। अभी तक अस्पताल में अप्लास्टिक एनीमिया और एक्यूट ल्यूकीमिया के मरीज का ट्रांसप्लांट हो चुका है।

बच्चों को एक वर्ष से मिल रहा ट्रांसप्लांट का लाभ

चाचा नेहरू अस्पताल अधीक्षक डॉ. प्रीति मालपानी ने बताया कि पिछले एक वर्ष से बच्चों को हैप्लो ट्रांसप्लांट की सुविधा मिल रही है। अभी तक करीब 12 बच्चों का ट्रांसप्लांट किया जा चुका है। इसमें देशभर के बच्चे शामिल हैं। हाल ही में एमवाय अस्पताल में आई ब्लड इरेडिएटर मशीन भी अब सभी ट्रांसप्लांट में मददगार साबित होगी।

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