वैज्ञानिकों ने किया खुलासा, कोरोना से बचाव में सहायक हो सकते हैं प्रतिरक्षा प्रणाली के टी सेल
बोस्टन। बंदरों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि यदि शरीर में मौजूद थोड़ी भी एंटीबॉडी ठीक तरह से काम कर रही है तो प्रतिरक्षा प्रणाली के टी-सेल संक्रमण से बचाव में सहायक हो सकते हैं। विज्ञानियों के मुताबिक यह अध्ययन कोरोना के टीके और इलाज में मददगार साबित हो सकता है। जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित यह अध्ययन कोरोना के खिलाफ सुरक्षा में एंटीबॉडी और प्रतिरक्षा कोशिकाओं की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
अमेरिका स्थित बेथ इजरायल डेकोनेस मेडिकल सेंटर से ताल्लुक रखने वाले और अध्ययन के सह लेखक डैन बरोच ने कहा, ‘शोध के दौरान हमने बंदरों में कोरोना के खिलाफ सुरक्षा में एंटीबॉडी और टी-सेल की भूमिका को समझने की कोशिश की है। हमने पाया कि अपेक्षाकृत कम एंटीबॉडी संक्रमण से सुरक्षा के लिए जरूरी हैं।’ बरोच ने कहा कि इस तरह का अध्ययन अगली पीढ़ी के टीकों, एंटीबॉडी आधारित इलाज और कोरोना के खिलाफ रणनीति बनाने में मदद कर सकता है।
पहले किए गए अध्ययनों में बताया गया था कि कोरोना संक्रमण रीसस मैकास (बंदरों की एक प्रजाति) को फिर से संक्रमित होने से बचाता है। इसके बाद बरोच और उनके सहयोगियों ने संक्रमण से उबरने वाले बंदरों से एंटीबॉडी को एकत्र किया और पूरी तरह से ठीक 12 बंदरों पर एंटीबॉडी का परीक्षण किया। इस दौरान यह पाया गया कि बंदरों में कोरोना के खिलाफ सुरक्षा एंटीबॉडी की डोज पर निर्भर थी।
शोधकर्ताओं के अनुसार जिन बंदरों को अधिक मात्रा में एंटीबॉडी दी गई थी, वह कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित थे जबकि कम एंटीबॉडी पाने वाले बंदरों को संक्रमण का खतरा बना हुआ था। इसी प्रकार जब बीमार बंदरों में फ्यूरीफाइड एंटीबॉडी डाली गई तो देखा गया कि जिन्हें ज्यादा एंटीबॉडी मिली थी, उनमें संक्रमण तेजी से काबू में आता दिखा।
एक अन्य प्रयोग में जब विज्ञानियों ने बंदरों से इन प्रतिरक्षा कोशिकाओं को हटा लिया तो उन पर कोरोना संक्रमित होने का खतरा एक बार फिर मंडराने लगा। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मेडिसिन के प्रोफेसर बरोच ने कहा कि अध्ययन से यह पता चलता है कि एंटीबॉडी अकेले कोरोना से सुरक्षा में पर्याप्त है, लेकिन अगर इसका स्तर बहुत कम है तो टी-कोशिकाएं भी कोरोना से बचाव में सहायक होती हैं।