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करेंसी से कूटनीति तक: नेपाल की नोट छपाई में चीन की बड़ी भूमिका

करेंसी से कूटनीति तक: नेपाल की नोट छपाई में चीन की बड़ी भूमिका

करेंसी से कूटनीति तक: नेपाल की नोट छपाई में चीन की बड़ी भूमिका। नेपाल की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है. सोशल मीडिया से बैन हटने के बाद भी युवाओं का प्रदर्शन खत्म नहीं हो रहा. अब उनका मुद्दा बेरोगजारी और देश के बुरे आर्थिक हालात हैं. पीएम ओली ने इस्तीफा दे दिया है। संसद में आगजनी की तस्वीरें वायरल हो रही हैं.नेपाल का हाल कैसा है इसका एक उदाहरण यहां के कर्ज प्रबंधन कार्यालय के आंकड़ों से समझा जा सकता है. साल 2023 में नेपाल पर 24 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, जो 2024 में बढ़कर 26 लाख करोड़ रुपए हो गया।

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करेंसी से कूटनीति तक: नेपाल की नोट छपाई में चीन की बड़ी भूमिका
अब कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि मंगलवार को काठमांडू में चीनी नेताओं के पोस्टर फाड़े गए हैं. ऐसा करके यह संदेश दिया जा रहा है कि नेपाल की जनता अब चीन का दखल बर्दाश्त नहीं करेगी. वो चीन जो नेपाल की करंसी को छापने का काम कर रहा है. देश में निवेश कर रहा है और साल दर साल अपना हस्तक्षेप बढ़ाता जा रहा है.

नेपाल राष्ट्र बैंक ने पिछले साल एक चीनी कंपनी को 100 रुपए के नए नोट छापने का ठेका दिया था, जिसमें मैप भी बदला हुआ दिखाया गया था. इससे विवाद पैदा हुआ था क्योंकि नेपाल के मंत्रिमंडल ने नोट में डिजाइन में जिस राजनीतिक मानचित्र को मंजूरी दी थी, जो विवादास्पद था. मानचित्र में लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को देश के हिस्से के तौर पर दिखाया गया था. भारत ने नेपाल के दावे को सम्बंध अस्थिर करने वाला बताया था.

नेपाल के केंद्रीय बैंक ने चीनी कंपनी से 100-100 रुपए के 30 करोड़ नोट को डिजाइन करने, छापने और सप्लाई करने का ठेका दिया था. नोटों की छपाई की अनुमानित लागत 89.9 लाख अमेरिकी डॉलर बताई गई थी. यह कोई पहला मौका नहीं था जब नेपाल ने चीन में करंसी छपाई थी।

2017 में भी नेपाल राष्ट्र बैंक (एनआरबी) को चाइना बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन (सीबीपीएम) 24 मिलियन 1000 रुपए के नोट दिए थे. इन नोटों की डिलीवरी को बहुत अहम बताया गया था क्योंकि इनका इस्तेमाल भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए किया जाना था।करेंसी से कूटनीति तक: नेपाल की नोट छपाई में चीन की बड़ी भूमिका

नेपाल ने कई बार चीन में अपनी करंसी छपाई

अब सवाल है कि नेपाल अपने नोट दूसरे देश में क्यों छपवा रहा है. चीनी न्यूज पोर्टल xinhuanet की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नेपाल ने कई बार चीन में अपनी करंसी छपाई. यहां की कंपनी ने नेपाल को कम कीमत में नोट छापने का ऑफर दिया था. रिपोर्ट में नेपाली राष्ट्र बैंक के तत्कालीन गवर्नर चिंतामणि शिवकोटी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि चीन को धन्यवाद, हमने दूसरे देशों में छपाई से लाखों रुपए बचाए।

नेपाल अपने ही देश में करंसी क्यों नहीं छापता

नेपाल सिर्फ चीन ही नहीं, भारत, इंडोनेशिया, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया में भी नोट छपवाता है. अब सवाल उठता है कि नेपाल अपने ही देश में करंसी क्यों नहीं छापता. इसकी कई वजह हैं. पहली है नोट छापने के लिए सुरक्षा फीचर्स जैसे वॉटरमार्क, सिक्योरिटी थ्रेड, माइक्रोप्रिंटिंग, होलोग्राम चाहिए होते हैं. नेपाल के पास आधुनिक प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी वाली मशीनें नहीं हैं तो इनके मानकों पर खरा उतर सकें.

नकली नोट को रोकने के लिए हाई सिक्योरिटी प्रॉसेस की जरूरत होती है ताकि वैसी नोट धोखाधड़ी करने वाले न बना सकें. इसलिए नेपाल उन दूसरे देशों पर निर्भर है जिनके पास बेहतर तकनीक के साथ हाई सिक्योरिटी वाली प्रिंटिंग प्रेस हैं.

अब सवाल है कि नेपाल अपना सिस्टम क्यों नहीं तैयार करता है. इसका जवाब यह है कि अगर नेपाल खुद अपना सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस बनाता है तो उसे भारी निवेश करना होगा. यहां की अर्थव्यवस्था विकसित देशों जैसी नहीं है.यही वजह है कि नेपाल को विदेश छपवाना सस्ता पड़ता है. सिर्फ नेपाल ही नहीं, कई छोटे देश जैसे भूटान, मालदीव और मॉरीशस अपनी करंसी को ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, भारत और चीन जैसे देशों में छपवाते हैं। करेंसी से कूटनीति तक: नेपाल की नोट छपाई में चीन की बड़ी भूमिका

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