Dinosaur egg: ‘कुलदेवता’ समझकर पूजते रहे, वह निकला डायनासोर का अंडा

Dinosaur egg: ‘कुलदेवता’ समझकर पूजते रहे, वह निकला डायनासोर का अंडा। कहते हैं आस्था तर्क यहां तक विज्ञान भी नहीं मानती है. कुछ ऐसा ही एमपी के धार में हुआ है. जो अब तक ‘पत्थर की गेंदें’ समझी जा रही थीं उन्हें एक्सपर्ट्स के एक ग्रुप ने डायनासोर के अंडे के जीवाश्म बताया है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक पडल्या गांव के वेस्ता मंडलोई (40) अपने पूर्वजों की परंपरा का पलान करते हुए इन गेंदों को ‘काकर भैरव’ के रूप में पूजते थे. उनका विश्वास था कि ‘कुलदेवता’ उनके खेत और मवेशियों को परेशानियों और दुर्भाग्य से बचाएंगे.
‘ककार’ का अर्थ है भूमि या खेत और ‘भैरव’ भगवान को दर्शाता है. मंडलोई की तरह, कई अन्य लोग धार और आसपास के जिलों में खुदाई के दौरान पाए गए ऐसी गेंदों की पूजा करते हैं.
इलाके में एक्सपर्ट्स का दौरे के बाद पता चला सच
हालांकि यह तब बदल गया जब लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के विशेषज्ञों ने हाल ही में इस क्षेत्र का दौरा किया और उन्हें इन ‘पत्थर की गेंदों’ के बारे में पता चला. उन्होंने पाया कि जिन ‘पत्थर की गेंदों’ की स्थानीय निवासी पूजा कर रहे थे वे डायनासोर की टाइटेनोसॉरस प्रजाति के जीवाश्म अंडे थे.
टाइटेनोसॉर डायनासोर
यह पहला भारतीय डायनासोर है जिसका नामकरण और सही तरीके से वर्णन किया गया. इस प्रजाति को पहली बार 1877 में दर्ज किया गया था. इसके नाम का अर्थ ‘टाइटैनिक छिपकली’ है. टाइटेनोसॉर ग्रह पर घूमने वाले सबसे बड़े डायनासोरों में से एक थे. अनुमान के अनुसार, यह प्रजाति लगभग 70 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस काल के दौरान इस क्षेत्र में घूमती थी.
मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में मिले हैं अंडे
इस साल की शुरुआत में, मध्य प्रदेश के धार जिले में टाइटैनिक छिपकली के 250 से अधिक अंडे खोजे गए थे, जो कभी नर्मदा घाटी में घूमते थे.
जनवरी में, सहकर्मी-समीक्षित वैज्ञानिक पत्रिका पीएलओएस वन में प्रकाशित एक अध्ययन में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और भोपाल में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किए गए विस्तृत क्षेत्र अनुसंधान पर प्रकाश डाला गया. उन्होंने 92 घोंसले बनाने वाले स्थानों का पता लगाया था जिनमें टाइटैनोसॉर के 256 जीवाश्म अंडे थे.